Vishnu chalisa पढ़ने के लाभ जानने के लिए हमारे साथ बने रहिए । मित्रों नमस्कार हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है । 🙏
मित्रों भगवान विष्णु चालीसा घर में पढ़ने से वह फायदे हैं जहां हर किसी को पता नहीं है । जो लोग घर में भगवान विष्णु चालीसा पढ़ते हैं उनके घर हमेशा खुशहाल होते हैं । मित्रों भगवान चालीसा लगातार एक हफ्ता पढ़ने के बाद इसका महत्व आप खुद ही समझ जाएंगे । जो भक्त हफ्ते में एक ही बार यानी गुरुवार के दिन भगवान विष्णु चालीसा पढ़ते हैं उन्हें भी भगवान विष्णु की कृपा बने रहते हैं । हिंदू देवी देवताओं में से प्रमुख देवता है भगवान विष्णु इनकी कृपा पाने के लिए बस आप लगातार भगवान विष्णु की चालीसा पढ़िए। आपके घर में बुरे आत्मा से लेकर प्रेतात्मा तक दूर रहेंगे । शायद आपको पता ही है कि घर में यदि प्रेत आत्मा जैसी बुरे आत्मा रहेंगे तो घर में हमेशा संकट भरी होता हैं इसलिए यही सब बुरे आत्माओं से सतर्क रहने के लिए भगवान विष्णु के चालीसा सभी के घर में पढ़ना चाहिए । ताकि उनके जीवन में किसी भी प्रकार के संकट ना आए । ज्यादा से ज्यादा इंसान की दुर्घटना इन्हीं बुरे आत्मा और प्रेत आत्मा के कारण होता है । मित्रों जो लोग भगवान विष्णु चालीसा एक बार पढ़ लिया तो समझ लीजिए वह हमेशा भगवान विष्णु चालीसा पढ़ते रहेंगे क्योंकि उसको पता हो जाता है कि इसका महत्व क्या है। इसलिए मित्रों और देर ना करके आज से ही शुरू करें भगवान विष्णु के चालीसा आपके जीवन में कोई भी कठिन से कठिन कार्य सरल हो जाएगी ।
यदि आप के आर्थिक व्यवस्था में बहुत कमजोर है ओर यदि भगवान विष्णु की कृपा एक बार पढ़ जाए तो आपके अर्थव्यवस्था सुधार हो जाएगी धन की कमी नहीं होगी । इसलिए हम सभी मनुष्य को भगवान विष्णु के चालीसा जरूर पढ़ना चाहिए ।
दोहा
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विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय।
चौपाई
नमो विष्णु भगवान खरारी।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥
तन पर पीतांबर अति सोहत।
बैजन्ती माला मन मोहत॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे।
देखत दैत्य असुर दल भाजे॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
संतभक्त सज्जन मनरंजन।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।
दोष मिटाय करत जन सज्जन॥
पाप काट भव सिंधु उतारण।
कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण।
केवल आप भक्ति के कारण॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।
तब तुम रूप राम का धारा॥
भार उतार असुर दल मारा।
रावण आदिक को संहारा॥
आप वराह रूप बनाया।
हरण्याक्ष को मार गिराया॥
धर मत्स्य तन सिंधु बनाया।
चौदह रतनन को निकलाया॥
अमिलख असुरन द्वंद मचाया।
रूप मोहनी आप दिखाया॥
देवन को अमृत पान कराया।
असुरन को छवि से बहलाया॥
कूर्म रूप धर सिंधु मझाया।
मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।
भस्मासुर को रूप दिखाया॥
वेदन को जब असुर डुबाया।
कर प्रबंध उन्हें ढूँढवाया॥
मोहित बनकर खलहि नचाया।
उसही कर से भस्म कराया॥
असुर जलंधर अति बलदाई।
शंकर से उन कीन्ह लडाई॥
हार पार शिव सकल बनाई।
कीन सती से छल खल जाई॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।
बतलाई सब विपत कहानी॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥
देखत तीन दनुज शैतानी।
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।
हना असुर उर शिव शैतानी॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे।
हिरणाकुश आदिक खल मारे॥
गणिका और अजामिल तारे।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥
हरहु सकल संताप हमारे।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे।
दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥
चहत आपका सेवक दर्शन।
करहु दया अपनी मधुसूदन॥
जानूं नहीं योग्य जप पूजन।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥
करहुं आपका किस विधि पूजन।
कुमति विलोक होत दुख भीषण॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।
कौन भांति मैं करहु समर्पण॥
सुर मुनि करत सदा सेवकाई।
हर्षित रहत परम गति पाई॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई।
निज जन जान लेव अपनाई॥
पाप दोष संताप नशाओ।
भव-बंधन से मुक्त कराओ॥
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ।
निज चरनन का दास बनाओ॥
निगम सदा ये विनय सुनावै।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥
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