तेजस्वी पुत्र प्राप्त कैसे करें सरल उपाय जानें हमारे साथ । मित्र नमस्कार मैं फिर से एक नया जानकारी लेकर हाजिर हूं । मैं आशा करते हैं कि आपके लिए यह जानकारी बहुत ही महत्वपूर्ण होगा ।
मित्रों हम मनुष्य के जीवन में मन कामना सब पूर्ण नहीं होता है । जो मनोकामना पूर्ति होने में असंभव लगता है उसे भक्ति और साधनों के जरिए पूर्ण सकते हैं ।
हमें यदि सुख प्राप्त होती है तो ऊपरवाला का ही इच्छा से होती है हमारे हाथ में कुछ नहीं है बस हमारे कर्म ही सब कुछ होता है । लेकिन हम इतना तक तो कर सकते हैं पुत्र संतान प्राप्ति के लिए भक्ति और साधना । भक्ति, पूजा, आराधना करने से यदि हमें पुत्र संतान प्राप्त हो सकता हैं तो क्यों ना हम इसमें लगे रहे ।
तो चलिए आज हम जानते हैं कैसे भक्ति करने से हमें पुत्र संतान प्राप्त होगी ।
कहा जाता है कि मनुष्य अपने अटूट भक्ति के साथ साधना करने से मन की इच्छा पूर्ण कर सकते हैं । अपने भक्ति और श्रद्धा के साथ यदि अटूट विश्वास है तो ईश्वर भी प्रसन्न होकर उनके मन के इच्छाओं को पूर्ण करने में विवश हो जाते है ।
सूर्य को वेदों में जगत की 👉परमात्मा कहा गया है। समस्त चार और ब्रह्मांड की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक ही सत्य है जो आप स्वयं अपनी आंखों से देख रहे हैं । वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे।
👉सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक.यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी भी है। ऋग्वेद के अनुसार देवताओं कें सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान एवं साधना करने से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है।
👉सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। पर इसमें कोई संदेह नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी बहुत से कार्य उसके बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ लकड़ी एवं पत्थरों से सूर्य मन्दिरों का नैर्माण हुआ। भविष्य पुराण में
👉ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण के विषय में महत्व बताया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है, कि ऋषि दुर्वासा के श्राप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना करने पर भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे। उनमे आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं। 👉वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।
आपको करना क्या होगा बिस्तर से जानिए ।
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प्रत्येक रविवार में भगवान सूर्य देव के लिए उपवास रखना है और प्रतिदिन स्नान करने के बाद भगवान सूर्य देव की इस मंत्र का जाप करके तांबा कलश से जल अर्घ्य दें । उसके बाद अर्घ्य देने समय इस मंत्र जाप करें ।
:- ॐ सूर्य देवाय नमः 🙏
ऐसे करने से भगवान सूर्य देव प्रसन्न होकर आपके घर में तेजस्वी पुत्र संतान देने की कृपा करेंगे ।
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