हम 21वीं शताब्दी के भारतीय होने पर गर्व करते हैं जो एक बेटा पैदा होने पर खुशी का जश्न मनाते हैं और यदि एक बेटी का जन्म हो जाये तो शान्त हो जाते हैं यहाँ तक कि कोई भी जश्न नहीं मनाने का नियम बनाया गया हैं। लड़के के लिये इतना ज्यादा प्यार कि लड़कों के जन्म की चाह में हम प्राचीन काल से ही लड़कियों को जन्म के समय या जन्म से पहले ही मारते आ रहे हैं, यदि सौभाग्य से वो नहीं मारी जाती तो हम जीवनभर उनके साथ भेदभाव के अनेक तरीके ढूँढ लेते हैं।
भारतीय समाज में लिंग असमानता का मूल कारण इसकी पितृसत्तात्मक व्यवस्था में निहित है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री सिल्विया वाल्बे के अनुसार, “पितृसत्तात्मकता सामाजिक संरचना की ऐसी प्रक्रिया और व्यवस्था हैं, जिसमें आदमी औरत पर अपना प्रभुत्व जमाता हैं, उसका दमन करता हैं और उसका शोषण करता हैं।” महिलाओं का शोषण भारतीय समाज की सदियों पुरानी सांस्कृतिक घटना है
पितृसत्तात्मकता व्यवस्था ने अपनी वैधता और स्वीकृति हमारे धार्मिक विश्वासों, चाहे वो हिन्दू, मुस्लिम या किसी अन्य धर्म से ही क्यों न हों ।
उदाहरण के लिये, प्राचीन भारतीय हिन्दू कानून के निर्माता मनु के अनुसार, “ऐसा माना जाता हैं कि औरत को अपने बाल्यकाल में पिता के अधीन, शादी के बाद पति के अधीन और अपनी वृद्धावस्था या विधवा होने के बाद अपने पुत्र के अधीन रहना चाहिये।
किसी भी परिस्थिति में उसे खुद को स्वतंत्र रहने की अनुमति नहीं हैं।” परंतु ऐसा नहीं करना चाहिए चाहे आपके बेटी हो या मेरी क्योंकि आजाद उन्हें भी है उनका भी मन है कुछ करने के लिए इसलिए उनके मन में जो इच्छा है उसे साथ दे ।
मुस्लिमों में भी समान स्थिति हैं और वहाँ भी भेदभाव या परतंत्रता के लिए मंजूरी धार्मिक ग्रंथों और इस्लामी परंपराओं द्वारा प्रदान की जाती है। इसी तरह अन्य धार्मिक मान्याताओं में भी महिलाओं के साथ एक ही प्रकार से या अलग तरीके से भेदभाव करते हैं लोग।
महिलाओं के समाज में निचला स्तर होने के कुछ कारणों में से अत्यधिक गरीबी और शिक्षा की कमी भी हैं। गरीबी और शिक्षा की कमी के कारण बहुत सी महिलाएं कम वेतन पर घरेलू कार्य करने, संगठित वैश्यावृति का कार्य करने या प्रवासी मजदूरों के रुप में कार्य करने के लिये मजबूर होती हैं । परंतु उनकी अगर सही शिक्षा मिल जाती और समाज से कुछ मदद मिल जाती है तो ऐसे वेश्यावृत्ति करने का जरूरत नहीं पड़ती है वह भी अपने ही समाज के लोगों को देखना चाहिए ।
लड़की को बचपन से शिक्षित करना अभी भी एक बुरा निवेश माना जाता हैं क्योंकि एक दिन उसकी शादी होगी और उसे पिता के घर को छोड़कर दूसरे घर जाना पड़ेगा। इसलिये, अच्छी शिक्षा के अभाव में वर्तमान में नौकरियों कौशल माँग की शर्तों को पूरा करने में असक्षम हो जाती हैं, वहीं प्रत्येक साल हाई स्कूल और इंटर मीडिएट में लड़कियों का परिणाम लड़कों से अच्छा होता हैं।अतः उपर्युक्त विवेचन के आझार पर कहा जा सकता हैं कि महिलाओं के साथ असमानता और भेदभाव का व्यवहार समाज में, घर में, और घर के बाहर विभिन्न स्तरों पर किया जाता हैं।
यदि ऐसे ही हम लोग बेटियों पर नजर रखेंगे तो कभी भी लड़कियां आगे नहीं बढ़ेगी इसी तरह समाज के बेटियां कुछ कर नहीं पाएगी शिक्षा के मामले में लड़के हो या लड़की दोनों ही बराबर है वर्तमान युग ऐसा है कि लड़के से भी ज्यादा पढ़ाई में दिलचस्पी रखते हैं लड़कियां , इसलिए उन्हें इसी विषय में आजादी देना चाहिए और मन में लड़की है करके भेदभाव नहीं रखना चाहिए ।
जिस समाज में आप रह रहे हैं वर्तमान में हम इंसान हैं कौन छोटा है और कौन बड़ा है ऐसा भी भेदभाव नहीं करना चाहिए , हां कोई दो पैसा ज्यादा कमाते हैं तो कोई दो पैसा कम कमाते हैं इसलिए समाज कल्याण हेतु किसी को छोटा नजर से देख कर भेदभाव नहीं बनाना चाहिए ।
यदि किसी व्यक्ति आपके सामने संकट में पड़ जाए तो उससे मदद करना आपका कर्तव्य है आज उसकी मदद किया तो कल वही इंसान आपको भी मदद करेंगे छोटा बड़ा सोच के भेदभाव नहीं करना चाहिए इसमें समाज का ही कल्याण होता है ।
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