जनरल नॉलेज भारत के बारे में जानें और अपने ज्ञान बढ़ाइए
तो चलिए जानते हैं भारत के कुछ जनरल नॉलेज ।
प्राचीन भारत में धार्मिक आंदोलन ➤ छठी शताब्दी ई.पू. में उत्तर भारत की मध्य गंगा घाटी क्षेत्र में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हुआ, जबकि ठीक इसी समय चीन में कन्फ्यूशियस तथा लाओत्से ईरान में जरथ्रुष्ट और यूनान में पाइथागोरस धार्मिक आंदोलन भी चल रहा था जो पुरातन मान्यताओं को चुनौती दे रहा था। ➤ भारत में ई.पू. छठी शताब्दी में प्रचलित विभिन्न सम्प्रदायों में से आगे चलकर केवल बौद्ध एवं जैन धर्म ही अधिक प्रसिद्ध हुए। ➤ भारत के इन धार्मिक आंदोलनों ने पुरातन वैदिक ब्राह्मण धर्म के अनेक दोषों पर प्रहार किया। इसलिए इसे सुधारवादी आंदोलन कहा जाता है ।
इस काल में धार्मिक अनुष्ठानों में पेचीदगियों के कारण ब्राह्मणों का आधिपत्य स्थापित होने लगा जो दूसरे वर्णों, विशेषकर क्षत्रियों को पसंद नहीं आया। एक बात स्मरणीय है कि बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों क्षत्रियों द्वारा ही शुरू किये गये। बौद्ध धर्म महात्मा बुद्ध और बौद्ध धर्म ➤ महात्मा बुद्ध का जन्म 583 ई.पू. में नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के समीप लुम्बनी ग्राम में शाक्य क्षत्रिय कुल में हुआ था। ➤ महात्मा बुद्ध का मूल नाम सिद्धार्थ था। इनके अन्य नाम तथागत, गौतम, बुद्ध तथा शाक्यमुनि थे। ➤ इनके पिता का नाम शुद्धोधन तथा माता का नाम महामाया था। ➤ इनके जन्म के सातवें दिन ही इनकी माता महामाया की मृत्यु हो गयी थी, अत: इनका पालन-पोषण इनकी मौसी प्रजापत
गौतमी ने किया था। ➤ 16 वर्ष की आयु में इनका विवाह यशोधरा नामक राजकुमारी से हुआ। 28 वर्ष की आयु में इन्हें पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इनके पुत्र का नाम राहुल था। ➤ महात्मा बुद्ध के जीवन के चार दृश्यों - बूढ़ा, रोगी, अर्थी एवं संन्यासी ने उन्हें आध्यात्म की ओर प्रवृत्त किया। ➤ 29 वर्ष की आयु में इन्होंने सत्य की खोज के लिए गृह-त्याग कर दिया। ➤ गृह-त्याग के पश्चात् इन्होंने गुरु आलार कलाम से उपनिषदीय शिक्षा ग्रहण की। ➤ 35वें वर्ष में गया में निरंजना नदी के किनारे उरूवेला में अश्वत्थ वृक्ष (पीपल) के नीचे वैशाख पूर्णिमा की रात्रि में समाधिस्थ अवस्था में इनको ज्ञान प्राप्त हुआ।
➤ ज्ञान प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने तपस्यु और मिल्लक नामक दो बंजारों को सर्वप्रथम दीक्षा दी। ➤ महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश (प्रवचन) सारनाथ में दिया। इनके प्रथम उपदेश को बौद्ध ग्रन्थों में धर्म-चक्र-प्रवर्तन की संज्ञा दी गयी है। ➤ 483 ई.पू. में 80 वर्ष की आयु में महात्मा बुद्ध का देहान्त कुशीनगर में हुआ। इनके देहांत को बौद्ध ग्रन्थों में महापरिनिर्वाण कहा गया है। बौद्ध महासंगीतियाँ संगीति समय स्थान शासक अध्यक्ष प्रथम बौद्ध संगीति 483 ई.पू. सप्तपर्णि गुफा, राजगृह (बिहार) अजातशत्रु महाकस्सप द्वितीय बौद्ध संगीति 383 ई.पू. चुल्लबग्ग (वैशाली बिहार) कालाशोक साबकमीर तृतीय बौद्ध संगीति 250 ई.पू. पाटलिपुत्र (मगध की राजधानी) अशोक मोग्गलिपुत्र तिस्स चतुर्थ बौद्ध संगीति 72 ई.पू. कुंडलवन (कश्मीर) कनिष्क वसुमित्र नोट : चतुर्थ बौद्ध संगीति में बौद्धधर्म हीनयान और महायान में बँट गया। बुद्ध के उपदेश ➤ बुद्ध ने सांसारिक दु:खों के सम्बन्ध में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया। ये आर्य सत्य हैं- 1. दु:ख, 2. दु:ख समुदाय, 3. दु:ख निरोध, और 4. दु:ख निरोधगामिनी प्रतिपद्या। ➤ सांसारिक दु:खों से मुक्ति हेतु बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग की बात कही। अष्टांगिक मार्ग सम्यक् दृष्टि सत्य और असत्य को पहचानने की शक्ति सम्यक् संकल्प इच्छा एवं हिंसा रहित संकल्प सम्यक् वाणी सत्य एवं मृदु वाणी सम्यक् कर्म सत्कर्म, दान, दया, सदाचार, अहिंसा आदि । सम्यक् आजीव जीवनयापन का सदाचारपूर्ण एवं उचित मार्ग सम्यक् व्यायाम विवेकपूर्ण प्रयत्न सम्यक् स्मृति अपने कर्मों के प्रति विवेकपूर्ण ढंग से सहज रहना सम्यक् समाधि चित्त की एकाग्रता बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं- बुद्ध, संघ और धम्म। ➤ बुद्ध द्वारा स्थापित संघ की सभा में प्रस्ताव पाठ को अनुसावन कहते थे। संघ में प्रवेश पाने को उपसम्पदा कहा जाता था। बौद्ध धर्म ग्रन्थ ➤
आरम्भिक बौद्ध ग्र्रन्थ पालि भाषा में लिखे गये। ➤ अंगुत्तर निकाय में छठी शताब्दी ई.पू. के 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। ➤ खुद्दक निकाय में जातक कथाओं का वर्णन किया गया है। जातक कथाएँ बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएँ हैं। बौद्ध ग्रन्थों में बौद्ध संगीति त्रिपिटक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। त्रिपिटक में शामिल बौद्ध ग्रन्थ निम्नवत् हैं- 1. विनय पिटक- इसमें संघ सम्बन्धी नियमों, दैनिक आचार-विचार व विधि निषेधों का संग्रह है। 2. सुत्तपिटक- इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धान्त व उपेदशों का संग्रह है। 3. अभिधम्मपिटक- यह प्रश्नोत्तर क्रम में है। इसमें दार्शनिक सिद्धान्तों का संगह है। ➤ पालिभाषा में कुछ महाकाव्यों की रचना हुई। इन महाकाव्यों में दीपवंश और महावंश सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इनमें सिंहलद्वीप (श्रीलंका) का उल्लेख मिलता है। महात्मा बुद्ध के जीवन से सम्बद्ध प्रमुख घटनाएँ घटना घटनाओं का नामकरण गृह त्याग की घटना महाभिनिष्क्रमण ज्ञान प्राप्ति की घटना सम्बोध प्रथम उपदेश देने की घटना धर्म-चक्र-प्रवर्तन देहांत महापरिनिर्वाण महात्मा बुद्ध के उपदेशों के मूल तत्त्व ➤ उन्होंने अपने उपदेशों में कर्म के सिद्धान्त पर बहुत बल दिया है। उनके अनुसार वर्तमान के निर्णय भूतकाल के कार्य करते हैं बुद्ध के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता है। उनका कहना था कि अपने पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए मानव को बार-बार जन्म लेना पड़ता है। ➤ बुद्ध ने कहा कि निर्वाण की प्राप्ति प्रत्येक मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य है। इससे उनका तात्पर्य यह था कि व्यक्ति को असीमित इच्छा, भोग-विलास का परित्याग कर देना चाहिए। ➤ महात्मा बुद्ध ने ईश्वर के अस्तित्त्व को न तो स्वीकार किया और न ही नकारा है। ➤ महात्मा बुद्ध ने वेदों की प्रमाणिकता को स्पष्ट रूप से नकारा है। ➤ महात्मा बुद्ध समाज में उँच-नीच के कट्टर विरोधी थे। जैन धर्म ➤ जैन शब्द जिन शब्द से बना है। जिन का अर्थ है- विजेता अर्थात् जिसने इन्द्रियों को अपने वश में कर लिया है। ➤ जैन धर्म में तीर्थंकर का अर्थ संसार सागर से पार कराने के लिए औरों को मार्ग बताने वाला होता है। ➤ ऋषभदेव को जैन धर्म के संस्थापक, प्रवर्तक एवं पहले तीर्थंकर के रूप में जाना जाता है। ➤ पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें एवं प्रथम ऐतिहासिक तीर्थंकर थे। वे काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे। ➤ जैन धर्म को सुनियोजित और सुव्यस्थित कर उसके ज्ञान एवं दर्शन के तत्त्व के वास्तिविक प्रवर्तन का श्रेय पार्श्वनाथ को ही है। ➤ पार्श्वनाथ को 30 वर्ष की आयु में वैराग्य उत्पन्न हुआ, जिस कारण वे गृह त्यागकर संन्यासी हो गये। उन्होंने सम्मेदपर्वत पर कठोर तपस्या कर 84वें दिन कैवल्य की प्राप्ति की। ➤ पार्श्वनाथ के अनुयायिओं को निर्ग्रंथ कहा गया। ➤ पार्श्वनाथ की प्रथम अनुयायी इनकी माता वामा तथा पत्नी प्रभावती थी। ➤ पार्श्वनाथ ने 4 महाव्रतों- अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह एवं अस्तेय का प्रतिपादन किया। इनमें से सर्वाधिक महत्त्व इन्होंने अहिंसा पर दिया। ➤ पार्श्वनाथ ने कायाक्लेश एवं तपश्चर्या से ही मोक्ष प्राप्ति की बात कही। इन्होंने भिक्षुकों को श्वेत वस्त्र पहनने का आदेश दिया। ➤ पार्श्वनाथ के प्रमुख समर्थकों में केशि का नाम उल्लेखनीय है। ➤ पार्श्वनाथ का प्रतीक चिह्न ऋजदार सर्प था। ➤ महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर थे। इन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
➤ महावीर स्वामी का जन्म 540 ई.पू. में बिहार राज्य के वैशाली जिला स्थित कुंडग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम वर्धमान महावीर था। वे क्षत्रिय वर्ण एवं ज्ञातृक/शातृक कुल में पैदा हुए थे। ➤ महावीर स्वामी क पिता सिद्धार्थ ज्ञातृक/शातृक कुल के मुखिया अथवा सरदार थे और माता त्रिशाला वैशाली के लिच्छवि कुल के प्रमुख चेटक की बहन थी। ➤ महावीर का विवाह कुण्डिन्य गोत्र की कन्या यशोदा से हुआ। कालांतर में एक पुत्री के पिता बने। इनके पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था, जिसकी शादी जामालि नामक एक क्षत्रिय से हुई। ➤ महावीर ने 30 वर्ष की आयु में माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने बड़े भाई नंदिवर्धन से अनुमति लेकर घर को त्याग दिया। घर त्यागने के बाद स्वामी जी संन्यासी (यती) हो गये। महावीर स्वामी 23वें तीर्थंकर ...... पूरे जानकारी प्राप्त के लिए कमेंट करें ।