ब्रह्मांड का सबसे शक्तिशाली 9 मंत्र: जाप करते ही मिलेंगे मन इच्छा वरदान

bholanath biswas
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mantra tantra



ब्रह्मांड का सबसे शक्तिशाली मंत्र ।। एक बार जाप करते ही मिलेंगे मन इच्छा वरदान ।।


सबसे बड़ा मंत्रों आज हम अपने लेख के जरिए आपको बताने जा रहे हैं दोस्तों नमस्कार हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है । जो मित्रों भगवान के प्रति  स्मरण करके अपनी मनोकामना पूर्ण करना चाहते हैं आज उनके लिए यह पोस्ट बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाले हैं । क्योंकि ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली इस मंत्र के जरिए ईश्वर को जल्द प्रसन्न कर सकते हैं । वैसे तो देवी देवताओं के हार मंत्रों में शक्ति होती है लेकिन इस मित्रों में आपके चेतना को सर्वप्रथम जागृत करेंगे जिससे खुद को पहचानने के लिए आप समर्थ हो जाएंगे । तो चलिए विस्तार से जानते हैं ।



 ब्रह्म सन्ध्या - जो शरीर व मन को पवित्र बनाने के लिए की जाती है। इसके अंतर्गत पाँच कृत्य करने होते हैं।


(अ) पवित्रीकरण - बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें एवं मंत्रोच्चारण के बाद जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें।


1) मंत्र

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा।

यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥

ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु।


(ब) आचमन - वाणी, मन व अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें। हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाए।

2) मंत्र

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।

ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा।

ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा।


(स) शिखा स्पर्श एवं वंदन - शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए भावना करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे। निम्न मंत्र का उच्चारण करें।


3) मंत्र


ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते।

तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥


(द) प्राणायाम - श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं। प्राणायाम निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ किया जाए।

4) मंत्र

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।


(य) न्यास - इसका प्रयोजन है-शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि देव-पूजन जैसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके। बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उनमें भिगोकर बताए गए स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें।


5) मंत्र


ॐ वां मे आस्येऽस्तु। (मुख को)

ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु। (नासिका के दोनों छिद्रों को)

ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु। (दोनों नेत्रों को)

ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु। (दोनों कानों को)

ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु। (दोनों भुजाओं को)

ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु। (दोनों जंघाओं को)

ॐ अरिष्टानि मेऽंगानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु। (समस्त शरीर पर)

आत्मशोधन की ब्रह्म संध्या के उपरोक्त पाँचों कृत्यों का भाव यह है कि सााधक में पवित्रता एवं प्रखरता की अभिवृद्धि हो तथा मलिनता-अवांछनीयता की निवृत्ति हो। पवित्र-प्रखर व्यक्ति ही भगवान के दरबार में प्रवेश के अधिकारी होते हैं।


(२) देवपूजन - गायत्री उपासना का आधार केन्द्र महाप्रज्ञा-ऋतम्भरा गायत्री है। उनका प्रतीक चित्र सुसज्जित पूजा की वेदी पर स्थापित कर उनका निम्न मंत्र के माध्यम से आवाहन करें। भावना करें कि साधक की प्रार्थना के अनुरूप माँ गायत्री की शक्ति वहाँ अवतरित हो, स्थापित हो रही है।


6) मंत्र

ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।

गायत्रिच्छन्दसां मातः! ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥

ॐ श्री गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि, ततो नमस्कारं करोमि।


(ख) गुरु - गुरु परमात्मा की दिव्य चेतना का अंश है, जो साधक का मार्गदर्शन करता है। सद्गुरु के रूप में पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी का अभिवंदन करते हुए उपासना की सफलता हेतु गुरु आवाहन निम्न मंत्रोच्चारण के साथ करें।

7) मंत्र

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः।

गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

अखण्डमंडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्।

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।


(ग) माँ गायत्री व गुरु सत्ता के आवाहन व नमन के पश्चात् देवपूजन में घनिष्ठता स्थापित करने हेतु पंचोपचार द्वारा पूजन किया जाता है। इन्हें विधिवत् संपन्न करें। जल, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप तथा नैवेद्य प्रतीक के रूप में आराध्य के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं। एक-एक करके छोटी तश्तरी में इन पाँचों को समर्पित करते चलें। जल का अर्थ है - नम्रता-सहृदयता। अक्षत का अर्थ है - समयदान अंशदान। पुष्प का अर्थ है - प्रसन्नता-आंतरिक उल्लास। धूप-दीप का अर्थ है - सुगंध व प्रकाश का वितरण, पुण्य-परमार्थ तथा नैवेद्य का अर्थ है - स्वभाव व व्यवहार में मधुरता-शालीनता का समावेश।


ये पाँचों उपचार व्यक्तित्व को सत्प्रवृत्तियों से संपन्न करने के लिए किये जाते हैं। कर्मकाण्ड के पीछे भावना महत्त्वपूर्ण है।


(३) जप - गायत्री मंत्र का जप न्यूनतम तीन माला अर्थात् घड़ी से प्रायः पंद्रह मिनट नियमित रूप से किया जाए। अधिक बन पड़े, तो अधिक उत्तम। होठ हिलते रहें, किन्तु आवाज इतनी मंद हो कि पास बैठे व्यक्ति भी सुन न सकें। जप प्रक्रिया कषाय-कल्मषों-कुसंस्कारों को धोने के लिए की जाती है।


8) मंत्र

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।


इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करते हुए माला की जाय एवं भावना की जाय कि हम निरन्तर पवित्र हो रहे हैं। दुर्बुद्धि की जगह सद्बुद्धि की स्थापना हो रही है।


(४) ध्यान - जप तो अंग-अवयव करते हैं, मन को ध्यान में नियोजित करना होता है। साकार ध्यान में गायत्री माता के अंचल की छाया में बैठने तथा उनका दुलार भरा प्यार अनवरत रूप से प्राप्त होने की भावना की जाती है। निराकार ध्यान में गायत्री के देवता सविता की प्रभातकालीन स्वर्णिम किरणों को शरीर पर बरसने व शरीर में श्रद्धा-प्रज्ञा-निष्ठा रूपी अनुदान उतरने की भावना की जाती है, जप और ध्यान के समन्वय से ही चित्त एकाग्र होता है और आत्मसत्ता पर उस क्रिया का महत्त्वपूर्ण प्रभाव भी पड़ता है।


(५) सूर्यार्घ्यदान - विसर्जन-जप समाप्ति के पश्चात् पूजा वेदी पर रखे छोटे कलश का जल सूर्य की दिशा में र्अघ्य रूप में निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ चढ़ाया जाता है।


9) मंत्र

ॐ सूर्यदेव! सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥

ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः॥

भावना यह करें कि जल आत्म सत्ता का प्रतीक है एवं सूर्य विराट् ब्रह्म का तथा हमारी सत्ता-सम्पदा समष्टि के लिए समर्पित-विसर्जित हो रही है।


 इतना सब करने के बाद पूजा स्थल पर देवताओं को करबद्ध नतमस्तक हो नमस्कार किया जाए व सब वस्तुओं को समेटकर यथास्थान रख दिया जाए। जप के लिए माला तुलसी या चंदन की ही लेनी चाहिए। सूर्योदय से दो घण्टे पूर्व से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक कभी भी गायत्री उपासना की जा सकती है। मौन-मानसिक जप चौबीस घण्टे किया जा सकता है। माला जपते समय तर्जनी उंगली का उपयोग न करें तथा सुमेरु का उल्लंघन न करें।


कहां गया है कि भक्ति में बहुत शक्ति होती है अगर आपके मन में भक्ति और श्रद्धा है तो मंत्र तंत्र आपके पास जल्द सिद्ध हो सकता है और मनोकामना भी पूर्ण हो सकता है । दोस्तों यदि हमारे यह जानकारी आपको पसंद आया तो कमेंट अवश्य करें और यह जानकारी अपने दोस्तों को शेयर करना ना भूलें आपका दिन शुभ हो जय हिंद ।


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