तुलसीदास के दोहे pdf अर्थ सहित, मुफ्त में डाउनलोड करें

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तुलसीदास के दोहे और अर्थ.
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तुलसीदास जी के दोहे.
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तुलसीदास जी के अनमोल वचन.

तुलसीदास के दोहे pdf


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तुलसीदास के दोहे pdf डाउनलोड करने के लिए जब आप हमारे वेबसाइट में आ ही गए हैं तो सबसे पहले आपका स्वागत है दोस्तों संत तुलसीदास जी ने जितने भी जगत कल्याण के लिए दोहे के माध्यम से समझाया गया है कि कैसे भी व्यक्ति हो इस दोहे को पढ़ने के बाद अपना जीवन सफल जरूर बना सकता है । कहां जाता है तुलसीदास के दोहे पढ़ना और गुरु का ज्ञान लेना बराबर होता है यदि कोई व्यक्ति तुलसीदास के दोहे खुद पढ़ कर दूसरे को सुनाते हैं तो उन्हें भी अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त होती है । कई लोग भाषा के कारण दोहे को समझ नहीं पाते हैं लेकिन आज हम आपको तुलसीदास के दोहे पीडीएफ देंगे जहां अर्थ सहित आप डाउनलोड कर सकते हैं । इस घोर कलयुग में मनुष्य के भीतर नकारात्मक का उर्जा सबसे अधिक समा हुआ है जिसके कारण सही रास्ता को चयन करने में अंधेरा देखते हैं और गलत रास्ता चयन करने में उजाला देखते हैं आ रही है सबसे बड़ा कारण जहां लोग पाप करते जा रहे हैं आज वर्तमान लोगों के भीतर पाप करने में आनंद आ रहे हैं । धर्म शास्त्र के अनुसार कहा जाता है यदि कोई नकारात्मक व्यक्ति तुलसीदास का यह दोहे भक्ति और श्रद्धा के साथ पाठ करेंगे तो उनके जीवन में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कभी नहीं आएंगे हमेशा सकारात्मक सोच रहेंगे और अपना जीवन सफल बनाने में हमेशा सही मार्ग पर जा सकता है । मित्रों यदि आप तुलसीदास के पीडीएफ अपना साथ रखना चाहते हैं तो आपके लिए अर्थ सहित पीडीएफ नीचे दिया गया है लिंक जहां आप डाउनलोड कर सकते हैं डाउनलोड करने से पहले तुलसीदास का यह दोहे एक बार जरुर पढ़े । 



॥ राम ॥ ॥ श्री हनुमते नमः ॥


दोहे- श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनउँ रघुबर बिमल जसु,जसुजो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौ पवन-कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस बिकार ॥ चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि -पुत्र पवनसुत नामा ॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी ॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥ संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन ॥ बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर ॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया ॥ सूक्ष्म रुप धरि सियहि दिखावा। बिकट रुप धरि लंक जरावा ॥ भीम रुप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे ॥ लाय संजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥ रघुपति कीन्ही बहुत बडाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा ॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँते। कबि कोबिद कहि सके कहाँते ॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥ 1 गोस्वामी तुलसीदास कृत दोहावली तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥ जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥ दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहु को डरना ॥ आपन तेज संहारो आपै। तीनो लोक हाँक ते काँपै ॥ भूत पिसाच निकट नहि आवै। महाबीर जब नाम सुनावै ॥ नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ संकट तें हनुमान छुडावैं। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा ॥ और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै ॥ चारो जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे ॥ अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता ॥ राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा ॥ तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँजन्म हरि-भक्त कहाई ॥ और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥ संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरुदेव की नाई ॥ जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महासुख होई ॥ जो यह पढै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँडेरा ॥ दो० पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥ ॥ इति ॥ सियावर रामचन्द्र की जय। पवनसुत हनुमान की जय ॥ उमापति महादेव की जय। बोलो भाइ सब संतन्ह की जय ॥ गोस्वामी तुलसीदास कृत दोहावली ॥ श्रीसीतारामाभ्यां नमः ॥ दोहावली ध्यान राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर। ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरु तुलसी तोर ॥ सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास। हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास ॥ पंचबटी बट बिटप तर सीता लखन समेत। सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत ॥ राम-नाम-जपकी महिमा चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत। राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत ॥ पय अहार फल खाइ जपु राम नाम षट मास। सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास ॥ राम नाम मनीदीप धरु जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतर बाहरेहुँ जौं चाहसि उजियार ॥ हियँनिर्गुन नयनन्हि सगुन रसना राम सुनाम। मनहुँ पुरट संपुट लसत तुलसी ललित ललाम ॥ सगुन ध्यान रुचि सरस नहिं निर्गुन मन ते दूरि। तुलसी सुमिरहु रामको नाम सजीवन मूरि ॥ एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ। तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ ॥ नाम राम को अंक है सब साधन हैं सून। अंक गएँ कछु हाथ नहिं अंक रहें दस गून ॥ नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु। जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥ राम नाम जपि जीहँजन भए सुकृत सुखसालि। तुलसी इहाँजो आलसी गयो आजु की कालि ॥ नाम गरीबनिवाज को राज देत जन जनी ।।

मित्रों पीडीएफ तो आप डाउनलोड करके अपना पास रखेंगे लेकिन क्या आपको पता है तुलसीदास के दोहे कब किस समय पढ़ना चाहिए ? यदि आप तुलसीदास के दोहे पढ़ने का सही नियम जानते हैं तो कमेंट अवश्य करें यदि आप दोहे पढ़ने का नियम नहीं जानते हैं तो भी कमेंट करें ।  हम आपको सहायता करेंगे तुलसीदास के दोहे कब पाठ करना चाहिए किस समय जिससे आपका सबसे ज्यादा फायदे होंगे । हमें आशा है कि जब भी आप हमारे वेबसाइट में आएंगे तो कुछ ना कुछ सीख प्राप्त जरूर करेंगे धन्यवाद आपका दिन शुभ मंगलमय हो ।

तुलसीदास के यह है जीवन जीने का दोहे ।


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