कर्म के दोहे >> संत कबीर दास की इस कर्म के दोहे पढ़ने से आप ले सकते हैं सही और गलत का निर्णय ।
कर्म के दोहे >> संत कबीर दास ने मनुष्य के कर्म पर कुछ अमृतवाणी उल्लेख किया जहां मनुष्य स्वयं सही और गलत का निर्णय ले सकता है । हम सभी कर्म के आधार पर हैं मनुष्य कर्म करेंगे तभी जिंदगी जी सकते हैं चाहे वह मनुष्य करोड़पति क्यों ना हो । सभी मनुष्य को अपनी कर्म करना जरूरी है यदि व्यक्ति कर्म ही नहीं करेंगे तो अपना जीवन कभी भी गुजार नहीं सकते हैं । लेकिन कर्म दो प्रकार होता है एक प्रकार सही कर्म और दूसरा प्रकार गलत कर्म , कुछ व्यक्ति सही कर्म करके अपना जिंदगी गुजारते हैं तो कुछ गलत कर्म करके अपनी जिंदगी गुजारते हैं । कर्म मनुष्य के लिए छोटा या बड़ा नहीं होता है लेकिन उसका रास्ता अलग अलग जरूर होती है । गलत कर्म करके पैसा कमाते हैं लोग और सही कर्म करके भी पैसा कमाते हैं लेकिन कर्म को हम गलत और सही क्यों कहते हैं कर्म को हम सही और गलत इसलिए कहते हैं क्योंकि उसका परिणाम भी अलग-अलग मिलती है । दुनिया में बहुत ऐसे लोग हैं जहां मौज मस्ती और ढेर सारा पैसा कमाने के लिए गलत रास्ता चयन करके कर्म करते हैं ।
कुछ लोग जल्दी अमीर बनने के लिए गलत रास्ता में जाकर कर्म करते हैं परंतु इस संसार में ऐसे बहुत गरीब इंसान है जहां सही रास्ता में थोड़ा बहुत पैसा कमा कर गुजारा करते हैं लेकिन इसका परिणाम दोनों का अलग-अलग है समय आने पर दोनों को ही समझ में आ जाता है। सही और गलत अगर कोई व्यक्ति निर्णय ले सकते हैं तो कभी भी अपने जीवन में पाप नहीं करेंगे ।पाप हम स्वयं करते हैं क्योंकि हमें पता है यह गलत रास्ता है जिसके कारण हमें उसका दंड भी मिलते हैं । जो व्यक्ति गलत को देखकर अंधा बन कर बैठ जाते हैं ऐसे व्यक्ति को समझाना भी मरता है अगर कोई व्यक्ति अपनी भूल को सुधारने की कोशिश करेंगे और गलत रास्ता सही रास्ता क्या जाने की प्रयास करेंगे तो हमें आशा है कबीर दास के इस दोहे को पढ़ना चाहिए । व्यक्ति यदि आपने कर्म के कारण जाने अनजाने में गलती कर बैठते हैं तो उसे सुधारना अवश्य चाहिए यदि अभी से आप नहीं सुधर पाएंगे तो जिंदगी में जीने का कोई मतलब ही नहीं रहता है क्योंकि यह जीवन अनमोल है इसलिए हमें महावीर संत कबीर दास की अनमोल वचन सुनना चाहिए ।
तो चलिए जानते हैं कर्म के आधार पर संत कबीर दास की दोहे ।
1) कबीर चंदन पर जला, तीतर बैठा मांहि।
हम तो दाझत पंख बिन, तुम दाजत हो काहि॥१॥
कबीरदास का कथन है कि चंदन का वृक्ष आग में जल रहा है और तभी उस पर तीतर ने आकर आश्रय लिया। तीतर को आश्रय लेते देख वृक्ष ने उससे कहा कि हमारे पास तो पंख नहीं हैं अत: हम जल रहे हैं, किंतु तुम तो पंखविहीन नहीं हो, उड़ क्यों नहीं जाते? क्यों स्वयं को जला रहे हो।
2) काला मुंह करूं करम का, आदर लावू आग।
लोभ बड़ाई छोड़ि के, रांचूं गुरु के राग॥२॥
मोहमाया वश किए गए कर्म का मुंह काला करना और मान-सम्मान को भी अग्नि में डालना ही सही है। लोभ, बड़ाई आदि सबकुछ छोड़कर गुरु की अमृतवाणी का ही राग अलापता रहूं, यही सच्ची साधना है। यही जीवन का मोक्ष है।
3) काया खेत किसान मन, पाप पुन्न दो बीव।
बोया लूनै आपना, कसकै जीव॥३॥
शरीर खेत है तो मन किसान। पाप और पुण्य दोनों बीज रूप हैं। जो भी बीज बोया जाएगा उसी का फल काटने को मिलेगा अर्थात जैसा कर्म होगा वैसा ही फल मिलेगा। मोह-माया में पड़कर पाप किए जाएं तो जीव को कष्ट होता ही है।
4) कबीर कमाई आपनी, कबहु न निष्फल जाय।
सात समुद्र आड़ा पड़े, मिलै अगाड़ी आय॥४॥
कबीरदास का कथन है कि पक्षी ने प्रत्युत्तर में कहा कि अपने द्वारा किए कर्म का फल अवश्य मिलता है। हम अपने कर्मों से भागकर सात समुद्र पार भी चले जाएं तब भी उनसे बच नहीं सकते। अर्थात बुरे कर्म के अधीन होकर जीव का ज्ञान रहते हुए भी प्राणी दुख भोगने को विवश है।
5) कबीर सजड़े ही जड़ा, झूठा मोह अपार।
अनेक लुहारे पचि मुये, उझड़त नहीं लगार॥५॥
कबीरदास का कथन है कि अज्ञानी सदैव मोह-माया के झूठे बंधनों में ही जकड़ा रहता है। कई उपदेशक लोहार बनकर इन बंधनों को काटने की कोशिश भी करते हैं किंतु मोह-माया का लौहबंधन इतना सुदृढ़ होता है कि कटता ही नहीं।
6) करें बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोय।
रोपै पेड़ बबूल का, आम कहां ते होय।।६।।
बुरे कर्म करने के बाद कोई सखों की कामना करना चाहे तो यह संभव ही नहीं है और ऐसा हो भी नहीं सकता। जब बबूल का वृक्ष बाया गया हो तो आम के फल की आशा करना व्यर्थ है। अर्थात जो जैसा कर्म करेगा उसे वैसा परारब्ध बना ही फल मिलेगा।
7) जह यह जियरा पगु धरे, बखत बराबर साथ।
जो है लिखा नसीब में, चलै न अविचल बात।।७।।
मनुष्य जहां-जहां भी अपने पैर धरता जाता है, उसके कर्म उसके सान्निध्य । में सदैव लगे रहते हैं। उसके भाग्य में जो कुछ लिखा हुआ है वह उसे अवश्य ही भोगता है। यह टाली जा सकनेवाली बात नहीं है। अत: मनुष्य को सदैव सत्कर्मों पर ही ध्यान देना चाहिए अन्यथा पृथ्वी पर उसका जीवन व्यर्थ ही है।
8) प्रारब्ध पहिले बना,पीछे सरीर।
कबीर अचम्भा है यही, मन नहिं बांधे धीर।।८।।
मनुष्य को जो कुछ भी भोगना है उसका निर्धारण तो भगवान ने पहले ही कर दिया है। तत्पश्चात ही इस मानव शरीर की रचना हुई। कबीरदास आश्चर्यचकित हैं कि यह सबकुछ जानते हुए भी लोगों के मन में धैर्य बिल्कुल भी नहीं है।
9 ) बाहिर सुख दुख देन को, हुकुम करै मन मांय।
जब उठे मन बखत को, बाहिर रूप धरि आय॥९॥
हर तरह के सुख-दुख देने को, अंदर से हमारा मन ही आदेश देता है। इस सुख-दुख को भोगने के समय भी यही मन बाहरी आवरण चढ़ाकर आगे है अर्थात हमारा मन ही सबकुछ है I
10) बखत कहो या करम कहु, नसिब कहो निरधार।
सहस नाम हैं करम के, मन ही सिरजनहार॥१०॥
इसे समय कहो या फिर कर्म, नसीब कहो या कोई भी अन्य नाम रखो। इस कर्म के हजारों नाम हैं और इन सबका सृजनहार मन ही है। अत: मन को सदा संयमित करके रखो।
हमें आशा है यहां आपके लिए कबीर दास के दोहे जितने भी आर्टिकल के माध्यम से बताया गया है आपको अच्छा लगा होगा मित्रों यदि आप और भी कबीर दास के दोहे पढ़ना चाहते हैं तो हमारे साथ इसी प्रकार बने रहिए और अपने जीवन सफल बनाई आपका दिन शुभ हो मंगलमय हो ।