vaishno devi के पूरी कहानी जानने के लिए हमारे साथ बने रहिए।मित्र नमस्कार हमारे वेबसाइट मेंं आपको स्वागतम ।
विष्णु पुराण के अनुसार, मां वैष्णो देवी ने bharat के दक्षिण में राजा रत्नाकर सागर के घर में जन्म लिया था । वैष्णो देवी के माता-पिता लंबे समय तक संतान आदि नहीं थी। इसलिए माता जगत जननी के पास कठोर तपस्या की है और हमेशा प्रसन्न करने के लिए राजा रत्नाकर अपने पत्नी के साथ मिलकर नृत्य करती थी । माता जगत जननी प्रसन्न होकर दोनों को वरदान दिया था निसंतान से मुक्त होंगे । माता की इस वरदान के कारण मां वैष्णो देवी की जन्म हुई है ।
दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने पण लिया कि संतान जो भी अपने मन से करेंगे राजा उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे । मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से जाने जाती थी। माता वैष्णो देवी के जन्म होने के बाद नारद ऋषि ने उनका नाम रखा मां वैष्णो देवी। जब त्रिकुटा 1 9 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की इच्छा जताई. और फिर त्रिकुटा ने भगवान राम के रूप में तपस्या करने लगे। सीता की खोज करते समय श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के जब किनारे पहुंचे तो उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका नारी पर पड़ी. दअरसल वैष्णो माता श्री राम को मन ही मन पति के रूप में मान लिया था । ओर फिर वैष्णो माता श्री राम के पत्नी के रूप में रहने की इच्छा जताई है । लेकिन श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में प्राप्त नहीं कर सकते हैं मैं केवल सीता के प्रति निष्ठावान एक पति रहने का वचन लिया है। परंतु भगवान श्री राम ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग तक मुझे पाने के लिए प्रतीक्षा करनी होगी कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे।
इस बीच, श्री ram ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा उसके बाद रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए मां ने 'नवरात्र' मनाने का निर्णय लिया ऐसे करण भक्तों गन नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में Ramayana का पाठ भी करते हैं। श्री राम ने वरदान दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाये जाने पर. त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी.।
वैष्णो माता कैसे प्रसिद्ध हुआ ?
श्रीधर बोल के मां वैष्णो देवी का बहुत बड़े भक्त थे। वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता था । एक बार मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में श्रीधर को दर्शन देकर बोली
(भिक्षुकों और भक्तों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करो। तो उनकी बात सुनकर श्रीधर पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े. श्रीधर ने एक स्वार्थी राक्षस 'भैरव नाथ' को भी आमंत्रित किया। भैरव नाथ ने कहा कि इस बार कोई गड़बड़ी तो नहीं होगी । उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया. उसकी बातें सुनकर पंडित जी चिंता में डूब गए, । लेकिन इधर दिव्य बालिका प्रकट हुईं और कहा कि तुम निराश ना हों, सब व्यवस्था हो जाएगी। दिव्य बालिका ने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो। उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की पूरी व्यवस्था की थी। इधर राक्षस भैरव नाथ ने स्वीकार किया जाने की । बालिका में अलौकिक शक्तियां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया भैरव नाथ की । फिर भैरवनाथ ने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया और 9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूँढ़ता रहा, जिसे वह देवी मां का अवतार मानता था। भैरव से दूर भागते हुए देवी ने पृथ्वी पर एक बाण चलाया, जिसके कारण धरती का नीचे से पानी फूट कर बाहर निकला। तब से इस नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं। नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, आज भी वैष्णो देवी मां के पैरों के निशान हैं। इसके बाद वैष्णो देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक वैष्णो माता ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं । भैरवनाथ ना माना तक ढूंढते ढूंढते आखिर माता के सामने आ ही गया जब भैरव ने माता पर आक्रमण करने की कोशिश की तो वैष्णो माता काली का रूप धारण करके उन्हें ऐसे दंड दिया एक ही वार में सिर धड़ से अलग कर दिया था
उससे पहले भैरव ने मरते समय माता से बहुत क्षमा याचना की लेकिन देवी जानती थीं कि उन पर वार करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। इसलिए भैरवनाथ के मृत्यु के बाद उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया । जो भक्त माता वैष्णो देवी की दर्शन करने आएंगे साथ-साथ भैरवनाथ का भी दर्शन करना होगा तभी उनका तीर्थ संपन्न होगी । इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए माता वैष्णो देवी ध्यानमग्न हो गईं।
उसके बाद इधर पंडित श्रीधर अधीर हो गए। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते के ओर आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था। गुफा दार पहुंचने के बाद उन्होंने कई विधियों से 'पिंडों' की पूजा संपूर्ण करते थे भक्ति और श्रद्धा के साथ। देवी उनकी पूजा से माता वैष्णो देवी प्रसन्न हुईं. उसके बाद भक्त श्रीधर के सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से, श्रीधर और उनके वंशज तब से देवी मां वैष्णो देवी की पूजा अर्चना करने लगे ।