धर्म और अधर्म का जन्म कैसे हुआ जानें


धर्म


 

मानव जाति में धर्म और अधर्म को लेकर जीवन व्यतीत करना पड़ता है । पर कुछ लोगों को धर्म के विषय में पता है और कुछ लोगों को धर्म के विषय में पता नहीं है जिसके कारण उन्होंने अधर्म की रास्ता चुन लेते हैं । उन्हें पता है कि यह रास्ता चुनने से हमें पाप लगेगा मगर फिर भी उन्होंने वही करता है जो उनकी आत्मा चाहते हैं । 

 जो लोग जानते हैं कि अधर्म की रास्ता मैं जाने से पाप लगता है वह लोग उस रास्ते से हमेशा बचने की सोचते हैं  । अधर्म मतलब पाप होता है और यह बात हमेशा जो व्यक्ति दिमाग में रख देते हैं उनसे पाप बहुत कम होते हैं । इसलिए वह लोग हमेशा ईश्वर प्रति विश्वास रखते हैं , अपने कर्मों  सच्चे मन से ईश्वर पर अर्पित करते हैं, वह लोग अपने जिंदगी का जो भी फैसला होता है ईश्वर पर छोड़ देते हैं । इसलिए हमेशा ईश्वर अपने भक्तों को बुरे अधर्म कर्म करने से बचाते हैं ।

जो व्यक्ति ईश्वर प्रति विश्वास नहीं रखते हैं वह हमेशा अधर्म की रास्ता मैं जाते हैं और उन्हें बड़ी आनंद मिलता है । शैतान लोगों को धर्म की रास्ता अच्छा नहीं लगता क्योंकि धर्म की रास्ता में उनकी आत्मा को संतुष्ट नहीं मिलेगी अधर्म के रास्ता में मौज मस्ती बहुत कुछ कर सकते हैं बहुत जल्दी अमीर हो सकते हैं । पर धर्म के रास्ते में आप ज्यादा मौज मस्ती और बहुत जल्दी अमीर नहीं बन सकते हैं । जो लोग अधर्म के रास्ता मैं जाते हैं उनकी जिंदगी कुछ अलग तरीका के होते हैं ,न वह कोई ईश्वर प्रति विश्वास रखते हैं और न ही वह किसी मनुष्य पर विश्वास रखते हैं बस अपने अधर्म की रास्ता मैं चलकर आनंद लेते हैं।


जिस प्रकार पूरे ब्रह्मांड की सृष्टि किया है , जिस प्रकार ईश्वर की सृष्टि हुआ है ,जिस प्रकार मनुष्य की जन्म हुआ है । ठीक उसी प्रकार धर्म और अधर्म का भी जन्म हुआ है । इस संसार में यदि धर्म ही नहीं रहे तो यह संसार मनुष्य के लिए नहीं पूरे ब्रह्मांड लुप्त हो जाएगा आइए जानते हैं 


पुराणों के अनुसार धर्म, ब्रह्मा के एक मानस पुत्र हैं। वे उनके दाहिने वक्ष से उत्पन्न हुए हैं। धर्म का विवाह दक्ष की १३ पुत्रियों से हुआ था, जिनके नाम हैं- श्रद्धा, मैत्री, दया, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, ह्री और मूर्ति। श्रद्धा से नर और काम का जन्म हुआ ; तुष्टि से सन्तोष और क्रिया का जन्म हुआ ; क्रिया से दण्ड, नय और विनय का जन्म हुआ।


अहिंसा, धर्म की पत्नी (शक्ति) हैं। धर्म तथा अहिंसा से विष्णु का जन्म हुआ है। धर्म की ग्लानि होने पर उसकी पुनर्प्रतिष्ठा के लिए विष्णु अवतार लेते हैं।


विष्णुपुराण में 'अधर्म' का भी उल्लेख है। अधर्म की पत्नी हिंसा है जिससे अनृत नामक पुत्र और निकृति नाम की कन्या का जन्म हुआ। भय और नर्क अधर्म के नाती हैं ।

यह बात भी याद रखना चाहिए सभी को कि दुनिया में अधर्म भी होना जरूरी है यदि अधर्म नहीं है तो उसे समझ नहीं आएगा कि धर्म क्या है , अधर्म करने के बाद ही उसे पता चलता है कि यह रास्ता पाप की रास्ता है यह रास्ता सही नहीं है । जब उन्हें धर्म की बात सामने आएगी तब उन्हें पता चलेगा कि यह पुण्य का रास्ता है इसमें कोई पाप नहीं है इसलिए अधर्म को भी रहना जरूरी है इंसान की सोच बदल देते हैं ।

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