कबीर के दोहे हिंदी में, कबीर के प्रभावशाली दोहे
संत कबीर दास ने जिस भाषा का प्रयोग किया अपने दोहे को प्रकाशित करने शायद इसे समझना सबके वश की बात नहीं है क्योंकि वह अपने गांव की भाषा का प्रयोग किया है । लेकिन गांव की भाषा से जिस प्रकार कबीर दास ने जगत कल्याण के लिए दोहे प्रकाशित किया है और इसे समझना सभी के लिए जरूरत है । कबीरदास के एक-एक दोहे में इंसान को बहुत ही अच्छा प्रभावित करते हैं । यदि व्यक्ति दोहे को समझने की कोशिश करते हैं तो उनके सफलता के मार्ग बड़ी आसानी से दिख जाएंगे । दोस्तों आप तो जानते हैं संस्कृत भाषा हर कोई नहीं जानते हैं मगर संस्कृत भाषा अगर कोई जानते हैं तो उन्हें पता है संस्कृत भाषा में कितना प्रभावित करते हैं । संस्कृत भाषा से अगर आप सर्वदा बात करते हैं तो आप के भीतर कई प्रकार के बीमारी भी दूर हो सकता है । संस्कृत भाषा बोलने वाले व्यक्ति का शरीर हमेशा स्वस्थ रहते हैं और तो और संस्कृत भाषा बोलने वाले व्यक्ति के ज्ञान बहुत ही तेज होते हैं । हिंदुओं में जितने भी मंत्र तंत्र है संस्कृत भाषा से प्रयोग किया जाता है । जितने भी प्रभावशाली शक्तिशाली मंत्र संस्कृत भाषा से ही प्रयोग किया जाता है और यह बात आप इंकार नहीं कर सकते हैं ।
दोस्तों नमस्कार जब आप हमारे वेबसाइट में आए गए हैं तो कबीर दास के छे इंपॉर्टेंट दोहे अर्थ सहित बताया गया है हमें आशा है इस दोहे को पढ़ने के बाद आप भी प्रभावित होंगे और आपके जीवन में कुछ बदलाव जरूर आएंगे ।
दोस्तों कोई भी संत की ज्ञान की बातें सुनना या पढ़ना कोई बड़ा बात नहीं है । लेकिन आप जो भी सुन रहे हैं और पढ़ रहे हैं इसे अपने मेमोरी में रखना महत्वपूर्ण होते हैं । अगर आप हमारे दिया हुआ दोहे को पढ़कर अपने मेमोरी में रख सकते हैं तो हमें आशा है कि आपके जिंदगी में बदलाव जरूर आएंगे ।।
1- लंबा मारग दूरि घर, बिकट पंथ बहु मार।
कहौ संतों क्यूं पाइए, दुर्लभ हरि दीदार।
भावार्थ: घर दूर है मार्ग लंबा है रास्ता भयंकर है और उसमें अनेक पातक चोर ठग हैं। हे सज्जनों ! कहो , भगवान् का दुर्लभ दर्शन कैसे प्राप्त हो?संसार में जीवन कठिन है – अनेक बाधाएं हैं विपत्तियां हैं – उनमें पड़कर हम भरमाए रहते हैं – बहुत से आकर्षण हमें अपनी ओर खींचते रहते हैं – हम अपना लक्ष्य भूलते रहते हैं – अपनी पूंजी गंवाते रहते हैं।
2- इस तन का दीवा करों, बाती मेल्यूं जीव।
लोही सींचौं तेल ज्यूं, कब मुख देखों पीव।
भावार्थ: इस शरीर को दीपक बना लूं, उसमें प्राणों की बत्ती डालूँ और रक्त से तेल की तरह सींचूं – इस तरह दीपक जला कर मैं अपने प्रिय के मुख का दर्शन कब कर पाऊंगा? ईश्वर से लौ लगाना उसे पाने की चाह करना उसकी भक्ति में तन-मन को लगाना एक साधना है तपस्या है – जिसे कोई कोई विरला ही कर पाता है !
3- कबीर कहा गरबियौ, ऊंचे देखि अवास ।
काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास।
भावार्थ: कबीर कहते है कि ऊंचे भवनों को देख कर क्या गर्व करते हो ? कल या परसों ये ऊंचाइयां और आप भी धरती पर लेट जाएंगे ध्वस्त हो जाएंगे और ऊपर से घास उगने लगेगी ! वीरान सुनसान हो जाएगा जो अभी हंसता खिलखिलाता घर आँगन है ! इसलिए कभी गर्व न करना चाहिए
4- जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि ।
जिनि पंथूं तुझ चालणा सोई पंथ संवारि ।
भावार्थ: जन्म और मरण का विचार करके , बुरे कर्मों को छोड़ दे। जिस मार्ग पर तुझे चलना है उसी मार्ग का स्मरण कर – उसे ही याद रख – उसे ही संवार सुन्दर बना।
5- मैं मैं मेरी जिनी करै, मेरी सूल बिनास ।
मेरी पग का पैषणा मेरी गल की पास ।
भावार्थ: ममता और अहंकार में मत फंसो और बंधो – यह मेरा है कि रट मत लगाओ – ये विनाश के मूल हैं – जड़ हैं – कारण हैं – ममता पैरों की बेडी है और गले की फांसी है।
6- कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार ।
हलके हलके तिरि गए बूड़े तिनि सर भार !।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि जीवन की नौका टूटी फूटी है जर्जर है उसे खेने वाले मूर्ख हैं जिनके सर पर विषय वासनाओं का बोझ है वे तो संसार सागर में डूब जाते हैं – संसारी हो कर रह जाते हैं दुनिया के धंधों से उबर नहीं पाते – उसी में उलझ कर रह जाते हैं पर जो इनसे मुक्त हैं – हलके हैं वे तर जाते हैं पार लग जाते हैं भव सागर में डूबने से बच जाते हैं।
कबीर दास के इस दोहे को पढ़ने के बाद आपको कैसे लगा आप कैसे महसूस कर रहे हैं हमें कमेंट करके जरूर बताइए और भी जानकारी जानना चाहते हैं और भी इसी तरह दोहे प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे साथ जुड़े रहिए ।