Tomorrow Tithi यह सिर्फ एक तारीख नहीं, हमारी परंपराओं का आईना है!

tomorrow tithi

aaj kaun si tithi hai

kal ki tithi,

आज क्या है त्यौहार

आज क्या है,

aaj kaun sa din hai,


कल की तिथि: यह सिर्फ एक तारीख नहीं, हमारी परंपराओं का आईना है!

अक्सर हमारे घरों में, खासकर किसी पूजा-पाठ या त्यौहार से पहले, यह सवाल ज़रूर उठता है - "कल तिथि कौन सी है?" यह सवाल जितना सीधा लगता है, इसका जवाब उतना ही गहरा और हमारी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अंग्रेजी कैलेंडर की तारीखों के इतने आदी हो गए हैं कि 'तिथि' का महत्व कहीं पीछे छूट सा गया है।

लेकिन तिथि सिर्फ एक तारीख नहीं है। यह हमारे समय को मापने का वो प्राचीन तरीका है जो हमें सीधे चाँद, सूरज और ब्रह्मांड से जोड़ता है।

आखिर यह 'तिथि' है क्या?

अगर आसान भाषा में समझें तो 'तिथि' एक 'चंद्र दिवस' है। जिस तरह अंग्रेजी कैलेंडर सूरज की गति पर आधारित है, उसी तरह हमारा पारंपरिक हिंदू पंचांग चाँद की कलाओं पर चलता है।

जब चाँद, सूरज से 12 डिग्री की दूरी तय कर लेता है, तो एक तिथि पूरी होती है। इसी वजह से कोई तिथि 24 घंटे से थोड़ी कम (लगभग 20 घंटे) की भी हो सकती है और कभी-कभी 24 घंटे से थोड़ी ज़्यादा (लगभग 26 घंटे) की भी। यही कारण है कि कभी-कभी एक ही तिथि दो दिनों तक चलती है या कभी कोई तिथि एक ही दिन में शुरू होकर खत्म भी हो जाती है (जिसे क्षय तिथि कहते हैं)।

हमारे महीने में दो पक्ष होते हैं:

  1. शुक्ल पक्ष: अमावस्या के बाद जब चाँद का आकार बढ़ने लगता है, तो उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं। इसका अंत पूर्णिमा को होता है।

  2. कृष्ण पक्ष: पूर्णिमा के बाद जब चाँद का आकार घटने लगता है, तो उसे कृष्ण पक्ष कहते हैं। इसका अंत अमावस्या को होता है।

दोनों पक्षों में एकम (प्रतिपदा) से लेकर चतुर्दशी तक 14 तिथियाँ होती हैं और पंद्रहवीं तिथि पूर्णिमा या अमावस्या होती है।

हमारे लिए तिथि इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?

शायद आप सोचें कि जब हमारे पास तारीखें हैं तो तिथि की क्या ज़रूरत? इसका जवाब हमारी परंपराओं में छिपा है:

  • त्योहारों का आधार: दिवाली अमावस्या को, होली पूर्णिमा को, करवा चौथ चतुर्थी को और गणेश चतुर्थी भी चतुर्थी को मनाई जाती है। हमारे लगभग सभी बड़े त्यौहार तिथियों पर ही आधारित हैं।

  • व्रत और उपवास: एकादशी का व्रत हो या संकष्टी चतुर्थी का, ये सभी तिथियों के अनुसार ही रखे जाते हैं। इन दिनों का एक विशेष आध्यात्मिक महत्व होता है।

  • शुभ मुहूर्त: शादी, गृह प्रवेश, नया व्यापार शुरू करना या कोई भी बड़ा और मांगलिक काम करने के लिए पंडित जी सबसे पहले पंचांग में शुभ तिथि और मुहूर्त ही देखते हैं। माना जाता है कि सही तिथि पर किया गया काम सफल होता है।

  • श्राद्ध और तर्पण: अपने पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए श्राद्ध पक्ष में तिथियों का ही पालन किया जाता है।

कैसे पता करें कि कल कौन सी तिथि है?

आज के डिजिटल युग में कल की तिथि जानना बहुत आसान हो गया है:

  1. ऑनलाइन पंचांग: इंटरनेट पर कई वेबसाइट और ऐप्स हैं जो आपको आज की और कल की तिथि, नक्षत्र, योग और करण की पूरी जानकारी दे देते हैं।

  2. Google पर एक सीधा सवाल: आप बस गूगल पर "कल की तिथि" (Kal ki Tithi) लिखकर सर्च करें, आपको तुरंत जवाब मिल जाएगा।

  3. घर का कैलेंडर: कई पारंपरिक कैलेंडरों में आज भी अंग्रेजी तारीख के साथ-साथ तिथि भी लिखी होती है।

  4. पंडित जी से पूछें: और हमारा सबसे भरोसेमंद तरीका तो है ही, अपने घर के पास के मंदिर के पंडित जी से पूछ लेना!

निष्कर्ष

तो अगली बार जब कोई आपसे पूछे या आपके मन में सवाल आए कि "कल कौन सी तिथि है?", तो इसे केवल एक तारीख की जानकारी मत समझिएगा। यह हमारी जड़ों से जुड़ने का एक मौका है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारा जीवन केवल घड़ी की सुइयों से नहीं, बल्कि प्रकृति और ब्रह्मांड के चक्र से भी जुड़ा हुआ है।

तिथि एक परंपरा है, एक विज्ञान है और हमारी संस्कृति की आत्मा है।

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