दोस्तों नमस्कार कबीरदास के इस वाणी से क्या हमारे जीवन में संकट दूर हो सकता है ? दोस्तों हमारे जीवन में संकट क्यों आता है पहले हमें इस बात को जानने की प्रयास करेंगे । दोस्तों हमारे जीवन में कभी-कभी घौर संकट आ जाता है पर उस समय अधिकांश लोग ईश्वर को स्मरण करते हैं और उन्हें ईश्वर सहायता भी करते हैं । कहने का मतलब यह है जब ईश्वर आपके संकट के समय सहायता कर सकते हैं तो आपके सुख के समय ईश्वर कृपा क्यों नहीं कर सकते हैं ।
जिस व्यक्ति के घोर संकट आ जाता है उससे पहले वह बड़ी सुखी रहता है और उस समय ईश्वर को भूल जाता है । लोग ऐसे गलत कर्म करते हैं जहां उनके जीवन में ऐसे संकट आना निश्चिंत है । प्रत्येक मनुष्य के जीवन में संकट तभी आता है जब आपका कर्म गलत हो। इसलिए अपने कर्म को सही रखना बहुत ही अनिवार्य है । और सुख के समय में ईश्वर को स्मरण करना चाहिए । ईश्वर के प्रति भक्ति और श्रद्धा होने से कभी भी संकट नहीं आता है क्योंकि उनका कृपा आप पर सदैव बने रहते हैं ।
हम इंसान के साथ कभी-कभी ऐसा भी धोखा हो जाता है । दूसरे की गलती के कारण हमें भुगतना पड़ता है । इसीलिए हम इंसान को कदापि इस बात केलिए दुख नहीं जताना चाहिए । क्योंकि ईश्वर हमेशा ऑनलाइन रहते हैं कौन कैसे कर्म करते हैं उन्हें फल जरूर देता है । अगर आप किसी दूसरे के लिए परेशान हैं या आप का संकट आ गया है तो भी आप बेवजह किसी को उंगलियां मत उठाइए ,क्योंकि आपका कर्म का फल कोई लेने वाला नहीं है ।
दोस्तों हम अधिकांश लोगों के भीतर धर्म ज्ञान होता नहीं है जिसके कारण जाने अनजाने में हमसे भूल हो जाता है । और उस भूल को सुधारने के लिए बहुत समय बीत जाता है इसलिए हमारे जीवन में संकट छा जाता है । तो दोस्तों आज हम आपको संत कबीर दास के इस अमृतवाणी उल्लेख किया हूं जिसे पढ़ने के बाद शायद कुछ तो आप ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । मुझे उम्मीद है कि संत कबीर दास के इस वाणी से आपका मन परिवर्तन जरूर होगा ।
कबीर की भक्ति भावना उदाहरण सहित स्पष्ट।
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।
भावार्थ: सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता
झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि अरे जीव! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है? देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है।
कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है। मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले।
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई।
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो गुण की कीमत होती है। पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।
भावार्थ: कबीर कहते कि सुख में भगवान को कोई याद नहीं करता लेकिन दुःख में सभी भगवान से प्रार्थना करते है। अगर सुख में भगवान को याद किया जाये तो दुःख क्यों होगा।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते है अगर हमारा मन शीतल है तो इस संसार में हमारा कोई बैरी नहीं हो सकता। अगर अहंकार छोड़ दें तो हर कोई हम पर दया करने को तैयार हो जाता है।
कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं – अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो? ज्ञान की जागृति को हासिल कर प्रभु का नाम लो।सजग होकर प्रभु का ध्यान करो।वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निद्रा में सो ही जाना है – जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते ?
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते कि हे परमात्मा तुम मुझे केवल इतना दो कि जिसमें मेरे गुजरा चल जाये। मैं भी भूखा न रहूँ और अतिथि भी भूखे वापस न जाए।
दोस्तों कहीं भी आप ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं तो इस बात को हमेशा ध्यान में रखें कि जो भी आप ज्ञान प्राप्त किए हैं उसे अपने मेमोरी के अंदर जरूर रखिए इससे आने वाले समय में आपके जीवन में बहुत कुछ बदल दे सकता है तो दोस्तों मुझे उम्मीद है कि हमारी यह जानकारी आपको पसंद आया होगा और भी जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे साथ बने रहिए आपका दिन शुभ हो ।
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