यह मंत्र 👉 सर्वप्रथम ऋग्वेद में उद्धृत हुआ है। इसके ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं। वैसे तो यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के १८ मंत्रों में केवल एक है, किंतु अर्थ की दृष्टि से इसकी महिमा का अनुभव आरंभ में ही ऋषियों ने कर लिया था और संपूर्ण ऋग्वेद के 👉१० सहस्र मंत्रों में इस मंत्र के अर्थ की गंभीर व्यंजना सबसे अधिक की गई 👉इस मंत्र में २४ अक्षर हैं। उनमें आठ आठ अक्षरों के 👉तीन चरण हैं। किंतु ब्राह्मण ग्रंथों में और कालांतर के समस्त साहित्य में इन अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप इस प्रकार स्थिर हुआ हैं ।
ॐ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
👉मंत्र के इस रूप को मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है और जप में इसी का विधान किया है।
👉गायत्री तत्व क्या है और क्यों इस मंत्र की इतनी महिमा है, इस प्रश्न का समाधान आवश्यक है। आर्ष मान्यता के अनुसार गायत्री एक ओर विराट् विश्व और दूसरी ओर मानव जीवन, एक ओर देवतत्व और दूसरी ओर भूततत्त्व, एक ओर मन और दूसरी ओर प्राण, एक ओर ज्ञान और दूसरी ओर कर्म के पारस्परिक संबंधों की पूरी व्याख्या कर देती है। इस मंत्र के देवता सविता हैं, सविता सूर्य की संज्ञा है, सूर्य के नाना रूप हैं, उनमें सविता वह रूप है जो समस्त देवों को प्रेरित करता है। जाग्रत् में सवितारूपी मन ही मानव की महती शक्ति है। जैसे सविता देव है वैसे मन भी देव है (देवं मन: ऋग्वेद, १,१६४,१८)। मन ही प्राण का प्रेरक है। मन और प्राण के इस संबंध की व्याख्या गायत्री मंत्र को इष्ट है। सविता मन प्राणों के रूप में सब कर्मों का अधिष्ठाता है, यह सत्य प्रत्यक्षसिद्ध है। इसे ही गायत्री के तीसरे चरण में कहा गया है। ब्राह्मण ग्रंथों की व्याख्या है-कर्माणि धिय:, अर्थातृ जिसे हम धी या बुद्धि तत्त्व कहते हैं वह केवल मन के द्वारा होनेवाले विचार या कल्पना सविता नहीं किंतु उन विचारों का कर्मरूप में मूर्त होना है। यही उसकी चरितार्थता है। किंतु मन की इस कर्मक्षमशक्ति के लिए मन का सशक्त या बलिष्ठ होना आवश्यक है। उस मन का जो तेज कर्म की प्रेरण के लिए आवश्यक है वही वरेण्य भर्ग है। मन की शक्तियों का तो पारवार नहीं है। उनमें से जितना अंश मनुष्य अपने लिए सक्षम बना पाता है, वहीं उसके लिए उस तेज का वरणीय अंश है। अतएव सविता के भर्ग की प्रार्थना में विशेष ध्वनि यह भी है कि सविता या मन का जो दिव्य अंश है वह पार्थिव या भूतों के धरातल पर अवतीर्ण होकर पार्थिव शरीर में प्रकाशित हो। इस गायत्री मंत्र में अन्य किसी प्रकार की कामना नहीं पाई जाती। यहाँ एक मात्र अभिलाषा यही है कि मानव को ईश्वर की ओर से मन के रूप में जो दिव्य शक्ति प्राप्त हुई है उसके द्वारा वह उसी सविता का ज्ञान करे और कर्मों के द्वारा उसे इस जीवन में सार्थक करे।
गायत्री के पूर्व में जो तीन व्याहृतियाँ हैं, वे भी सहेतुक हैं। भू पृथ्वीलोक, ऋग्वेद, अग्नि, पार्थिव जगत् और जाग्रत् अवस्था का सूचक है। भुव: अंतरिक्षलोक, यजुर्वेद, वायु देवता, प्राणात्मक जगत् और स्वप्नावस्था का सूचक है। स्व: द्युलोक, सामवेद, आदित्यदेवता, मनोमय जगत् और सुषुप्ति अवस्था का सूचक है। इस त्रिक के अन्य अनेक प्रतीक ब्राह्मण, उपनिषद् और पुराणों में कहे गए हैं, किंतु यदि त्रिक के विस्तार में व्याप्त निखिल विश्व को वाक के अक्षरों के संक्षिप्त संकेत में समझना चाहें तो उसके लिए ही यह ॐ संक्षिप्त संकेत गायत्री के आरंभ में रखा गया है। अ, उ, म इन तीनों मात्राओं से ॐ का स्वरूप बना है। अ अग्नि, उ वायु और म आदित्य का प्रतीक है। यह विश्व प्रजापति की वाक है। वाक का अनंत विस्तार है किंतु यदि उसका एक संक्षिप्त नमूना लेकर सारे विश्व का स्वरूप बताना चाहें तो अ, उ, म या ॐ कहने से उस त्रिक का परिचय प्राप्त होगा जिसका स्फुट प्रतीक त्रिपदा गायत्री है।
गायत्री मंत्र की सच्चाई
शास्त्र के अनुसार यह प्रमाण मिली है । गायत्री मंत्र का जन्म तब हुआ था जब इस पृथ्वी लोक पर कोई मनुष्य की जन्म नहीं हुआ, मनुष्य की जन्म से पहले ही यह मंत्रों की निर्माण किया गया था देव लोक पर ।
गायत्री मंत्र जाप करने से आप कितने फायदे में रहेंगे
धर्म ग्रंथ के अनुसार यदि आप गायत्री मंत्र का जाप किसी पवित्र स्थान में निरंतर करते हैं तो यह आपके लिए बहुत ही फायदे होंगे । सर्वप्रथम यदि आप इस मंत्र का जाप स्पष्ट उच्चारण से करते हैं तो आपके शरीर में कई प्रकार के रोगों का निवारण होंगे । और आपके शरीर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होंगे जिससे भूत भविष्य एवं संपूर्ण धर्म ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । कहां जाता है कि इस मंत्र का जप करने से शरीर में अपार शक्ति भी प्राप्त होती है । लेकिन यह शक्ति कोई मामूली शक्ति नहीं है इस मंत्र का जाप करने से आपके भीतर एक अपार दिव्य शक्ति प्राप्त होंगे जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान आप प्राप्त कर सकते हैं ।
अब नुकसान के बात करते हैं ।
वैज्ञानिक भी माना है कि अगर कोई भी व्यक्ति तन मन से और भक्ति से इस मंत्र का किसी एकांत स्थान में बैठकर जाप करते हैं तो सीधे परमात्मा से संपर्क कर सकते हैं । इसमें सिर्फ फायदे ही नजर आते हैं इस प्रभावशाली मंत्र में कोई भी चीज में नुकसान नहीं है । लेकिन आपको यह ध्यान देना बहुत ही आवश्यकता है कि जब आप इस मित्रों का जाप करते हैं तो आपके शरीर पर कैसा महसूस हो रहे हैं उस हिसाब से ही आपको इस मंत्र का जाप करना चाहिए । हां दोस्तों अगर आप इस मंत्र का टेस्ट करने के लिए जप करते हैं तो फिर आपके लिए नुकसान भी हो सकता है क्योंकि यह मंत्र सिद्ध किया हुआ मंत्र है । यह कोई चीज नहीं है जो आप इसे टेस्ट करके बता सकते हैं की हां भाई यह गाड़ी अच्छा है । दोस्तों सतयुग से पहले यानी जब पृथ्वी का निर्माण नहीं हुआ था यह मंत्र का जाप सभी देवी देवता करते थेऔर आज भी करते हैं इस मंत्र का प्रभाव बहुत ही तीव्र है ।