दुर्गा माता आपको जल्दी कृपा करेंगे बस चुपचाप ये काम कर लीजिए

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Durga mantra


दुर्गा माता की पावरफुल मंत्र :


दुर्गा माता आपको जल्दी ही कृपा करेंगे बस एक बार यह काम कर लीजिए,  मित्र नमस्कार सबसे पहले तो बता दें कि हर साल दुर्गा माता की पूजा भारतवर्ष में नहीं बल्कि पूरे दुनिया में होती है और दुर्गा माता की पहले स्वरूप के विषय में आशा करता हूं जो लोग नहीं जानते हैं आज मैं उनको बताने जा रहा हूं कृपया इस पोस्ट को पढ़कर जानकारी प्राप्त कर लें ।



दुर्गा माता पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।



धर्म शास्त्र के अनुसार कहा गया है कि माता के जो भी भक्त जल्द कृपया पाना चाहते हैं तो भक्त माता की इस मंत्रों का सही से उच्चारण करके सुबह शाम पूजा आराधना अवश्य करें इससे जल्द मिलेंगे माता की कृपा ।


Durga mantra


दुर्गा माता की पहला मंत्र 


वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥


दुर्गा माता को शैलपुत्री का स्वरूप क्यों धारण करना पड़ा जानकारी प्राप्त करें ।


एक बार जब सती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, पर भगवान शंकर को नहीं। सती अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। परन्तु सती संतुष्ट नही हुईं।


सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव था। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपनेआप को जलाकर भस्म कर लिया।


इस दारुण दुख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने तांडव करते हुये उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी फिर से भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिव की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

मां को इस नाम से भी जाना जाता है

 सती, पार्वती, वृषारूढ़ा, हेमवती और भवानी भी इसी देवी के अन्य नाम हैं।

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