तुलसीदास के 10 दोहे :
16वीं शताब्दी के हिंदू कवि-संत तुलसीदास भगवान राम को समर्पित अपनी भक्ति रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना "रामचरितमानस" है, जो अवधी भाषा में रामायण का पुनर्कथन है। तुलसीदास के "रामचरितमानस" से दस दोहे यहां प्रस्तुत हैं:
1. **मनुष्यतुल्य कोई शरीर धारण करता है।**
मनुष्यतुल्य कोई शरीर धारण करता है।
मानव जन्म दुर्लभ है, संत कबीर भी कहते हैं।
2. **परहित सरिस धर्म नहीं भाई।**
परहित सरिस धर्म नहीं भाई। परपीड़ा सम नहिं अधमाई॥
पर पीड़ा सम नहीं अधमै॥
3. **राम नाम मणिदीप धरु जीह देहरिं द्वार।**
राम नाम मणिदीप धरु जीह देहरिं द्वार। तुलसी भीतर बहेरहुँ जौं चाहसि उजीर॥ तुलसी भीतर बहेरहुँ जन चौहासि उजियार॥
4. **सियाराम मय सब जग जानी।**
सियाराम मय सब जग जानी। करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी॥ करहुँ प्रणाम जोरी जुग पानी॥
5. **तुलसी जाकी रही भावना जैसी।**
तुलसी जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखें तिन्ह तैसी॥ प्रभु मूरत देखी तिन्ह तैसी॥
6. **जाके प्रिय न राम वैदेही।**
जाके प्रिय न राम वैदेही। तजिये ताहि कोटि बैरी सम, शीघ्रि परम सनेही॥ तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यापि परम सनेही॥
7. **अब न होइहि राम बिनु, धीरज धरम बिबेक।**
अब न होइहि राम बिनु, धीरज धरम बिबेक। आपुहि देखि बिरहातुर, रहे लखन सन एक॥
आपुहि देखि बिरहातुर, रहे लखन सं एक॥
8. **सुमिरि पवनसुत पवन नामू।**
सुमिरि पवन सुत पावन नामू। अपनु बिसरन दीन दयाल रामू॥ अपनौ बिसारन दीन दयाल रामू॥
9. **प्रेम भगति जहाँ राम पुत्र, तेहं भव बंध न होई।**
प्रेम भगति जहाँ राम पुत्र, तेहं भव बंध न होई। एक बार रघुबीरहिन, चितवो जासु किन होइ॥ एक बर रघुबीरहिं, चितवो जस किं होई॥
10. **राम नाम का मरम है, जब लगी घट माही।**
राम नाम का मरम है, जब लगी घट माही। तिहं को जानै कौन जन, जेहि सम रहा न कोही॥
तिहं को जानै कौन जन, जेहि सम रहा न कोही॥
ये दोहे तुलसीदास की भगवान राम के प्रति गहरी भक्ति और उनकी दार्शनिक अंतर्दृष्टि को दर्शाते हैं। वे धार्मिक जीवन, भक्ति और धर्म के महत्व पर जोर देते हैं। भगवान राम का दिव्य स्वरूप।