एरावतेश्वर मंदिर का रहस्य क्या है जानिए हमारे साथ।
सबसे पहले हमारे वेबसाइट में आपको स्वागतम मित्रों दुनिया में हिंदुओं की ऐसे धराहर मंदिर लाखों हैं मगर लाखों में से यह मंदिर एक हैं। जिसके बारे में आज हम सभी को जानकारी होना अति आवश्यक है क्योंकि हिंदू धर्म में ही एक ऐसा संस्कृति हैं छुपा हुआ है जहां देखने के बाद मन में किसी प्रकार के अधर्म की सोच नहीं होती हैं । ऐसे धरोहर मंदिर देखने के बाद मन में सिर्फ धर्म के रास्ते पर चलने की सोच आने लगते हैं ।
तो मित्रों चलिए जानते हैं एरावतेश्वरा मंदिर का पीछे रहस्य क्या है ?
ऐरावतेश्वर मंदिर, drabid wastukala का एक हिंदू मंदिर है जो दक्षिणी भारत के तमिलनाड़ु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है। 12वीं सदी में king चोल द्वितीय द्वारा निर्मित ।
एरावतेश्वर मंदिर तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर तथा गांगेयकोंडा चोलापुरम के
👉गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर के साथ यूनेस्को द्वारा भव्य धरोहर स्थल बनाया गया है; इन मंदिरों को महान जीवंत चोल मंदिरों के नाम में जाना जाता है। ऐरावतेश्वर मंदिर के भीतर भोलेनाथ की मंदिर स्थापित है। शिव को यहां ऐरावतेश्वर के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर में देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी एरावत द्वारा भगवान शिव की पूजा की गई थी। ऐसा माना जाता है कि ऐरावत ऋषी दुर्वासा के श्राप के कारण अपना रंग बदल जाने से बहुत मन दुखी था, उसने इस मंदिर के पवित्र जल में स्नान करके अपना रंग फिर से प्राप्त किया। मंदिर के भीतरी कक्ष में बनी एक छवि जिसमें ऐरावत पर इंद्र बैठे हैं, के कारण इस धारणा को माना जाता है। इस घटना से ही मंदिर और यहां आसीन इष्टदेव का नाम पड़ा.
मंदिर का पीछे रहस्य क्या है ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि मृत्यु के राजा यम ने भी यहाँ शिव की पूजा की थी। परंपरा के अनुसार यम, जो किसी ऋषि के श्राप के कारण पूरे शरीर की जलन से पीड़ित थे, ऐरावतेश्वर भगवान इस श्राप से मुक्त करवाया और फिर यम ने पवित्र तालाब में स्नान किया और अपनी शरीर जलने से छुटकारा पाया। तब उस दिन से तालाब को यमतीर्थम के नाम से भी जाना जाता है।