ईसाई धर्म कब से बने जाने हमारे साथ उससे पहले हमारे वेबसाइट में है आपको स्वागतम है 🙏 मित्रों जिस तरह प्रत्येक मनुष्य के सोच विचार धरा अलग है ठीक उसी प्रकार हमारे दुनिया में धर्म भी अलग-अलग बने हुए हैं ।
आज दुनिया में जो कुछ भी इतिहास बने हैं यह सभी पुस्तक में उल्लेख किया गया और सभी के इतिहास घुमा फिरा के एक ही बात आते हैं आज वही बात हम जानने की कोशिश करेंगे । विश्वास करना और नहीं करना यह सब अपने पर होता है हमें तो बस धर्म के इतिहास उजागर करना है ताकि पापों को विनाश कर सकें।
मित्रों इसी के आधार पर आज हम जानेंगे ईसाई धर्म कब बने हैं ?
ईसाई धर्म प्राचीन यहूदी परंपरा से निकला एकेश्वरवादी धर्म है। इसकी शुरूआत प्रथम सदी ई. में फलिस्तीन में हुुुई, जिसके अनुयायी ईसाई कहलाते हैं। यह धर्म ईसा मसीह की शिक्षाओं पर आधारित है। ईसाइयों में मुख्ययतः तीन समुदाय हैं, कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स तथा इनका धर्मग्रंथ बाइबिल है। ईसाइयों के धार्मिक स्थल को चर्च कहते हैं। विश्व में सर्वाधिक लोग ईसाई धर्म को मानते हैं।
ईसाई धर्म के नियम अनुसार मूर्तिपूजा, किसी पूजा के प्रसाद ग्रहण करना ,हत्या, व्यभिचार व किसी को भी व्यर्थ आघात पहुंचाना पाप है। 4थी सदी तक यह धर्म किसी क्रांति की तरह फैला, किन्तु इसके बाद ईसाई धर्म में अत्यधिक कर्मकांडों की प्रधानता तथा धर्मसत्ता ने दुनिया को अंधकार युग में धकेल दिया था। फलस्वरूप पुनर्जागरण के बाद से इसमें रीति-रिवाज़ों के बजाय आत्मिक परिवर्तन पर अधिक ज़ोर दिया जाता है।
ईश्वर कौौन है ?
ईसाई एकेश्वरवादी हैं, लेकिन वे ईश्वर को त्रीएक के रूप में समझते हैं -- परमपिता परमेश्वर, उनके पुत्र ईसा मसीह (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा।
परमपिता कौन है ?
परमपिता इस सृष्टि के रचयिता हैं और इसके शासक भी। परमपिता कौन है उनका कोई परिचय नहीं दिया उन्होंने एक ही बात का उल्लेख किया कि मैं परम पिता के पुत्र हूं हम सभी उन्हीं के कृपा से चलते हैं उन्हें पहचानो ।
यीशु मसीह कौन है ?
यीशु मसीह स्वयं परमेश्वर के पुत्र बताया है जो पतन हुए (पापी) सभी मनुष्यों को पाप और मृत्यु से बचाने के लिए जगत में देहधारण पृथ्वी लोक में जन्म लिया था। परमेश्वर जो पवित्र हैं। एक देह में प्रगट हुए ताकि पापी मनुष्यों को नहीं परन्तु मनुष्यों के अन्दर के पापों को खत्म करें। बाइबल में ऐसे उल्लेख है वे इस पृथ्वी पर पहले ऐसे ईश्वर है.जो पापी, बीमार, मूर्खों और सताए हुओं का। पक्ष लिया और उनके बदले में पाप की कीमत अपनी जान देकर चुकाई ताकि मनुष्य बच सकें | हमारे पापों की सजा यीशु मसीह चूका दिए इस लिए हमें पापों से क्षमा मिलती है। यह पापी मनुष्य और पवित्र परमेश्वर के मिलन का मिशन था जो प्रभु यीशु के क़ुरबानी से पूरा हुआ। एक श्रृष्टिकर्ता परमेश्वर हो कर उन्होंने पापियों को नहीं मारा परन्तु पाप का इलाज़ किया।
यह बात परमेश्वर पिता का मनुष्यों के प्रति अटूट प्रेम को प्रगट करता है। मनुष्यों को पाप से बचाने के लिये परमेश्वर शरीर में आए। यह बात ही यीशु मसीह का परिचय है। यीशु मसीह परमेश्वर थे यही बात आज का यीशुई धर्म का आधार है।
ईसाई धर्म कब उत्पत्ति हुई ?
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उन्होंने स्वयं कहा मैं हूँ यीशु मसीह (यीशु) एक यहूदी थे जो इस्राइल इजराइल के गाँव बेत्लहम में जन्मे है (४ यीशुपूर्व)। यीशुई मानते हैं कि उनकी माता मारिया (मरियम) कुवांरी (वर्जिन) थीं। यीशु उनके गर्भ में परमपिता परमेश्वर की कृपा से चमत्कारिक रूप से आये है। यीशु के बारे में यहूदी नबियों ने भविष्यवाणी की है कि एक मसीहा (अर्थात "राजा" या तारणहार) जन्म लेगा। कुछ लोग ये मानते हैं कि यीशु भारत भी आये थे। बाद में यीशु ने इजराइल में यहूदियों के बीच प्रेम का संदेश सुनाया और कहा कि वो ही ईश्वर के पुत्र हैं। इन बातों पर पुराणपंथी यहूदी धर्मगुरु भड़क उठे और उनके कहने पर इजराइल के रोमन राज्यपाल ने यीशु को क्रूस पर चढ़ाकर मारने का प्राणदण्ड दे दिया। यीशुई मानते हैं कि इसके तीन दिन बाद यीशु का पुनरुत्थान हुआ या यीशु पुनर्जीवित हो गये। यीशु के उपदेश बाइबिल के नये नियम में उनके 12 शिष्यों द्वारा रेखांकित किये गये हैं। उसी के अनुसार ईसाई धर्म के प्रचार शुरू होने लगे ।
धर्म के अनुसार 1500 साल पहले यीशु मसीह का पुनरूत्थान यानी मृत्यु पर विजय पाने के बाद अथवा तीसरे दिन में जीवित होने के वाद यीशु एक साथ प्रार्थना कर रहे सभी शिष्य और अन्य मिलाकर कूल 40 लोग वहा मौजूद थे पहले उन सभी के सामने प्रकट हुए । उसके बाद बहूत सारे जगह पर और बहूत लोगो के साथ भी चमत्कार भी है जहां लोग यीशु मसीह को एक परमात्मा के रूप में देखने लगे ।