तपस्या करने के जबरदस्त फायदे, जो अधिकांश लोगों को नहीं पता


तपस्या करने का फायदे जानने के लिए हमारे साथ बने रहिए मित्रों नमस्कार हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है ।🙏



मनुष्य जो कुछ भी कर्म करते हैं उसका कुछ ना कुछ फल जरूर मिलती हैं चाहे भला हो चाहे बुरे ।  लोग तपस्या इसलिए करते हैं ताकि उन्हें जो जरूरत है वह मिल जाए । जो है साधना वही है तपस्या आप किसके लिए तपस्या करना चाहते हैं, आप किसके लिए साधना करना चाहते हैं बात एक ही है पर इसे करने के लिए अपने अंदर क्षमता होनी चाहिए । तपस्या करने वाले को फल उनके हिसाब से मिलती हैं , किसके लिए तपस्या कर रही है ? किस कारण के लिए कर रहे हैं ? यह विचार तपस्या के जरिए होता है ।


 तपस्या करने का क्या फायदे हैं इसके विषय में बिस्तर में जानते हैं ।



तप की साधना का वैज्ञानिक व् धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व है । तप का अर्थ है स्वयं का अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर कर्म की निर्जना करना यह सभी धर्म के लोग कर सकते हैं . फर्क है सिर्फ तप करने तरीका अलगअ्लग मगर उदेश्य सिर्फ एक ही है । विज्ञानं में भी तप को महत्व दिया गया है बहुत। शरीर को निरोगी बनाये रखने के लिए भी तप बहुत जरुरी है होता है । तप किसी भी रूप में हो सकता है उपवास , एकासन , खाद्य संयम , रात्रि भोजन न् करना , प्रतिदिन नियत द्रव्य से ज्यादा सेवन न् करना ।  जैसे हम नियम लेए की आज में 10 द्रव्य से ज्यादा का सेवन नही करूँगा , मोन की साधना , अपने आवेश पर नियंत्रण करना आदि आदि भी एक तरह के तपस्या होता है । जैन धर्म में तप को एक महत्वपूर्ण साधना माना गया है । जैन धर्म में साधु , संत , आचार्य , श्रावक , श्राविका वर्ष भर में तो तप करते ही है मगर तप विशेष रूप से चातुर्मासिक काल में विशेष रूप से करते है इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस चार महीना में तपस्या की साधना मौसम की अनुकूलता भी है और दूसरा कारण इस काल में साधु संत वर्षावास हेतु स्थायी हो जाते है और सभी धर्म प्रेमी श्रावक श्राविकाओं को विशेष रूप से साधु संतों से तप की आराधना करने हेतु प्रेरणा मिलती है । 

तप के चमत्कार की चर्चा करु तो काफी लंबी बाते है मगर संक्षिप्त में की शरीर को स्वस्थ रखने व् असाध्य बीमारी से मुक्त होने के लिए तप की साधना एक अचूक नुस्खा है । 


आप के सामने एक उदाहरण पेश करूँगा आज मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे प्रकृति ने बुद्धि प्रदान की है । अपने रोग व् लक्षण को अनुभव कर सकता है । और तरह तरह डॉक्टर वेध. व् हकीमो के पास रोग मुक्ति के लिए भागता है । लेकिन बेजुबान पशु पक्षी जानवर अपनी वेदना व् समस्या महसूस कर सकते है मगर व्यक्त नही कर सकते हैं इसलिए वह अपनी समस्या का स्वयं ही उपचार कर लेते है । 

जैसे ही वो अस्वस्थ महसूस करते है खाना बन्द कर् देते है । और जैसे जैसे स्वस्थ होते है फिर खाना शुरू करते है यानि स्वयं का उपचार स्वयं द्वारा । में पेशे से प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़ा हु मेरे कहने का भावार्थ है जैसे हम खाना खाते है शरीर के सभी अंग जेसे दांत , जीभ, पक्वाशय, छोटी आंत , बड़ी आंत , लिवर , किडनी आदि आदि सभी अंग सक्रीय हो जाते है यानि वो अपनी भूमिका निभाने के लिए जागरूक हो जाते है न् उन्हें आराम मिलता है ।

 जैसे हम निरंतर कार्य करते रहे तो थकान महसूस करते है वैसे ही हमारे शरीर के अंग भी निरंतर कार्य करते हुए थकान महसूस करते है परिणाम स्वरुप एक दिन कोई न कोई अंग थकान के कारण अपनी कार्यशक्ति मंद कर देता है और हम अस्वस्थ महसूस करने लगते है । अगर हंम उपवास या उससे अधिक का तप करे या खाद्य सयम का तप शरीर के सभी अंगों को कुछ आराम मिलता है ! फलस्वरूप अपने शरीर के पुन नई उर्जा के साथ कार्य करने लगते है ! हम स्वय को स्वस्थ महसूस करने लगते है ! तप से हमे नई उर्जा प्राप्त होती है .  हमे तप अपने शरीर की शक्ति के अनुसार जरुर करना चाहिए ! मोन साधना व् ध्यान की साधना से मस्तिष्क को बहुत आराम मिलता है !उपवास जिस तरह आत्म शुद्धी और आत्म नियंत्रण का साधन है , उसी प्रकार देह शुद्धी और दैहिक आंतरिक क्रियाओ को नियंत्रित  नियमीत करने का भी साधन है । उपवास करने से शरीर के आंतरिक धन कचरे का निकाल होता है. शरीर में बढे हुए पित्त , कफ , वायु का उपशमन अथवा तो उत्सर्जन होता है , और शरीर शुद्ध होता है .उपवास के दुसरे या तीसरे दिन बहुतो को पित्त की उल्टियाँ होती है . वस्तुत: इन उल्टियो द्वारा शरीर के अंदर का पित्त निकल जाने से शारीरिक शांति का अनुभव होता है .उपवास दरम्यान सिर्फ गर्म किया हुआ पानी पीने से शरीर में रहने वाले अधिक मात्रा के मल का निकाल होता है , और कृमी आदी को खोराक नहीं मिलने से अपने आप बाहर निकल जाते है , तथा कफ हो तो वो भी दूर हो जाता है . इस प्रकार अधिक मात्रा में रहने वाले कफ , पित्त दूर होने से वात ,पित्त ,कफ का नाश होता है .इसलिए 15 दिनों में या एक महीने में हर व्यक्ति को कम से कम एक उपवास तो करना ही चाहिए ।

अगर कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य पूरा करने के लिए तपस्या करने के लिए बैठते हैं तो तो उसे पूरा करने में सफल होते हैं । माना जाता है कि तपस्या में जो हमारे शरीर में ऊर्जा पैदा होती हैं इससे अधिक आत्मा को शक्ति प्रदान होती है और उस समय आत्मा कहीं भी अपने शरीर से निकाल कर दूसरे स्थान पर जा सकते हैं ।


 तपस्या ऐसे जगह पर करना है जहां सिर्फ आप हो और कोई ना हो तपस्या दिखाने के लिए नहीं इसे पाने के लिए किया जाता है । तपस्या करने वाले व्यक्ति कभी भी सबके सामने तप नहीं करते हैं वह सिर्फ अकेले ही तपस्या करते हैं ताकि उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें ।

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