कबीर दास के प्रभावशाली दोहे पढ़ने से ज्ञान की वृद्धि

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कबीर दास के प्रभावशाली दोहे


कबीरदस के कुछ अमृतवाणी है जिसे पढ़ने के बाद हर इंसान के मन परिवर्तन होना ही है क्योंकि उन्होंने इंसान का कर्म क्या है और हमेशा सोच क्या रखनी चाहिए सब कुछ बताया गया है ताकि इंसान कहीं अनजाने में बहुत बड़ा पाप कर ना बैठें । दोस्तों नमस्कार हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है । वैसे तो कबीर दास के बहुत सारे अमृतवाण  उल्लेख किया हुआ है पर आज हम कबीर दास के कुछ दोहे अपने लेख में उल्लेख किया जिसे पढ़ने के बाद उम्मीद करते हैं कि आपका ज्ञान कई गुना बढ़ सकता है ।


चलिए विस्तार से जानते हैं कबीर दास के अमृतवाणी ।



 मैं मैं मेरी जीनी करै, मेरी सूल बीनास ।

मेरी पग का पैषणा, मेरी गल कि पास ॥



अर्थात: - कबीर जी का कहना है लालच और अंहकार क्या है - हर जगह मैं-मैं करना या सभी चीज़ो को अपना समझना ये सब विनाष के कारण ही है। लालच और अंहकार पैरो के लिए बेडी है, और गले के लिए फांसी के समान है। अथार्थ हर इंसान को लालच और अहंकार से सदा दूर रहना चाहिए। यदि हम लालच कर रहे है तो - इस बात को हमेशा याद रखें अपने ही पैरो में कुल्हाड़ी मर रहे है।


मन जाणे सब बात, जांणत ही औगुन करै ।

काहे की कुसलात, कर दीपक कूंवै पड़े ॥



अर्थात: - हमारा मन सब कुछ जानता है , सही कर्म क्या है और गलत कर्म क्या है । लेकिन फिर भी लोग गलत कार्य करता है। कबीर जी कहते है ये ठीक उसी प्रकार है जैसे की कोई हाथ में दीपक पकड़ कर भी कुएँ में गिर जाए। ऐसा व्यक्ति कैसे कुशल रह सकता है ऐसे व्यक्ति तो हमेशा संकट में ही रहेंगे ।


हिरदा भीतर आरसी, मुख देखा नहीं जाई ।

मुख तो तौ परि देखिए, जे मन की दुविधा जाई ॥



अर्थात: - संत कबीर जी कहते है कि मनुष्य के ह्रदय में ही आइना होता है लेकिन वह स्वयं को या वास्तविकता को नहीं देख पता है।  लोग स्वयं को या वास्तविकता को तभी देख पता है जब उसके मन की दुविधा अथार्थ संकट उसे घैर लेता है।  चिंता अथवा मन का कास्ट ऐसा चीज़ है जो मनुष्य को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है। धीरे धीरे व्यक्ति खुद की पहचान भूलने लगता है। इसलिए चिंता से हमेशा बच कर रहना चाहिए। 



करता था तो क्यूं रहय, जब करि क्यूं पछिताय ।

बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय ॥


अर्थात: - कबीर जी कहते है कि किसी कार्य को सुरु करने से पहले उसके परिणाम के बारे में अच्छे से सोच समझ लेना चाहिए, और यदि बिना सोचे समझे काम कर लिए तो फिर क्यों अफसोस कर रहे हो। ये ठीक उसी प्रकार है की आप बिना सोचे समझे बाबुल का पेड़ लगाए है और आम खाने की इंतजार कर रहे है। अथार्थ हमें कोई भी काम सोच समझ कर करना चाहिए ताकि बाद में हमे इस काम के लिए पछताना न पड़े।



माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर ।

आसा त्रिष्णा णा मुइ, यों कही गया कबीर ॥


अर्थात: - संत कबीर जी का ऐसा मानना है और कहना है कि मनुष्य का शरीर बार बार मरता है लेकिन उसका मन, आशा और तृष्णा कभी नहीं मरता। ये सब सिर्फ एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश होती है जहां मनुष्य का पुनर्जन्म कहा जाता है । 


प्रिय मित्रों हम सब जानते हैं कि बुरे कर्म का फल बुरा होता है अच्छा कर्म का फल अच्छा ही होती है । लेकिन फिर भी मनुष्य बुरे कर्म करना छोड़ते नहीं है ।  वर्तमान आप देखते तो हैं कि मनुष्य रिश्वत लेना, जीव को हत्या करना, किसी को बलात्कार करना यह सब तो बुरे कर्म ही तो है और इसका दंड बहुत ही भयानक मिलता है लेकिन फिर भी इंसान बुरे कर्म को करना छोड़ते नहीं है ।  इंसान देखते हुए भी अंधा बन कर रह जाते हैं । मुझे उम्मीद है कि इस जानकारी से आपको कुछ तो मिला होगा और भी संत कबीर दास के अमृतवाणी पढ़ना चाहते तो नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर कमेंट करें । धन्यवाद आपका दिन शुभ हो ।


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