शिवलिंग क्या है और कैसे बना है ? वास्तविक अर्थ समझे

bholanath biswas
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शिवलिंग क्या है और कैसे बना ?

शिवलिंग


हिंदू देवी देवताओं में प्रमुख भगवान शिव शंभू जिनकी पूजा मूर्तियां में होती हैं और लिंग में भी किया जाता है ।  मूर्ति होने से लिंग जरूर रखते हैं हिंदू शास्त्र के अनुसार बाबा भोलेनाथ के मूर्ति से ज्यादा लिंग में महत्व देते हैं । 


शिवलिंग  लिंगा, लिंगम् या शिवा लिंगम् भी कहते हैं। यह हिंदू भगवान शिव का प्रतिमाविहीन चिह्न है। यह प्राकृतिक रूप से स्वयम्भू व अधिकतर शिव मंदिरों में स्थापित होता है।शिवलिंग को सामान्यतः गोलाकार मूर्तितल पर खड़ा दिखाया जाता है जिसे योनी, पीठम् या पीठ कहते हैं। लिंगायत मत के अनुयायी 'इष्टलिंग' नामक शिवलिंग पहनते हैं। हिंदू धर्म में प्रमुख भगवान देवों के देव महादेव हैं जिनकी पूजा मूर्ति से ज्यादा लिंग की पूजा किया जाता है । पर हमारे मन में यह सवाल जरूर पैदा करती हैं कि हिंदू धर्म में सबके मूर्ति पूजा किया जाता है , पर भोलेनाथ की लिंग कहां से आया है और क्यों इनकी इतना महत्व दिया जाता है ? अक्सर ऐसे सवालों का जवाब जरूर ढूंढते रहते हैं हम लोग । जिसकी कृपा से सारे दुख कि संघार होते हैं संसार में सुख समृद्धि बढ़ती है आज उन्हीं शिवलिंग के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई के दौरान कालीबंगा और अन्य खुदाई के स्थलों पर मिले पकी मिट्टी के शिवलिंगों से प्रारंभिक शिवलिंग पूजन के सबूत मिले हैं। सबूत यह दर्शाते हैं कि शिवलिंग की पूजा 3500 ईसा पूर्व से 2300 ईसा पूर्व भी होती थी ।

 मानवविज्ञानी क्रिस्टोफर जॉन फुलर ने लिखा है कि हालांकि अधिकांश मुर्तियाँ मानवरूपी मिली हैं परन्तु शिवलिंग एक महत्वपूर्ण  जन कल्याणकारी है।  कुछ का मानना है कि शिवलिंग-पूजा स्वदेशी भारतीय धर्म की एक विशेषता थी।

अथर्ववेद के स्तोत्र में एक स्तम्भ की प्रशंसा की गई है, संभवतः इसी से शिवलिंग की पूजा शुरू हुई हो। अथर्ववेद के स्तोत्र में अनादि और अनंत स्तंभ का विवरण दिया गया है और यह कहा गया है कि वह साक्षात् ब्रह्म है (यहाँ भगवान ब्रह्मा की बात नहीं हो रही है)। स्तम्भ की जगह शिवलिंग ने ले ली है।लिङ्ग पुराण में अथर्ववेद के इस स्तोत्र का कहानियों द्वारा विस्तार किया गया है जिसके द्वारा स्तम्भ एवं भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया गया है।

शिव पुराण में शिवलिंग की उत्पत्ति का वर्णन अग्नि स्तंभ के रूप में किया गया है जो अनादि व अनंत है और जो समस्त कारणों का कारण है। लिंगोद्भव कथा में परमेश्वर शिव ने स्वयं को अनादि व अनंत अग्नि स्तंभ के रूप में ला कर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु को अपना ऊपरला व निचला भाग ढूंढने के लिए कहा और उनकी श्रेष्ठता तब साबित हुई जब वे दोनों अग्नि स्तंभ का ऊपरला व निचला भाग ढूंढ नहीं सके। शिवलिंग के ब्रह्मांडीय स्तंभ की व्याख्या का समर्थन लिङ्ग पुराण भी करता है। शिवलिंग पुराण के अनुसार शिवलिंग निराकार ब्रह्मांड वाहक है - अंडाकार पत्थर ब्रह्मांड का प्रतीक है और पीठम् ब्रह्मांड को पोषण व सहारा देने वाली सर्वोच्च शक्ति है। इसी तरह की व्याख्या स्कन्द पुराण में भी है, इसमें यह कहा गया है "अनंत आकाश (वह महान शून्य जिसमें समस्त ब्रह्मांड वसा है) शिवलिंग है और पृथ्वी उसका आधार है। समय के अंत में, समस्त ब्रह्मांड और समस्त देवता व इश्वर शिवलिंग में विलीन हो जाती हैं ।" जग्गी वासुदेव के अनुसार शिवलिंग को रचना के बाद बना पहला रूप और ब्रह्माण्ड के अंत से पहले का रूप माना जाता है।  महाभारत में द्वापर युग के अंत में भगवान शिव ने अपने भक्तों से कहा कि आने वाले कलियुग में वह किसी विशेष रूप में प्रकट नहीं होगें परन्तु इसके बजाय वह निराकार और सर्वव्यापी रहेंगे। 

जो व्यक्ति शिवलिंग की पूजा करते हैं बाबा भोलेनाथ उन पर कृपा बरसाते हैं । शिवलिंग की पूजा करने में जो चमत्कार होती है वह हर किसी को दिखाइ देते नहीं । जो भक्त मन और भक्ति के साथ पूजा किया करते हैं उन्हीं को दर्शन देते हैं उनकी महिमा एवं चमत्कार समझ पाते हैं ।


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