Shri Krishna : बाणासुर का वध किसने किया था ?

bholanath biswas
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भोलेनाथ का दिया हुआ वरदान जब कोई दुरपयोग करते हैं तो उसका नतीजा बहुत भयंकर होता है ऐसे ही एक पौराणिक कथाओं के अनुसार
बानासुर बड़ा शीव भक्त था। एक दीन उनके गुरु शुक्र जी से वो मीला तब उसने तप के महिमा के बरे मे पूछा . गुरूजी ने कहा: सुनो जग्राय त्रिलोक म शम्भू भोला आप्शे वरदान .मधुवन मे जाके तप करो आराधो शीव भगवान उसके बाद बानासुर मधुवन मे तप करने के लीये जाता है और वहा जाकर नीर्मल जल से स्नान करके बाय्ने हाथ मे जपमाला ले कर उसने तप करना शुरू किया कितने सालो तक उसने तप कीया की उसके शरीर का रक्त भी सुख गया। उसके तप से पुरा त्रीभुवन डोल ने लगा. तब शंकर जी बोले : सुनो उमीया माय रे एक असुर महातप करे और धरे मेरा ध्यान रे.उसको कैसे समजाये वो तो बैठा करने महा जाप रे.आप कहो तो उसे वरदान दु और कहो तो उसे अपना पुत्र बनावु.तब उमीयाजी बोले : मेरी बात सुनो शुल्पानी रे दूध पिलाके साँप को पालेंगे तो आगे जाके हमको ही तकलीफ होगी.याद होगा आपने एक बार रावन को भी वरदान दिया था। उसने सीताजी को परेशां किया था। तो अब मे कया सलाह दू आपको जो ठीक लगे वो कीजये.

शिवजी बोले : आप सुनो उमीया माय रे, जो मेरी सेवा करके जल चढाये उसकी काया करू निर्मल रे. जो सेवा करके सुगंध चढाये उसकी बुद्धी करू धन धन रे. जो मुजे चढाये बिली पत्र उसे दू सोने कया छात्र रे. जो मेरी सेवा करके बजाये जाल्ताल उसे कर्दु न्याल रे. नारी पानी ऐ बुद्धी आपकी, देने की लिए न करे देरी . मे तो भोला नाथ हू, अब कपटी नाथ कैसे हो जाऊ . ऐसा बोल कर चले भोलेनाथ और रखा बानासुर के शीर पे हाथ। ओर बोले जग बानसुर राय जतुजे वर्दन दे शीव्राय।






बानसुर बोला : मे तो जग रह हू भग्वान्, देदो शोनित्पुर का राज रे। मे मान्गुु बार बार, मुजे देदो हाथ ह्जार रे। ऐसा उप्कार किजिए दस हजार हाथी जित्ना बल दीजीए। अस्तु केह कर शीव जि ने वर्दान दीया ओर बानासुर को पुत्र कर के स्तापीत कीया।

बानासुर पूरी पृथ्वी का अधिपति बन गया ।

वरदान पा कर बानासुर शोणितपुर मे वापिस गया। तब उसे देख कर सब पशु पंखी डरने लगे और जैसे कोई जाड चला आ रहा हो ऐसा लग रहा था। जब वो अपने नगर के नजदीक आया तो सिर्फ उसके प्रधान ने ही उसको पहचाना। उसके बाद उसकी शादी हुए और उसके बाद उसने एक के बाद एक सभी देश को जीतना शुरू कर दीया, उसने पाताल लोक को भी नही छोड़ा अब उसको स्वर्ग जीतने की इच्छा हुयी और वो स्वर्ग जीतने गया और उसके डर से सभी देवता वहा से चले गए। उसने सूर्य तक को भी जीत लीया। जब वो सूर्य को जीत कर वापिस जा रहा था तब उसे नारद जी मेले और वो नारद्जी को प्रणाम करके बोला ओ नारदजी अब एक भी योदधां नही है अब मे के करू ?
नारद जी बोले : तो सुन बानासुर राय जिसने तुझको हजारो हाथ दीये उसी शीव से जाके संग्राम कर .

बानासुर शिवजी के साथ युद्ध करने के लिये गया संपादित करें
कैलाश पर्वत पर जाके उसने उसको हीलाना शुरू कीया यह देख कर पार्वती जी डर गयी और शिवजी के पास जा कर बोली अरे अरे शीवराय जिसको आपने शोनीतपुर का राज्य दीया हजारो हाथ दीए अब वो यहा क्या मांगने वापिस आया है?
बनासुर बोला : आपने मुजे हजारो हाथ दीए यह अत्या है पर अब लड़ने के लिए मुजे कोई समर्थ योदधां भी दीजीये और मेरे साथ युद्ध कीजीये।
शिवजी बोले : यह तेरी जीद छोड़ दे वरना बहुत पछ्तायेंगा।

शिवजी ने बानासुर को श्राप दिया संपादित करें
शिवजी बोले तुमने यह ठीक नही किया, इसीलिये मे तुम्हें यह श्राप देता हूँ की ऐसा कोई आयेगा तुम्हारे जो हाथ काट देगा औ‍र तुम्हारे अनेक टुकडे करके तुम्हें मार देगा |
डर के मारे बानासुर बोला : मैं यह कैसे जानूंगा कि वह व्यक्ति कौन है, जो ऍसा करेगा?
शिवजी बोले : तो ले बानासुर मे तुझे एक ध्वजा दे रहा हूँ, जब यह ध्वजा टूट जाए तब तेरे हाथ कट जायेंगे और तेरे नगर मे खून की बारिश होगी| तब तू यह जान जाएगा कि तेरी मौत आ गई है। यह वरदान ले कर बानासुर वापिस अपने शोणितपुर मे आ गया |

कहते हैं कि इंसान के बुद्धि भ्रष्ट तब होते हैं जब उनकी अहंकार पैदा होती है इसी तरह बनासुर की अहंकार से उनकी मौत हुई है । जिस ने वरदान दिया उसने श्राप भी दिया इसे कहते हैं नियति ।

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