भगवत गीता की शुरुआत कब और कैसे हुए ? वास्तविक जानें


भगवत गीता की शुरुआत



भगवत गीता की शुरुआत कब और कैसे हुए ?

  महाभारत में वर्तमान कलियुग तक की घटनाओं का विवरण मिलता है इसी युग के प्रारंभ में आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने अपने मित्र तथा भक्त अर्जुन को भागवत गीता का उपदेश दिया था । उनकी वार्ता जो मानव इतिहास के सबसे महान दार्शनिक तथा धार्मिक बर्ताव में से एक है इस महायुद्ध के शुभारंभ के पूर्व हुई जो धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों को तथा उनके चचेरे भाई पांडवों या पांडु पुत्र के मध्य होने वाला भ्रातृ घातक एक भयानक संघर्ष था ।


धृतराष्ट्र तथा पांडू भाई भाई थे जिनका जन्म कुरु वंश में हुआ था और ए राजा भरत के वंश थे जिनके नाम पर ही महाभारत नाम पड़ा क्योंकि बड़ा भाई धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था अतएव राज सिंहासन उसे नाम मिलकर उसके छोटे भाई पांडु को मिला था ।


पांडु की मृत्यु अल्पायु में ही हो गई है तब उसके 5 पुत्र युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल तथा सहदेव धृतराष्ट्र की देखरेख में रख दिए गए क्योंकि उसे कुछ कल के लिए राजा बना दिया गया था । इस तरह धृतराष्ट्र तथा पांडु के पुत्र एक ही राजमहल में बढ़े हुए हैं दोनों ही  गुरु द्रोण द्वारा सैन्य कला का प्रशिक्षण दिया गया और  भीष्म पितामह उनके परामर्शदाता थे ।


तथापि धृतराष्ट्र के पुत्र सबसे बड़ा पुत्र दुर्योधन पांडवों से घृणा और ईर्ष्या करता था।  अंधा तथा दुर्बल मन धृतराष्ट्र  पांडू पुत्र के स्थान पर अपने पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहता था । इस तरह धृतराष्ट्र की सहमति से दुर्योधन ने पांडु के युवा पुत्र की हत्या करने का षड्यंत्र रचा । पांचो पांडव अपने चाचा विदुर तथा अपने ममेरे भाई भगवान कृष्ण के संरक्षण में रहने के कारण उनके प्राण घातक आक्रमणों के बाद भी अपने प्राणों को सुरक्षित रख पाए । भगवान कृष्ण कोइ सामान्य व्यक्ति नहीं अपितु साक्षात परम ईश्वर हैं जिन्होंने इस धरा धाम में अवतार लिया था और अब एक समकालीन राजकुमार की भूमिका निभा रहे थे ।यह पांडव की पत्नी कुंती माता के भतीजा थे इस तरह संबंधी के रूप में तथा धर्म के शाश्र्वत पालन होने के कारण वह धर्म परायण पांडू पुत्र का पक्ष लेते रहें और उनकी रक्षा करते रहे ।

किंतु अत्यंत चतुर दुर्योधन ने पांडवों को धृत कीड़ा के लिए ललकारा उस निर्णायक सपर्धा में दुर्योधन तथा उसके भाइयों ने पांडवों की सति पत्नी द्रौपदी पर अधिकार प्राप्त कर लिया और फिर उसे राजाओं तथा राजकुमारों की सभा के मध्य निर्वस्त्र करने का प्रयास किया । भगवान कृष्ण के दिव्या हस्तक्षेप से उसकी रक्षा हो सकी उस क्रिया में छलके प्रयोग के कारण पांडवों की हार हुई तथा उन्हें अपने राज्यों से वंचित होना पड़ा और 13 वर्ष तक वनवास के लिए जाना पड़ा ।


आइए जानते हैं इस धरती पर सबसे पहले कौन आया था?

बनवास से लौटकर पांडवों ने धर्म सम्मत विधि से दुर्योधन से अपना राज्य मांगा किंतु उसने देने से इनकार कर दिया क्षत्रियों के शास्त्रों में मोदी तो कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए पांचों पांडवों ने अंत में अपना पूरा राज्य ना मांग कर केवल 5 गांव की मांग रखी किंतु दुर्योधन ने सुई की नोक पर भी भूमि देने के लिए सहमत नहीं हुआ ।

अभी तक तो पांडव सहनशील बने रहे लेकिन आब उनके लिए युद्ध करना आवश्यक हो गया । 

विश्व भर के राजकुमारों में से कुछ धृतराष्ट्र के पुत्रों के पक्ष में थे तो कुछ पांडवों के पक्ष में उस समय कृष्णा स्वयं पांडू पुत्र के संदेशवाहक बनकर शांति का संदेश लेकर धृतराष्ट्र की राज्यसभा में गए जब उनकी याचना अस्वीकृत हो गई तो युद्ध निश्चित था ।

अत्यंत सच्चरित्र पांचों पांडवों ने कृष्णा को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के रूप में पहचान लिया था किंतु धृतराष्ट्र के दुष्ट पुत्र उन्हें नहीं पहचान पाए थे फिर भी कृष्णा ने विपक्षियों की इच्छा अनुसार ही युद्ध में सम्मिलित होने का प्रस्ताव रखा । ईश्वर के रूप में यह युद्ध नहीं करना चाहते थे किंतु जो भी उनकी सेना का उपयोग करना चाहे कर सकता था प्रतिबंध यह था कि एक और कृष्णा की संपूर्ण सेना होगी तथा दूसरी और स्वयं एक परामर्शदाता तथा सहायक के रूप में उपस्थित रहेंगे राजनीति में कुशल दुर्योधन ने अतरो ता से कृष्ण की सेना झपट ली जबकि पांडवों ने कृष्ण को उतने ही उत्तरोत्तर से ग्रहण किया ।

इस प्रकार कृष्णा अर्जुन के सारथी बने और उन्होंने इस सुप्रसिद्ध धनुर्धर का रात झांकना शिकार किया इस तरह हम उस बिंदु तक पहुंच जाते हैं जहां से भगवत गीता का शुभारंभ होता है 👉 दोनों और किशन आई युद्ध के लिए तैयार खड़ी हैं और धृतराष्ट्र अपने सचिव संजय से पूछ रहा है कि उन सेनाओं ने क्या किया ?

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