पति पत्नी हमेशा खुश रहेंगे बस इस अद्भुत उपाय को अपना कर देखें

शादी के बाद पति पत्नी को कैसे रहना चाहिए



शादी के बाद पति पत्नी को कैसे रहना चाहिए

पति पत्नी हमेशा खुश रहना है तो किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए जानिए हमारे साथ मित्रों नमस्कार हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है ।
पति पत्नी के बीच प्रेम भाव से नहीं चला तो जिंदगी नर्क जैसा लगता है इसलिए पति पत्नी का प्रेम संबंध मजबूत ही होना चाहिए और उसे तभी आप मजबूती हमेशा के लिए रख सकते हैं जब इन बातों को आप ध्यान में रखेंगे । मित्रों पूरे पोस्ट को गौर से पढ़िए और ज्ञान  प्राप्त किजिए ।




व्यभिचार, विवाहित लोगों के मध्य में अपने पति या पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य के साथ किए जाने वाले व्यभिचार को संदर्भित करता है, और यह शब्द पुराने नियम में शाब्दिक और रूपक अर्थात् दोनों में अर्थों में उपयोग किया गया है।



स्त्री पुरुषों की जननेन्द्रियाँ शरीर के अन्य समस्त अंगों की अपेक्षा अधिक चैतन्य सजीव, कोमल, सूक्ष्म, प्राण विद्युत से युक्त होती हैं। मानव शरीर के सूक्ष्म तत्वों को जानने वाले बताते हैं कि स्त्री में ऋण (निगेटिव) और पुरुष में धन (पाजेटिव) विद्युत का भंडार होता है। दर्श स्पर्श से भी यह विद्युत स्त्री पुरुषों में एक विचित्र कम्पन उत्पन्न करती रहती है। परन्तु शरीर के सजीव तम प्राण केन्द्र गुह्य स्थानों का जब दोनों एकीकरण करते हैं तब तो एक शरीर व्यापी तूफान उत्पन्न हो जाता है। दोनों के शरीर के विद्युत परिमाण दोनों के अन्दर अत्यन्त वेग और आवेश के साथ प्रवेश करते हैं और दोनों में एक शक्तिशाली अंतरंग संबंध-प्रेम उत्पन्न करते हैं। एक दूसरे के सूक्ष्म तत्वों का एक दूसरे में बड़ी तीव्र गति से प्रचुर परिमाण में आदान-प्रदान होता है। यही कारण है कि वे एक दूसरे के ऊपर आसक्त हो जाते हैं, उनके बीच एक ऐसा आकर्षण और सामंजस्य स्थापित हो जाता है जिसे हटाना या तोड़ना असाधारण रूप से कठिन होता है। पाँव दाबना, सिर मसलना जैसी शारीरिक सेवाओं में ऐसी कोई हलचल नहीं होती किन्तु यौन संबंध से दो व्यक्तियों के सूक्ष्म प्राण तत्वों में आवेश पूर्ण आदान-प्रदान होता है। इसलिए शरीर सेवा और यौन संबंध को समान नहीं कहा जा सकता।



पतिव्रत और पत्नीव्रत का समर्थन शास्त्र ने इसी वैज्ञानिक आधार पर किया है। एक पुरुष का एक स्त्री से संपर्क होने पर उन दोनों में प्रेम भाव बढ़ता है। एक की शक्ति निश्चित मार्ग से दूसरे को प्राप्त होती है। गुण कर्म स्वभाव की दृष्टि से एक दूसरे के निकट आते हैं और एक प्राण दो शरीर बन जाते हैं। यौन संबंध के द्वारा दोनों के रक्त में सजीव संमिश्रण होता है, किसी बीमारी में किसी रोगी को रक्त का इंजेक्शन देना होता है तो डॉक्टर लोग पति-पत्नी के जोड़े में से ही रक्त लेने को महत्व देते हैं। क्योंकि दम्पत्ति के रक्त में सहवास के कारण एक समान तत्व उत्पन्न हो जाते हैं।



पति-पत्नी के बीच सच्चा प्रेम, वफादारी, सेवा, आत्मीयता, विश्वास तभी रह सकता है जब उनमें ‘एकनिष्ठा’ का व्रत हो। यदि कोई स्त्री अनेक पुरुषों से या कोई पुरुष अनेक स्त्रियों से गुप्त संबंध स्थापित करता है तो उसके शरीर में, रक्त में, मन में, मस्तिष्क में, अनेकों तत्व मिल जाने के कारण अस्थिरता, खींचतान, आकर्षण, विकर्षण के दौर चलने लगते हैं। ऐसी अवस्था में सच्चा प्रेम, वफादारी एवं आत्मीयता असंभव है। व्यभिचारी स्त्री पुरुषों का दाम्पत्ति जीवन कपट, धूर्तता, माया चर और छल से भरा हुआ होता है। वे अवसर पड़ने पर अपने साथी को धोखा दे सकते हैं।




व्यभिचार चोरी, भय, लज्जा और पाप की झिझक के साथ किया जाता है, उसे छिपाने का प्रयत्न किया जाता है। उपयुक्त अवसर ढूँढ़ने के प्रपंच उनके मन में उठा करते हैं। यह पाप वृत्तियाँ कुछ समय लगातार अभ्यास में आते रहने पर मनुष्य के मन में वे गहरी उतर जाती हैं और जड़ जमा लेती हैं। फिर उसके स्वभाव में वे बातें शामिल हो जाती हैं और जीवन के विविध क्षेत्रों में वे प्रकटित होती रहती हैं। यही कारण है कि व्यभिचारी व्यक्ति अक्सर चोर, निर्लज्ज, दुस्साहसी, कायर, झूठे और ठग होते हैं। वे अपने व्यापार तथा व्यवहार में समय-समय पर अपनी इस कुप्रवृत्तियों का परिचय देते रहते हैं। उनका विश्वास उठ जाता है, लोगों के मन में उनके लिए प्रतिष्ठा तथा आदर की भावना नहीं रहती, सच्चा सहयोग भी नहीं मिलता, फलस्वरूप जीवन विकास के महत्वपूर्ण मार्ग बन्द हो जाते हैं। पाप वृत्तियों के मन में जम जाने से अन्तःकरण कलुषित होता है। प्रतिष्ठा एवं विश्वस्तता नष्ट होती है और हर क्षेत्र में सच्ची मैत्री या सहयोग भावना का अभाव मिलता है। यह तीनों ही बातें नरक की दारुण यातना के समान हैं, व्यभिचारी को अपने कुकर्म का दुष्परिणाम इसी जीवन में उपर्युक्त तीन प्रकार से नित्य ही भुगतना पड़ता है।


स्त्री पुरुषों के सम्मिलन से एक का प्रभाव दूसरे पर जाता है। एक के दुर्गुण दूसरे में प्रवेश हुए बिना नहीं रहते। काम भोग करने के साथ दूसरा पक्ष अपनी कुवासनाओं की छाप भी छोड़ता है यह परत दिन पर दिन मजबूत होते जाते हैं और वह दिन-दिन अधिक दुर्गुणी बनता जाता है। व्यभिचार स्त्री और पुरुष दोनों के लिए घातक है, पर स्त्रियों के लिए विशेष रूप से घातक है। कारण यह है कि स्त्रियाँ अपने शरीर के सबसे सूक्ष्म, चेतन एवं प्राण युक्त स्थान गुह्येन्द्रिय में पुरुष का वीर्य ग्रहण करती है। वीर्य पानी की बूँद नहीं है वरन् पुरुष के शरीर और मन का सार भूत प्राण सत्व है। उसकी एक-एक बूँद में मनुष्य उत्पन्न करने की प्रचंड शक्ति भरी हुई है। उस प्रचंड, शक्ति शाली प्राण सत्व के साथ पुरुष की गुह्य और प्रकट शक्तियाँ केन्द्रीभूत होती हैं। इस द्रव प्राण सत्व को योनि मार्ग में धारण करना ऐसा ही है मानो किसी के गुण अवगुणों के सार भाग का इंजेक्शन लेना। यह निश्चित है कि पापी और पतित स्वभाव के व्यक्ति ही व्यभिचारी होते हैं उनका पाप एवं पतन, प्राण सत्व वीर्य के साथ स्त्री के आत्मिक क्षेत्र में व्याप्त हो जाता है और उसमें भी यह दुर्गुण भर देता है।


कितने ही व्यभिचारी पुरुषों के संयोग से उनके अनेकों प्रकार के दोषों को अपने सूक्ष्म शरीर में संचित कर लेने से स्त्री की निर्बल अन्तः चेतना बहुत ही विकृत हो जाती है। एक म्यान में अनेकों तलवार ठूँसने से भयंकर स्थिति उत्पन्न होती है। वैसे ही एक स्त्री के शरीर में नाना प्रकार के गुण, कर्म, स्वभाव एवं प्रभाव प्रवेश कर जाते हैं तो वे आपस में टकराते हैं। उसका प्रभाव मनोभूमि को विकृत कर देता है। व्यभिचारिणी स्त्रियाँ सीधे स्वभाव की नहीं रहती, उनमें चिड़चिड़ापन झुँझलाहट, घबराहट, आवेश, अस्थिरता, रूठना, असत्य, छल, अतृप्ति आदि दुर्गुणों की मात्रा बढ़ जाती है, सिर दर्द, कब्ज, दर्द, खुश्की, प्यास, अनिद्रा, थकावट, दुःस्वप्न, दुर्गन्धि आदि शारीरिक विकार भी बढ़ने लगते हैं एक शरीर में अनेकों पुरुषों के प्राण का स्थापित होना, इस प्रकार के अनेकों दुखदायी परिणाम उपस्थित करता है। वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों का सान्निध्य ऐसा अनिष्टकर होता है कि पुरुष को बड़े तीव्र झटके के साथ नारकीय यातनाओं के कुण्ड में धकेल देता है।



विवाहित जीवन में किसी दूसरे का साथ शारीरिक संबंध बनाने में अपने ही ज्यादा नुकसान होता है संसार में कभी शांति नहीं आएगी पति पत्नी एक दूसरे प्रेम भाव नहीं रहेंगे ।

पति पत्नी का सच्चा प्यार तभी मजबूत होते हैं जब शारीरिक संबंध अच्छे हो जो स्त्रियां अपने पति पर निष्ठा भाव से संभोग करने में पूरी सहयोग करते हैं ओर निष्ठा से तभी उनकी जिंदगी में भरपूर सच्चा प्यार बने रहेंगे ।

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