अहोई अष्टमी का व्रत क्यों रखा जाता है,क्या बेनिफिट मिलेंगे? जानकर चौंक जाएंगे

bholanath biswas
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अहोई अष्टमी




अहोई अष्टमी व्रत के नियम ऐसे करें पालन मिलेंगे सबसे ज्यादा लाभ ।

अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय होई का पूजन किया जाता है। तारों को करवा से अर्घ्य भी दिया जाता है। यह होई गेरु आदि के द्वारा दीवार पर बनाई जाती है अथवा किसी मोटे वस्त्र पर होई काढकर पूजा के समय उसे दीवार पर टांग दिया जाता है।




अहोई अष्टमी के विधि और नियम कैसे पालन करें जानें ।


 व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके संकल्प करें कि संतान की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें। अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पार्वती की पूजा करें। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनायें और साथ ही स्याहु और उसके सात संतानो का चित्र बनायें। उनके सामने अनाज मुख्य रूप से चावल ढीरी (कटोरी), मूली, सिंघाड़े रखते हैं और सुबह दिया रखकर कहानी कही जाती है। कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी/ सूट के दुप्पटे में बाँध लेते हैं। सुबह पूजा करते समय जि गर (लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं।) यह करवा, करवा चौथ में इस्तेमाल हुआ होना चाहिए। 


इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में छिड़का जाता है। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें। | पके खाने में चौदह पूरी और आठ पूयों का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। उस दिन बयाना निकाला जाता है - बायने मैं चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को आर्ध किया जाता है। शाम को माता के सामने दिया जलाते हैं और पूजा का सारा सामान (पूरी, मूली, सिंघाड़े, पूए, चावल और पका खाना) पंडित जी या घर के बडो को दिया जाता है। अहोई माता का कैलंडर दिवाली तक लगा रहना चाहिए। अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं।
पूजा के पश्चात सासु मां के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करें।


नोट - अगर घर में कोई नया मेम्बर आता है, तो उसका नाम का अहोई माता का कैलंडर उस साल लगाना चाहिए। यह कैलंडर, जहाँ हमेशा का अहोई माता का कैलेंडर लगाया जाता है, उसके लेफ्ट में लगते हैं। जब बच्चा होता है, उसी साल कुण्डवारा भरा जाता है। कुण्डवारे में चौदह कटोरियाँ/ सर्रियाँ, एक लोटा, एक जोड़ी कपडे, एक रुमाल रखते हैं। हर कटोरी में चार बादाम और एक छुवारा (टोटल पांच) रखते हैं और लोटे में पांच बादाम, दो छुवारे और रुमाल रखकर पूजा करते हैं। यह सारा सामान ननद को जाता है। अहोईअष्टमी के व्रत में चन्द्रोदय-व्यापिनी काíतक कृष्ण अष्टमी को चुना जाता है। 

अहोई अष्टमी का व्रत क्यों रखा जाता है ? 

दोस्तों आप बात करते हैं अहोई अष्टमी का व्रत लोग क्यों रखते हैं दोस्तों आपको पता होगा हर मां अपनी संतान की हमेशा भला चाहते हैं अगर संतान की कोई भी विपत्ति आ जाए तो माता कभी भी सुख में नहीं रहते हैं हमेशा बेचैन में रहते हैं यह बात आप हमेशा याद रखिए । अष्टमी का व्रत रखने से अपने संतान की हमेशा भला होते हैं कोई भी विपत्ति अपनी संतान पर नहीं आते हैं । अपने संतान की हमेशा सुरक्षा के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं जिसके कारण हर माताएं अष्टमी व्रत रखते हैं । दोस्तों यह भी जानकारी आपको होनी चाहिए औअहोई  व्रत करने वाले परिवार में हमेशा सुख समृद्धि बने रहते हैं और अकाल मृत्यु भी टाल जाता है ।


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