Kabir Kas Ke 15 अमर दोहे: जो आज भी जीवन को राह दिखाते हैं

kabir das ke dohe









कबीर के 15 प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित | Kabir Ke 15 Dohe with Meaning in Hindi

भारतीय संत परंपरा के शिखर पुरुष, समाज सुधारक, और महान कवि संत कबीर दास जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। 15वीं सदी में जब समाज अंधविश्वास, कर्मकांड, और जाति-पाति की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, तब कबीर ने अपनी 'साखियों' और 'दोहों' के माध्यम से चेतना की एक ऐसी अलख जगाई, जिसकी रौशनी सदियों बाद आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रही है। उनके दोहे केवल काव्य नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाले सूत्र हैं। वे सरल भाषा में गहरी से गहरी बात कहने की अद्भुत क्षमता रखते थे।

आज इस लेख में, हम कबीर दास जी के 15 ऐसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली दोहों को उनके विस्तृत अर्थ के साथ जानेंगे, जो हमें आत्म-चिंतन करने, सही और गलत में भेद करने, और एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करते हैं। चलिए, इस ज्ञान-यात्रा की शुरुआत करते हैं।

कबीर के 15 अनमोल दोहे अर्थ सहित (Kabir Ke 15 Dohe With Meaning)

दोहा 1: गुरु का महत्व

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥

अर्थ (Meaning): यह कबीर का शायद सबसे प्रसिद्ध दोहा है। इसमें कबीर दास जी कहते हैं कि मेरे सामने गुरु और गोविंद (ईश्वर) दोनों खड़े हैं, मैं दुविधा में हूँ कि पहले किसके चरण स्पर्श करूँ? फिर उनका विवेक कहता है कि हे गुरु, मैं आप पर बलिहारी जाता हूँ क्योंकि यह आप ही थे जिन्होंने मुझे गोविंद तक पहुँचने का मार्ग बताया। आपके ज्ञान के बिना ईश्वर को जानना असंभव था। इस दोहे में कबीर ने गुरु के पद को ईश्वर से भी ऊँचा दर्जा दिया है, क्योंकि गुरु ही अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है।

दोहा 2: आत्म-निरीक्षण

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

अर्थ (Meaning): कबीर दास कहते हैं कि जब मैं इस संसार में बुरे व्यक्ति को खोजने निकला, तो मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने ही मन में, अपने भीतर झाँककर देखा, तो पाया कि मुझसे अधिक बुरा कोई और नहीं है। इस दोहे के माध्यम से कबीर हमें आत्म-निरीक्षण (Introspection) की शिक्षा देते हैं। वे कहते हैं कि दूसरों में कमियाँ निकालने और उनकी आलोचना करने से पहले हमें स्वयं अपने अवगुणों को देखना और उन्हें सुधारना चाहिए। हमारी सबसे बड़ी लड़ाई बाहरी दुनिया से नहीं, बल्कि स्वयं की बुराइयों से है।

दोहा 3: समय का मूल्य

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥

अर्थ (Meaning): यह दोहा हमें समय के महत्व और काम को टालने (Procrastination) की आदत से बचने की सीख देता है। कबीर कहते हैं कि जो काम कल करना है, उसे आज ही कर लो, और जो आज करना है, उसे अभी इसी क्षण कर लो। क्या पता, अगले ही पल में प्रलय आ जाए (यानी जीवन समाप्त हो जाए), फिर तुम अपना काम कब करोगे? यह जीवन बहुत अनिश्चित और क्षणभंगुर है, इसलिए हर पल का सदुपयोग करना चाहिए और महत्वपूर्ण कार्यों को कभी भी भविष्य के लिए नहीं टालना चाहिए।

दोहा 4: मीठी वाणी का प्रभाव

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय॥

अर्थ (Meaning): कबीर हमें संवाद की कला सिखाते हुए कहते हैं कि हमें ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसमें अहंकार (आपा) का लेशमात्र भी न हो। हमारी वाणी इतनी मधुर और विनम्र होनी चाहिए कि वह सुनने वाले को तो शीतलता और शांति प्रदान करे ही, साथ ही हमारे स्वयं के मन को भी आनंद और शीतलता से भर दे। कटु वचन पहले हमारे अपने मन में अशांति पैदा करते हैं, फिर दूसरों को कष्ट पहुँचाते हैं। इसलिए प्रेम और विनम्रता से भरी वाणी ही सर्वोत्तम है।

दोहा 5: सुख-दुःख में ईश्वर का स्मरण

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय॥

अर्थ (Meaning): इस दोहे में कबीर मनुष्य के स्वार्थी स्वभाव पर कटाक्ष करते हैं। वे कहते हैं कि दुःख और विपत्ति आने पर तो हर कोई ईश्वर को याद करता है, लेकिन सुख के दिनों में उसे कोई याद नहीं करता। कबीर कहते हैं कि यदि व्यक्ति सुख में भी ईश्वर का स्मरण करे, उसका धन्यवाद करे, तो उसे दुःख का सामना ही क्यों करना पड़ेगा? इसका गहरा अर्थ यह है कि जो व्यक्ति हर परिस्थिति में ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहता है, उसका आत्मबल इतना मज़बूत हो जाता है कि दुःख उसे प्रभावित नहीं कर पाता।

दोहा 6: संतोष का धन

साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय॥

अर्थ (Meaning): यह दोहा संतोष और अपरिग्रह के सिद्धांत को दर्शाता है। कबीर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं, "हे प्रभु! मुझे केवल इतना ही धन और संसाधन देना, जिसमें मेरे परिवार का भरण-पोषण हो जाए। मैं स्वयं भी भूखा न रहूँ और मेरे दरवाजे पर आया कोई साधु (अतिथि या जरूरतमंद) भी भूखा न जाए।" इसमें कबीर ने अत्यधिक धन-संग्रह की लालसा का त्याग कर केवल आवश्यकतानुसार जीवन जीने और दूसरों की मदद करने की भावना को महत्व दिया है।

दोहा 7: जीवन की नश्वरता

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय॥

अर्थ (Meaning): इस दोहे में कबीर ने मृत्यु की अटल सच्चाई और शरीर की नश्वरता को बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तू आज मुझे पैरों से रौंद रहा है, मुझ पर अधिकार जता रहा है, लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिट्टी में मिल जाएगा और मैं तुझे रौंदूंगी। इसका भाव यह है कि हमें इस शरीर पर अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह पंचतत्वों से बना है और अंत में उन्हीं में विलीन हो जाएगा।

दोहा 8: सच्चे ज्ञान का स्वरूप

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

अर्थ (Meaning): कबीर दास जी किताबी ज्ञान पर व्यवहारिक और आत्मिक ज्ञान को वरीयता देते हैं। वे कहते हैं कि मोटी-मोटी किताबें और शास्त्र पढ़-पढ़कर यह संसार खत्म हो गया, लेकिन कोई भी सच्चा ज्ञानी (पंडित) नहीं बन सका। वास्तव में, जो व्यक्ति प्रेम के ढाई अक्षरों ('प्रेम') का वास्तविक अर्थ समझ लेता है और उसे अपने जीवन में उतार लेता है, वही सच्चा ज्ञानी है। प्रेम ही वह सार है जो हमें ईश्वर और मानवता से जोड़ता है, कोरा शास्त्रीय ज्ञान नहीं।

दोहा 9: जाति-पाति का खंडन

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥

अर्थ (Meaning): अपने समय के सबसे बड़े समाज सुधारकों में से एक, कबीर ने इस दोहे से जाति व्यवस्था पर गहरा प्रहार किया है। वे कहते हैं कि किसी सज्जन या ज्ञानी व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए, बल्कि उसके ज्ञान को महत्व देना चाहिए। ठीक उसी प्रकार, जैसे तलवार का मूल्य उसकी धार और गुणवत्ता से होता है, न कि उसकी सुंदर म्यान से। म्यान तो बाहरी आवरण है, असली महत्व तो तलवार का है। इसी तरह, मनुष्य की जाति या कुल बाहरी आवरण है, उसका असली मूल्य उसके ज्ञान, गुण और कर्मों में है।

दोहा 10: किसी को छोटा न समझना

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय।
कबहुँ उड़ि आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय॥

अर्थ (Meaning): इस दोहे में कबीर हमें सिखाते हैं कि संसार में किसी भी वस्तु या व्यक्ति को तुच्छ या छोटा समझकर उसका अपमान नहीं करना चाहिए। वे उदाहरण देते हैं कि पैरों के नीचे आने वाले एक छोटे से तिनके की भी निंदा मत करो, क्योंकि यदि वही तिनका हवा से उड़कर आँख में चला जाए, तो बहुत गहरी पीड़ा देता है। इसका सार यह है कि हर किसी का अपना महत्व होता है और समय आने पर एक छोटा सा व्यक्ति या वस्तु भी बड़ा कष्ट दे सकता है। इसलिए सभी का सम्मान करो।

दोहा 11: आडंबर पर प्रहार

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर॥

अर्थ (Meaning): कबीर दास जी बाहरी आडंबरों और कर्मकांडों पर तीखा व्यंग्य करते हैं। वे कहते हैं कि हाथ में माला लेकर जपते-जपते युग बीत गए, लेकिन मन का स्वभाव नहीं बदला, मन की चंचलता और बुराइयां दूर नहीं हुईं। इसलिए, हाथ की इस माला को छोड़कर अपने मन के मोतियों को फेरो, अर्थात अपने मन को शुद्ध करो, अपने विचारों को नियंत्रित करो। सच्ची भक्ति बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि मन की पवित्रता में है।

दोहा 12: विनम्रता का गुण

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥

अर्थ (Meaning): इस दोहे के माध्यम से कबीर बड़प्पन के सही अर्थ को समझाते हैं। वे कहते हैं कि केवल आकार या पद में बड़ा हो जाने का कोई लाभ नहीं है, यदि उससे किसी का भला न हो। जैसे खजूर का पेड़ बहुत ऊँचा होता है, लेकिन न তো वह राहगीर को छाया दे पाता है और न ही उसके फल आसानी से तोड़े जा सकते हैं। बड़प्पन वही है जो परोपकार और विनम्रता से युक्त हो। जिस बड़प्पन से किसी का हित न हो, वह निरर्थक है।

दोहा 13: धैर्य का महत्व

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥

अर्थ (Meaning): यह दोहा हमें धैर्य (Patience) का पाठ पढ़ाता है। कबीर अपने मन को समझाते हुए कहते हैं कि हे मन, धीरज रख। इस संसार में हर काम अपने नियत समय पर ही होता है। जल्दबाजी करने से कुछ नहीं होता। जैसे कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से एक ही दिन में सींच दे, तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा। इसी प्रकार, निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए और सही समय आने पर परिणाम अवश्य मिलता है।

दोहा 14: निंदक का महत्व

निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥

अर्थ (Meaning): यह एक अद्भुत दोहा है जो हमें आलोचना के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देता है। कबीर कहते हैं कि हमें अपनी निंदा करने वाले या आलोचक को हमेशा अपने पास ही रखना चाहिए, हो सके तो अपने आँगन में ही उसके लिए एक कुटिया बनवा देनी चाहिए। क्योंकि वह व्यक्ति बिना पानी और बिना साबुन के हमारे स्वभाव और चरित्र को निर्मल बना देता है। उसकी आलोचना हमें अपनी कमियों को देखने और उन्हें सुधारने का अवसर देती है, जिससे हमारा व्यक्तित्व निखरता है।

दोहा 15: जीवन की क्षणभंगुरता

पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।
देखत ही छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात॥

अर्थ (Meaning): कबीर दास इस दोहे में जीवन की क्षणभंगुरता (Transience of life) को उजागर करते हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले के समान है, जो पल भर में बनता है और पल भर में ही नष्ट हो जाता है। यह जीवन ऐसे ही देखते-देखते समाप्त हो जाएगा, जैसे सुबह होते ही आकाश के तारे छिप जाते हैं। इसलिए, हमें इस नश्वर जीवन के अहंकार में नहीं डूबना चाहिए और जो भी समय मिला है, उसे अच्छे कर्मों और ईश्वर के स्मरण में लगाना चाहिए।

⚠️ चेतावनी एवं विशेष सूचना

  • व्याख्या में भिन्नता: संत कबीर के दोहे बहुत गहरे और प्रतीकात्मक हैं। अलग-अलग विद्वानों और संप्रदायों द्वारा इनकी व्याख्या में थोड़ा-बहुत अंतर पाया जा सकता है। इस लेख में प्रस्तुत अर्थ सबसे प्रचलित और सर्वमान्य व्याख्याओं पर आधारित हैं।
  • मूल भाव को समझें: हमारा उद्देश्य इन दोहों के शाब्दिक अर्थ में उलझना नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे मूल भाव और सार्वभौमिक संदेश को ग्रहण करना होना चाहिए।
  • व्यक्तिगत चिंतन को प्रोत्साहन: इन दोहों को पढ़ें, समझें और अपने जीवन के अनुभवों के साथ जोड़कर इन पर स्वयं चिंतन करें। कबीर का ज्ञान किसी एक व्याख्या तक सीमित नहीं है।

निष्कर्ष

संत कबीर दास के ये दोहे केवल कविता की पंक्तियाँ नहीं, बल्कि सदियों के अनुभव से निकले हुए जीवन-दर्शन के सूत्र हैं। वे हमें सादा जीवन, उच्च विचार, प्रेम, समानता, और आत्म-सुधार का मार्ग दिखाते हैं। आज के इस भौतिकवादी और तनावपूर्ण युग में, कबीर की शिक्षाएं पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई हैं। यदि हम इन दोहों के सार को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें, तो निश्चय ही हम एक अधिक शांत, सार्थक और आनंदपूर्ण जीवन जी सकते हैं। कबीर का संदेश कालातीत है और हमेशा मानवता का मार्गदर्शन करता रहेगा।

पुष्टि: यह लेख AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) द्वारा तैयार किया गया है और इसकी सटीकता, प्रवाह, पठनीयता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एक मानव संपादक द्वारा समीक्षित, संपादित और अंतिम रूप दिया गया है। इसका उद्देश्य उपयोगकर्ताओं को सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करना है, जिससे किसी भी प्रकार का भ्रम उत्पन्न न हो।

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