जन्म सूतक में पूजा: करें या न करें? एक दुविधा जो हर नए परिवार में उठती है

जन्म सूतक में पूजा करनी चाहिए कि नहीं



जन्म सूतक में पूजा: करें या न करें? एक दुविधा जो हर नए परिवार में उठती है

घर में जब एक नन्हा मेहमान आता है, तो खुशियों की लहर दौड़ जाती है। ढोल-नगाड़े, मिठाइयां और बधाइयों का तांता लग जाता है। लेकिन इन खुशियों के साथ ही, हमारे मन में परंपरा और नियमों से जुड़े कुछ सवाल भी उठते हैं। इन्हीं में से एक सबसे बड़ा सवाल है - "जन्म सूतक के दौरान पूजा-पाठ करना चाहिए या नहीं?"

यह एक ऐसा प्रश्न है जो लगभग हर नए माता-पिता और उनके परिवार को दुविधा में डाल देता है। एक तरफ मन ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए आतुर होता है, जिसने इतनी बड़ी खुशी दी है, तो दूसरी तरफ बड़े-बुजुर्गों की बातें और शास्त्रों का डर मन में शंका पैदा करता है। आइए, इस दुविधा को थोड़ा करीब से और सरल भाषा में समझते हैं।

सबसे पहले, यह सूतक है क्या?

सीधे शब्दों में कहें तो, 'सूतक' एक अवधि है जिसे हिंदू धर्म में किसी परिवार में जन्म या मृत्यु के बाद कुछ समय के लिए "अशुद्ध" माना जाता है। जन्म के बाद लगने वाले सूतक को 'जन्म सूतक' या 'जननाशौच' कहते हैं। यह अवधि परिवार के सदस्यों के लिए एक तरह से बाहरी सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों से अलग रहने का समय होता है।

परंपरा के अनुसार, यह अवधि सामान्यतः 10 से 11 दिनों की होती है, जिसके बाद शुद्धि हवन या नामकरण संस्कार के साथ इसका समापन होता है।

सूतक के पीछे का विचार क्या है?

इससे पहले कि हम पूजा पर बात करें, यह समझना ज़रूरी है कि हमारे पूर्वजों ने यह नियम बनाया ही क्यों होगा?

  1. वैज्ञानिक और तार्किक कारण: पुराने समय में, जब चिकित्सा विज्ञान इतना उन्नत नहीं था, तब जच्चा और बच्चा दोनों को संक्रमण का बहुत ज़्यादा खतरा होता था। सूतक एक तरह का 'आइसोलेशन' या 'क्वारंटाइन' पीरियड था। यह नियम सुनिश्चित करता था कि नई माँ को पूरा आराम मिले और बाहर से कोई व्यक्ति आकर बच्चे या माँ तक कोई संक्रमण न पहुँचाए। परिवार के लोग भी बाहर कम जाते थे ताकि वे बाहर से कोई बीमारी घर में न लाएं।

  2. भावनात्मक और मानसिक कारण: बच्चे का जन्म एक बहुत बड़ा बदलाव होता है। माँ शारीरिक और भावनात्मक रूप से एक बड़े बदलाव से गुज़रती है। सूतक की अवधि उसे इस नई भूमिका में ढलने, बच्चे के साथ एक मजबूत रिश्ता बनाने और शारीरिक रूप से ठीक होने का पूरा समय देती है। पूजा-पाठ और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में काफी ऊर्जा और समय लगता है, जिससे माँ को दूर रखकर उसे आराम देने का ही उद्देश्य था।

तो क्या पूजा करना पूरी तरह वर्जित है?

अब आते हैं मुख्य सवाल पर। शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार, सूतक के दौरान मूर्ति पूजा, मंदिर जाना, पवित्र ग्रंथों को छूना, हवन या कोई भी बड़ा धार्मिक अनुष्ठान करना वर्जित माना गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह माना जाता है कि इस दौरान परिवार एक 'लौकिक' अवस्था में होता है और पूजा के लिए जिस 'मानसिक और शारीरिक शुद्धि' की आवश्यकता होती है, वह पूरी नहीं हो पाती।

लेकिन, इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप ईश्वर को याद भी नहीं कर सकते!

ईश्वर भाव के भूखे हैं, कर्मकांड के नहीं। पूजा के दो रूप होते हैं - एक बाहरी और एक आंतरिक। सूतक में बाहरी पूजा पर रोक है, लेकिन आंतरिक यानी मानसिक पूजा पर कोई रोक नहीं है।

सूतक के दौरान आप क्या कर सकते हैं?

  1. मानसिक जाप (मन ही मन प्रार्थना): आप अपने इष्टदेव का नाम मन ही मन जप सकते हैं। इसके लिए न तो माला की ज़रूरत है और न ही किसी आसन की। आप बिस्तर पर लेटे-लेटे भी ईश्वर का धन्यवाद कर सकते हैं। आपकी सच्ची भावना सीधे उन तक पहुँचेगी।

  2. भजन और कीर्तन सुनना: आप मोबाइल या किसी अन्य माध्यम से भक्ति गीत, भजन या कीर्तन सुन सकते हैं। यह मन को शांति देता है और घर में एक सकारात्मक माहौल भी बनाता है।

  3. कृतज्ञता व्यक्त करना: अपनी आँखों को बंद करके, उस परमात्मा को उस सुंदर संतान के लिए धन्यवाद दें जो उसने आपकी झोली में डाली है। कृतज्ञता सबसे बड़ी पूजा है।

  4. सेवा ही पूजा है: इस समय, नई माँ और शिशु की देखभाल करना ही सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ी पूजा है। ईश्वर भी यही चाहेंगे कि आप अपनी इस ज़िम्मेदारी को सबसे पहले निभाएं।

निष्कर्ष

जन्म सूतक कोई अभिशाप या दंड नहीं है, बल्कि यह एक बहुत ही सोच-समझकर बनाई गई व्यवस्था है जो माँ और बच्चे की भलाई को केंद्र में रखती है।

इसलिए, अगर आपके घर में नन्हा मेहमान आया है तो दुविधा में न पड़ें। बाहरी कर्मकांडों और मंदिर जाने की चिंता छोड़कर अपना पूरा ध्यान माँ और बच्चे की देखभाल में लगाएं। मन में ईश्वर के प्रति gratitude (कृतज्ञता) का भाव रखें और मानसिक रूप से उनका स्मरण करते रहें।

याद रखिए, जिस ईश्वर ने जीवन की रचना की है, वह जीवन के इस सबसे अनमोल पड़ाव के नियमों को भला कैसे नहीं समझेगा? आपकी सच्ची भावना और सेवा ही इस समय की सबसे बड़ी और स्वीकार्य पूजा है। सूतक की अवधि समाप्त होने के बाद आप पूरे विधि-विधान से शुद्धि करके पूजा-पाठ फिर से शुरू कर सकते हैं।

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