वेदों के अनुसार ईश्वर कौन है और कहां है ?

वेदों के अनुसार ईश्वर कौन है और कहां है ?

 मानव के साथ और ईश्वर के साथ एक ऐसा रिश्ता है जो कभी समाप्त नहीं होगा 👉क्योंकि हम सब उन्हीं का संतान है । जिस तरह एक माता पिता अपने पुत्र से अलग नहीं हो पाते ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी हम सभी संतान से अलग नहीं हो पाते हैं ।


वर्तमान युग में इंसान की नजर उस जगह पर भटक गया जहां ईश्वर की पर छाया दिखाई नहीं दे रहे । ईश्वर प्रति बस कुछ लोग तो अंधा विश्वास करते हैं तो कुछ लोग विश्वास रखते हैं । 


ईश्वर कभी यह नहीं कहते हैं कि तुम हमें पहचानो हम तुम्हारा मालिक है , तुम हमें पुकारो हम तुम्हें रक्षा करेंगे । ईश्वर कभी ऐसी बात नहीं करते हैं वह तो हर जगह पर समा हुआ है जहां भी आप नजर डालोगे वहीं पर ईश्वर है ।


महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने अपने पार्थ अर्जुन को कहा था 👉कि  तुम किसी भी अवस्था में रहो प्रेम से पुकारो  ।  मुझे पाओगे मुझ तक तुम्हारी आवाज पहुंच जाएगा ।


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यदि कोई व्यक्ति किसी आत्माओं को कष्ट देते हैं तो  परमात्मा शांत नहीं बैठते हैं वह बहुत क्रोधित हो जाते हैं ।

 दूसरे आत्मा को कष्ट देने वाला  को ईश्वर दंड देते हैं 👉क्योंकि आत्मा और परमात्मा के साथ ऐसी कनेक्शन है जो आपको मैं बताया कि एक पिता पुत्र की तरह । ठीक उसी प्रकार आत्मा और परमात्मा की कनेक्शन होता है । 

इसलिए कभी भी किसी भी इंसान के आत्मा को दुख नहीं पहुंचाना चाहिए ।


यदि किसी इंसान की आत्मा आप के वजह से दुख पहुंचते हैं तो आपको नहीं छोड़ेंगे 

परमात्मा ।

परमात्मा ही होते हैं ईश्वर जिसे हम सभी देवी देवताओं को पूजा करते हैं । 


यदि किसी प्राणी को आप भला करते हैं तो इसमें परमेश्वर खुश होते हैं । आप के हार बधाई में स्वयं ईश्वर ही रक्षा करते हैं । सभी लोगों को यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि मनुष्य के अंदर ही ईश्वर का वास होता है । 


 मनुष्य यदि किसी को बद्दुआ दे दीया तो उसे लग जाता है और आशीर्वाद करते हैं तो भी उसे असर पड़ता है यह बात हमेशा ध्यान में रखना चाहिए ।  जब इंसान किसी और को आशीर्वाद या श्राप देते हैं तो यह असर होना तय है क्योंकि परमात्मा हमेशा सभी आत्मा के साथ जुड़े हुए होते हैं ।


 हम मनुष्य सब आत्माएं हैं । और हमारे आत्मा को देखभाल करने वाले परमात्मा होता हैं । परमात्मा को लोग ईश्वर के रूप में पुकारते हैं तो कोई पूजा करते हैं ।


वेद के अनुसार :- व्यक्ति के भीतर पुरुष ईश्वर ही है। परमेश्वर एक ही है। वैदिक और पाश्चात्य मतों में परमेश्वर की अवधारणा में यह गहरा अन्तर है कि वेद के अनुसार ईश्वर भीतर और परे दोनों है । जबकि पाश्चात्य धर्मों के अनुसार ईश्वर केवल परे है। ईश्वर परब्रह्म का सरूप है।


वैष्णव लोग विष्णु को ही ईश्वर मानते है, तो शैव शिव को।


कुछ महायोगी लोग कहते हैं।


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"क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः 

पुरुषविशेष ईश्वरः"। 


ईश्वर जगत के नियंता है और इसका प्रमाण ब्रह्माण्ड की सुव्यवस्थित रचना एवम् इसमें नियम से घटित होने वाली वो घटनाएं है जो कि बिना किसी नियंता के संभव नहीं है। कुछ लोग अल्पज्ञानवश ईश्वर को एक कल्पना मात्र मानते है परन्तु विद्वान तथा बुद्धिमान लोग ईश्वर में पूर्ण विश्वास करते है।


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