हल्दीघाटी का युद्ध क्यों हुआ था, असली योद्धा कौन था ? जानें

 

हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ था? जानिए सच्च हमारे साथ mitron सबसे पहले हमारे वेबसाइट में आपको स्वागतम।🙏

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हल्दीघाटी का इतिहास ऐसा इतिहास है जहां लोग आज भी भूले नहीं है और यह जब तक सूरज चंद्रमा रहेंगे तब तक याद रहेंगे क्योंकि उसका कुछ कहानी अलग हैं । पहले हमारे हिंदुस्तान राजा महाराजा लोग शासन करते थे अपना देश कैसे सुरक्षित रखना है उन्हें अच्छी तरह से पता थे मगर कुछ लोग छल कपट करके हमारे ही देश का सर्वनाश करके गया जिसके कारण हल्दी घाट का एक बहुत बड़ा इतिहास बन चुका है मित्रों मैं बता दूं कि हल्दीघाटी में उन हिंदुओं के रक्त बहाया गया है जो अपना देश की रक्षा के लिए उन क्रूर मुगल राजाओं से लड़ते-लड़ते प्राण त्याग दिया था।

और ऐसे दर्दनाक इतिहास को कभी भूलना भी नहीं चाहिए जो हमारे पूर्वजों ने अपना ही मिट्टी को बचाने के लिए प्राण त्याग दिया । 


मेवाड़ के माध्यम से अकबर गुजरात के लिए एक ही रास्ता कब्जा किया था जब 1572 में प्रताप सिंह को राजा (राणा) का ताज पहनाया गया, तो अकबर ने कुछ दूतों को भेजा जो राजा महाराणा प्रताप सिंह दोस्ती करना चाहा मगर महाराणा प्रताप ने अकबर की इस निमंत्रण को इनकार कर दिया, जिसके कारण अकबर के साथ महाराणा प्रताप के बीच भयंकर युद्ध हुआ । और ऐसे भयंकर युद्ध हुआ था राजस्थान के गोगुन्दा के पास हल्दीघाटी में एक संकरा पहाड़ी भी मौजूद है। महाराणा प्रताप ने लगभग 3,000 घुड़सवारों और फिर 400 भील महा शक्तिशाली धनुर्धारियों को मैदान में युद्ध करने उतारे थे। मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह ने किया था, जिन्होंने लगभग 5,000-10,000 लोगों की सेना की कमान संभाली थी ।


 तो आइए जानते हैं कब हल्दीघाटी में युद्ध हुआ था ?


हल्दीघाटी का युद्ध 👉18 June 1576 को मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप का सहायक करने वाले घुड़सवारों और धनुर्धारियों और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच भयानक युद्ध हुआ था जो आमेर के राजा मान सिंह ने सर्वप्रथम किया था। राजा मानसिंह भी बहुत ही शक्तिशाली योद्धा थे मुगलों से कभी हार नहीं माने लेकिन उन्होंने छल कपट से ही पराजित हुई ।


इस दर्दनाक युद्ध में महाराणा प्रताप को मुख्य रूप से भील जनजाति से सहयोग मिला था । 1568 में चित्तौड़गढ़ की विकट घेराबंदी से पराजित होना पड़ा उसके बाद मेवाड़ की उपजाऊ पूर्वी belt को मुगलों को देना पड़ा। हालाँकि, बाकी जंगल और पहाड़ी राज्य अभी भी राणा के नियंत्रण में थे। 


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