भारत आजाद कभी नहीं होता अगर ऐसे वीर भारत में जन्म न होता

bholanath biswas
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भारत को आजादी किसने दिलाई जानिए सच 



भारत को आजादी असल में कैसे मिली है जानने के लिए हमारे साथ बने रहिए मित्रों नमस्कार हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है ।
वैसे तो भारत में एक से एक रतन जन्म लिए थे अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए अपने प्राण खुशी से त्याग दिया आज हम आजाद हैं उन्हीं महावीर संतान के कारण । 
उनमें से कुछ मुख्य नाम है जो अपने सब कुछ त्याग दिया भारत को आजादी करने के लिए इसकी सच्चाई कुछ जानना हम सभी भारत वासियों के लिए अति आवश्यक है । तो आइए जानते हैं वीर कौन थे जो भारत को आजादी दिलाने में सक्षम थे ।

नेताजी सुभाष चंद्र एक ऐसा वीर थे जहां अंग्रेजों की दिल और धड़कन सुभाष चंद्र बोस के नाम सुनते ही बंद हो जाता था । जापान और जर्मनी के मदद से अंग्रेजों की पूरी तरह कमजोर कर दिया था इसलिए गुप्तचरों को 1941 में उन्हें ख़त्म करने का आदेश दिया था

क्या चाहते थे नेताजी सुभाष चंद्र ?

बिस्तर से जानते हैं
5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने 'सुप्रीम कमाण्डर' के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए "दिल्ली चलो!" का नारा दिया ।
और नारा है तुम हमें खून दो हम तुम्हें आजादी देंगे ।
फिर जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।
ऐसे थे सुभाष चंद्र की वीरता 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये और फिर आजाद हिंद फौज के नाम से नामकरण किया।
1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।



👉6 जुलाई 1944 को नेता सुभाष चंद्र बोस ने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया था जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें माँगीं।
अंग्रेज लोग कभी किसी से नहीं डरते थे हमारे हिंदुस्तान के जितने भी क्रांतिकारी थे उन्होंने अपना प्रांतों त्याग दिया पर उनके त्यागने से हमारे हिंदुस्तान की और शक्तियां मजबूत हुई है परंतु अंग्रेज लोग नेताजी सुभाष चंद्र के सिवा किसी से डरता नहीं था जो भी क्रांतिकारी हिंदुस्तान की आजादी की मांग की उनको ही सूली पर चढ़ा दिया गया था पर आजाद नहीं दिया था । भगत सिंह जो बाप का एक ही बेटा था भारत को आजाद करने के लिए अपने प्राण को त्याग दिया था फिर भी भारत को आजाद नहीं किया था ।
महात्मा गांधी अहिंसा पर चलते थे उन्होंने कितना बार आंदोलन किया था पर फिर भी आजाद नहीं किया था।
सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजों के पीछे से वार करने लगा तब उनकी धीरे-धीरे सैनिकों की कमजोर होते गया उसी के कारण अंग्रेजों की हिंदुस्तान में रहना मुश्किल होते हैं गया था ।


इसलिए सुभाष चंद्र बोस को पकड़कर उसकी मौत के घाट उतार देना चाहता था अंग्रेज किसी भी हाल पर उसे पकड़ना चाहता था परंतु उसकी हाथ नहीं लगी ।
धीरे-धीरे अंग्रेजों की सैनिक कमजोर होते गया सुभाष चंद्र की आजाद हिंद फौज के कारण हिंदुस्तान में रहने की उसकी मुश्किल बढ़ता गया ।
अंग्रेजों ने देखा जब तक हिंदुस्तान में सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता रहेंगे हमारे लिए जीना हराम हो जाएंगे सबके सब मारे जाएंगे ।
अंग्रेजों की फौज सोच में पड़ गया था इसलिए उसकी और कोई रास्ता नहीं बचा था यहां रहने के लिए । अंग्रेज ने महात्मा गांधी के हाथ में भी सौंपा था कि हमें सुभाष चंद्र बोस को दे दो और तुम अपना मुल्क आजाद कर लो ।
परंतु सुभाष चंद्र बोस को पकड़ने के लिए किसी की हिम्मत नहीं था इसलिए महात्मा गांधी ने कहा कि आप खुद उसे पकड़ लो और हमारे देश को आजाद कर दो । जब यह बात सुना महात्मा गांधी मुंह से तब अंग्रेजों की हालत खराब हुई और हिंदुस्तान से भागना पड़ा ।

कुछ इतिहास हिंदुस्तान में ऐसे बताया गया है जो कि अविश्वसनीय है ।
लोगों को बताया गया था कि अहिंसा से गांधी परिवार ने हिंदुस्तान को आजाद करवाया था यह सबसे बड़ा गलत और देशवासियों को धोखा दिया है सिर्फ सत्ता का लालच में । कुछ लोग सच को झूठ साबित करने में लगे हुए थे पर ऐसा नहीं हो पाया सच कभी भी छुपता नहीं है सबके नजर के सामने आ ही जाते हैं । नाथूराम गोडसे महात्मा गांधी को हत्या करने के बाद सब कुछ पलट कर रख दिया ।
महात्मा गांधी को क्यों मारा यह बात नाथूराम गोडसे ने खुद बताया था जिसके कारण सभी भारत वासियों को सच का पता चला नहीं तो आज भी झूठी हुई बात को हम सभी सच मान कर रह जाते हैं ।


नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जहाँ जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष की मौत 1945 में नहीं हुई। वे उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे। यदि ऐसा नहीं है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से सम्बंधित दस्तावेज़ अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किये?(यथा सभंव नेता जी की मौत नही हूई थी)
16 जनवरी 2014 (गुरुवार) को कलकत्ता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की माँग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये स्पेशल बेंच के गठन का आदेश दिया।
आजाद हिंद सरकार के 75 साल पूर्ण होने पर इतिहास मे पहली बार साल 2018 मे नरेंद्र मोदी ने किसी प्रधानमंत्री के रूप में 15 अगस्त के अलावा लाल किले पर तिरंगा फहराया। 11 देशो कि सरकार ने इस सरकार को मान्यता दी थी।

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