नेहरू परिवार का इतिहास: नेहरू परिवार का काला सच

 

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नेहरू परिवार का यह है काला सच जानने के बाद आप भी चौंक जाएंगे


नेहरू परिवार का यह है पुराने संपूर्ण इतिहास जहां आप जान सकते हैं हमारे साथ नमस्कार मित्रों हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है । 

कुछ इतिहास पढ़ने के बाद हमें यह पता चलता है कि हमारे देश में किस तरह आजादी मिली थी । भारत आजादी के पीछे कुछ ऐसी सच्चाई जो हमें छुपाया गया है तो चलिए कुछ इतिहास इन नेहरू के बारे में जानने की कोशिश करते हैं । 


 1964 कहां गया है भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे और स्वतन्त्रता के पूर्व और पश्चात् की भारतीय राजनीति में केन्द्रीय व्यक्तित्व में भूमिका निभाई थी । महात्मा गांधी के संरक्षण में, वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सबके सामने नेता के रूप में उभरे । और यह सब इसलिए हुआ कि गांधी का हाथ नेहरू के सिर पर थे । और जवाहरलाल 1947 में भारत के एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर 1964 तक अपने मरने तक भारत पर राज शासन किया। वे आधुनिक भारतीय राष्ट्र-राज्य – एक सम्प्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतान्त्रिक गणतन्त्र - के विचारधारा में महात्मा गांधी चला करते थे और उसी रास्ता में जहर लाल नेहरू की शामिल थे । 


कश्मीरी पंडित उन्हें नेहरू पंडित करके बुलाया करते थे और भारत के अधिकांश क्षेत्रों में चाचा नेहरू नाम से जाना जाता है ।

जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को ब्रिटिश शासन काल भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ। उनके पिता नाम मोतीलाल नेहरू जो कि (1861–1931), एक धनी बैरिस्टर कश्मीरी पण्डित थे।

 दरअसल मोती लाल नेहरू सारस्वत कौल ब्राह्मण समुदाय से थे । भारत स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष रूप में चुने गए हैं ।  उनकी माता स्वरूपरानी थुस्सू (1868–1938), जो लाहौर में बसे एक सुपरिचित कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से थी ।  मोतीलाल नेहरू की दूसरी पत्नी थी व पहली पत्नी की प्रसव के दौरान निधन हो गई थी। जवाहरलाल तीन संतान में से सबसे बड़े थे, जिनमें बाकी दो जवाहरलाल नेहरू की बहन थी।  बड़ी बहन, विजया लक्ष्मी, बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी। सबसे छोटी बहन, कृष्णा हठीसिंग, एक उल्लेखनीय लेखिका बनी और उन्होंने अपने परिवार-जनों से संबंधित कई पुस्तकें लिखी थी । 

जवाहरलाल नेहरू ने नामी दामि स्कूलों और विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो से और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज (लंदन) से पूरी की थी। इसके बाद जवाहरलाल अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की। इंग्लैंड में जवाहरलाल सात साल व्यतीत किए जिसमें वहां के फैबियन समाजवाद और आयरिश राष्ट्रवाद के लिए एक तर्कसंगत एक संगठन भी किया।


जवाहरलाल नेहरू 1912 में जब भारत लौटे और फिर वकालत शुरू की । 1916 में जवाहरलाल की शादी कमला नेहरू से हुई। उसके बाद 1917 में जवाहर लाल नेहरू होम रुल लीग‎ में शामिल हो गए।

 राजनीति में जवाहरलाल नेहरू को असली दीक्षा दो साल बाद 1919 में हुई जब वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए थे । उस समय महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियम के विरोध एक अभियान शुरूआत किया था। उस अभियान में महात्मा गांधी के साथ नेहरू के परिचय हुआ उसी समय से संबंध बने । 


नेहरू ने महात्मा गांधी के प्रत्येक उपदेशों को पालन कर रहे थे जिसके कारण नेहरू के पूरे परिवार को गांधी ने अपना लिया ।  जवाहरलाल और मोतीलाल नेहरू ने पश्चिमी कपड़ों और कुछ संपत्ति का त्याग कर दिया। वे अब एक खादी कुर्ता और गांधी टोपी पहनने लगे। जवाहर लाल नेहरू ने 1920-1922 में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण उन्हें पहली बार गिरफ्तार किए गए। कुछ महीनों के बाद उन्हें फिर रिहा कर दिया गया।


जवाहरलाल नेहरू 1924 में इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष पद पर चुने गए और उन्होंने शहर के मुख्य कार्यकारी मुख्य अधिकारी के रूप में दो वर्ष तक सेवा की एवं 1926 में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से सहायता की कमी का हवाला देकर त्यागपत्र भी दे दिया।


1926 से लेकर 1928 तक, जवाहर लाल नेहरू ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव के रूप में सेवा किया था । उस समय 1928-29 में, कांग्रेस के वार्षिक सत्र का आयोजन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुई थी ।

उस समय जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस ने पूरी राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग का समर्थन किया, जबकि मोतीलाल नेहरू और अन्य नेताओं ने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर ही प्रभुत्व सम्पन्न राज्य का दर्जा पाने की मांग का समर्थन किया। 

इस मुद्दे को हल करने के लिए, गांधी ने बीच का रास्ता निकाला और कहा कि ब्रिटेन से भारत को आजाद करने के लिए दो साल का समय दिया जाएगा और यदि ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए जबरदस्त लड़ाई करने के लिए तैयार हो जाएगा ।

लेकिन नेहरू और बोस ने मांग किया था इस समय को और कम कर के एक साल कर दिया जाए। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसका कोई जवाब नहीं दिया था।


दिसम्बर 1929 में, कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में आयोजित किया गया जिसमें जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए थे । कांग्रेस पार्टी के सर्वप्रथम अध्यक्ष चुने गए थे सुभाष चंद्र बोस को लेकिन सुभाष चंद्र बोस का एक ही लक्ष्य था जहां भारत को आजाद करने के लिए लड़ना होगा । लेकिन सुभाष चंद्र बोस का ऐसे निर्णय से महात्मा गांधी की मंजूर नहीं था जिसके कारण सुभाष चंद्र बोस को अध्यक्ष से इस्तीफा देने की मांग की थी ।


जब ब्रिटिश सरकार ने भारत अधिनियम 1935 प्रख्यापित किया तब कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ने का पकरिया चालू किया। नेहरू चुनाव के बाहर रहे लेकिन ज़ोरों के साथ पार्टी के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया। कांग्रेस ने लगभग हर प्रांत में सरकारों का गठन कर लिया गया था और केन्द्रीय असेंबली में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हुई ।


नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए 1936 और 1937 में चुने गए थे। उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी किया गया और 1945 में छोड़ दिया गया। 1947 में भारत और पाकिस्तान की विभाजन में कई लोगों के मन नेहरू के विरोध में गया था मगर इसकी असलियत खिलवाड़ थे महात्मा गांधी । महात्मा गांधी भारत को पूरी तरह बर्बाद करके गया कारण यह है कि पाकिस्तान को जब भारत से अलग किया था तो सबसे मेन भूमिका निभाए थे महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू । यह दोनों ने पाकिस्तान को तो भारत से अलग कर दिया लेकिन भारत को उस समय आर्थिक व्यवस्था में इतना कमजोर कर दिया था कि ब्रिटिश सरकार से कर्ज लेकर हिंदुस्तान को चलना पड़ा ।  


मित्रों आज के लिए बस इतना ही दरअसल नेहरू परिवार के कहानी बहुत लंबे हैं 1 दिन में समाप्त होने वाले नहीं । अगर आप चाहते हैं इनका संपूर्ण इतिहास जानने के लिए तो हमारे साथ इसी तरह बने रहिए एक-एक करके इतिहास बताएंगे ।

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