अयोध्या राम मंदिर का रुलाने वाले इतिहास, जानकर चौंक जाएंगे

bholanath biswas
0

ram mandir


अयोध्या राम मंदिर का इतिहास

हिंदुस्तान में एक बहुत बड़ा इतिहास बना डाला भाजपा सरकार । हजारों साल से भगवान श्री राम की मंदिर मस्जिद के नीचे दबा हुआ था जो विदेशी क्रूर राजा ने भव्य श्री राम मंदिर को तोड़ के मस्जिद बनवाया था . और यह जो सत्य इतिहास है सबके सामने इसके प्रमाण मिल ही गया । भव्य राम मंदिर फिर से निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे दिया और तभी से राम मंदिर के निर्माण शुरू किया । राम मंदिर शुरू के सिलसिले में खुदाई करते समय भगवान शिव लिंग मिली ओर फिर एक स्तंभ मिला जिस स्तंभ में भगवान श्री राम के नाम लिखा हुआ है ।



 यही है सबसे बड़ा प्रमाण जो आज राम मंदिर के विरुद्ध जो लोग कर रहे थे भगवान श्रीराम को एक काल्पनिक कह रहे थे उसकी मुंह में बड़ा तमाचा लगा है । यह बात तो तय है जो अंग्रेज वाले, मुगल वाले हिंदुस्तान के संस्कृति को नष्ट कर दिया था और वही इतिहास अपना संस्कृति को फिर से स्थापित करने हेतु भाजपा सरकार पीछे कदम नहीं रखे हैं ‌‌आपने कदम आगे बढ़ते जा रहे हैं । राम मंदिर बनाने में कई दिन से कोशिश में लगे हुए थे हिंदू संगठनों ने पर जब भी राम मंदिर की बात करते थे तभी कोशिश नाकाम होते थे । भाजपा सरकार आने के बाद इस नाकाम को सकार कर दिया सकार सबका दिल जीत लिया ऐसे इतिहास रचाया जो युगों तक की याद रखेंगे लोग ।भाजपा सरकार की मेन भूमिका में जो लोग रहा है उनको हमेशा याद करेंगे ।

जानिए अयोध्या राम मंदिर का 

पुरानी इतिहास ।


१५२८ में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था।
१८५३ में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ।
१८५९ में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।
१९४९ में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।
सन् १९८६ में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
सन् १९८९ में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की।
६ दिसम्बर १९९२ को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं।
उसके दस दिन बाद १६ दिसम्बर १९९२ को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
👇
लिब्रहान आयोग को१६ मार्च १९९३ को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में १७ साल लगाए।
१९९३ में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है। जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी। हाल ही में केंद्र की और से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।
१९९६ में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे १९९७ में कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया।
२००२ में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
२००३ में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
३० जून २००९ को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में ७०० पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा।
जांच आयोग का कार्यकाल ४८ बार बढ़ाया गया।
३१ मार्च २००९ को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने अर्थात् ३० जून तक के लिए बढ़ा गया।
२०१० में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उच्चतम न्यायालय ने ७ वर्ष बाद निर्णय लिया कि ११ अगस्त २०१७ से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और ७० वर्ष बाद ३० मार्च १९४६ के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित अर दिया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ५ दिसंबर २०१७ से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ५ फरवरी २०१८ से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी।
👇

इस तरह तारीख पर तारीख करते-करते आखिर सुप्रीम कोर्ट ने 2019 को राम मंदिर फिर से निर्माण के लिए आदेश दे दिया और मुस्लिम बोर्ड को इसके बदले में 5 एकड़ जमीन दिया ताकि वह लोग मस्जिद बना कर नमाज़ पढ़ सकें । सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कुछ मुस्लिम लोग खुश हुए तो कुछ मुस्लिम लोग नाराज भी हैं इसके लिए फिर से कुछ मुस्लिम समुदाय के लोग सुप्रीम कोर्ट ने अपील किया । इससे कुछ होने वाला नहीं है उनको पता है जहां राम मंदिर निर्माण शुरू हुआ है और बंद करने की किसी की बस की बात नहीं है  । दूसरी बात तो यह है कि खुदाई के वक्त बहुत बड़ा प्रमाण जो मिल गया इस प्रमाण के आधार पर हर विरोधी के नजर झुक जाएंगे शर्म से मर जाएंगे क्योंकि सत्य कभी छुपता नहीं है और यही है सत्य जो राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाया था विदेशी मुगलों ने । पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!
10 Reply