black hole क्या है पूरी जानकारी प्राप्त करें


Black hole


श्याम विवर यानी black hole यह आसमान का एक ऐसा राक्षस है जो अपने में बहुत सारे रहस्यों को संजोए हुए हैं । आइए हम आज उसके एक-एक रहस्य की पड़ताल करते हैं ब्लैक होल के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं । ब्लैक होल के बारे में दुनिया के सामने सबसे पहले अपने विचार प्रकट करने वाले वैज्ञानिक थे प्रोफेसर जॉन मिशन मिशन कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में एक अध्यापक थे और उन्होंने ब्लैक होल के बारे में अपने विचार सन 1783 में रखे थे उन production बेसन 1796 में फ्रांस के एक वैज्ञानिक ने अपनी पुस्तक द सिस्टम ऑफ द पार्ट में ब्लैक होल के बारे में विस्तार से जिक्र किया ।  ब्लैक ब्रह्मांड का ऐसा पिंड है जिसका गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल होता है कि उसके पास रोशनी भी नहीं जा सकती और अंतरिक्ष में उसके आसपास या उसके गुरु तरीकेरे में आने वाली हर चीज ब्लैक होल निगल लेता है । सिर्फ इतना ही नहीं ब्लैक होल के जितने नजदीक जाते हैं उतना समय का भी प्रभाव कम हो जाता है और ब्लैक होल के गहरे के अंदर तो समय का कोई अस्तित्व ही नहीं है । तो चलिए जानते हैं इतना रोचक पिंड अतिक्रमण में उत्पन्न कैसे होता है ? ब्लैक होल घनत्व द्रव्यमान वाला पिंड होता है ब्रह्मांड में किसी भी वस्तु को हम अगर कंप्रेस करके बहुत छोटी कर दें तो उसके द्रव्यमान और घनत्व से उसका गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल हो जाएगा कि उसके बाहर रोशनी का भी जाना संभव नहीं होगा । पर वह चीज ब्लैक होल कह लाएगी . यदि हमारी पृथ्वी का घनत्व बहुत बढ़ जाए और संपूर्ण पृथ्वी को compress करके mines 1.5 सेंटीमीटर कर दिया जाए तो उसका गुरुत्वाकर्षण बड़ जाएगा और वह ब्लैक होल हो जाएगी । पृथ्वी से 1300000 गुना बड़े हमारे सूर्य को भी अगर compress कर के एक छोटे से मटर के दाने के समान कर दिया जाए तो  ब्लैक होल हो जाएगा । लेकिन याद रहे कि ब्लैकहोल में प्रमाण की तुलना में तो बहुत महत्वपूर्ण है । हम जानते हैं कि पृथ्वी और सूर्य इस तरह से संकुचित नहीं हो सकते ।क्योंकि ना तो पृथ्वी का द्रव्यमान पर गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक है और ना ही सूर्य का  । 


लेकिन हमारे सूर्य से

दस गुना बड़ा कोई तारा हो जिसका द्रव्यमान और घनत्व अपार मात्रा में उस में मौजूद हो तो वह अपनी इन विशेषताओं से ब्लैक होल बन सकता है अक्सर ब्लैकहोल तारों के ही बनते हुए ब्लैक होल के निर्माण को समझने से पहले हम तारों की रचना कैसे होती है । यह समझते हैं दरअसल तारों का जन्म प्रमाण की गैलेक्सी में उपस्थित धूल पर कैसे बनए बादलों से होता । ब्रह्मांड में धूल और गैस बनए इन बादलों को निहारिका या नबीला कहते हैं निहारिका में हाइड्रोजन की मात्रा सबसे अधिक होती है और लगभग 25% तक विलियम होता है और बहुत कम मात्रा में कुछ और भारी तत्व भी होते हैं । जब धूल और गैस से बने इन बादल यानी की निहारी गांव में घनत्व की वृद्धि होती है उस समय यह बादल अपने गुरुत्व के कारण संकुचित होने लगता है । और उसके अंदर का ताप इतना बढ़ जाता है कि हाइड्रोजन के नाभिक आपस में टकराने लगते हैं और वह हीलियम के नाभिक का निर्माण करते हैं । और गति तथा संकुचन के कारण भी एकजुट होकर गोलिया लगभग गोल के समान आकार में परिवर्तित हो जाता है । हमारे तारे का निर्माण ऐसे ही होता है लेकिन इन प्रक्रिया में कई करोड़ों साल बीत जाते हैं हमारे सूर्य का निर्माण भी ऐसे ही हुआ था  अब तक नाभिकीय संलयन से निकली प्रचंड उष्मा से ही तारों का गुरुत्वाकर्षण संतुलन में रहता है । इसलिए जब तारों में मौजूद हाइड्रोजन खत्म हो जाती है तो वह तारा धीरे-धीरे ठंडा होने लगता है अब अपने ही इंटर्न को समाप्त कर चुके चौरे द्रव्यमान से 1 पॉइंट 4 * द्रव्यमान वाले तारे जो अपने ही गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध स्वयं को नहीं संभाल पाते ऐसे तारों के अंदर एक विस्तृत होता है जिसे सुपरनोवा कहते हैं । इस विस्फोट के बाद यदि उस तरह का कोई घनत्व वाला अवशेष बनता है तो वह अत्याधिक घनत्व युक्त न्यूट्रॉन स्टार बन जाता है ।


Black hole


अपार गुरूत्वीय स्विच ऑफ होने के कारण तारा संकुचित या compress होने लगता है और अंत में तारा एक निश्चित क्रांतिक सीमा या क्रिटिकल लिमिट तक संकुचित हो जाता है और उस पार असाधारण संकुचन के कारण उसका स्पेस और टाइम भी विकृत हो जाता है । और अपने में ही शेष पर टाइम का अस्तित्व मिट जाने के कारण वह अदृश्य हो जाता है और यही वह अदृश्य पिंड होते हैं जिसे हम black hole कहते हैं ।

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