भगवान गणेश जी का छोटी सी कहानी
यह कैसे संजोग कैसे वक्त हैं जो अपने ही पुत्र की सिर काटना पड़ा कहते हैं इंसान की कितने भी तकलीफ हो पर वक्त पर जरूर बदल जाते हैं । जो विधाता की नियम है वह तो होना ही है इसे कोई नहीं टल सकता हैं इसलिए पूरे ब्रह्मांड में विधाता के आगे और कुछ नहीं है ।
ईश्वर की लीला इंसान के समझ की बाहर हैं ।
हिंदू शास्त्र में जो कहा गया है उसे समझने की सभी को जरूरत है इसलिए आज मैं जो भी कहने जा रहा हूं इसे जरूर पढ़िए ।
👇
शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्रसंहिताके चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वार पाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। मां की ऐसी दृश्य देखकर देवताओं ने पूरी तरह भयभीत हो चुका था और फिर देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर भगवान विष्णु उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गज मुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सभी देवताओं से पहले होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष होगा। भगवान गणेश भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ था। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।