जिंदगी के उद्देश्य पर कबीर जी के इस दोहे को पढ़ने के बाद सच में आप अपने उद्देश्य को पूरी तरह समझ सकते हैं कैसे जीना है और अपनी जिंदगी को कैसे आगे बढ़ाना है । जिस व्यक्ति के भीतर गुरु ज्ञान नहीं है वह व्यक्ति आपनी जिंदगी के उद्देश्य कभी समझ नहीं सकते हैं । और जिस व्यक्ति के भीतर आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है वे अपना जिंदगी को कभी आगे नहीं बढ़ा सकते हैं ।
आप कौन हैं किसके लिए इस धरती पर जन्म लिए हैं किस उद्देश्यों पर आप यहां कर्म कर रहे हैं ? आपका उद्देश्य अगर आपको पता नहीं है तो आज हमारे इस आर्टिकल के माध्यम से जो भी कबीर जी ने अपने दोहे पर वर्णन करके गए हैं शायद बहुत कुछ आप समझ सकते हैं । और इस ज्ञान के जरिए आप अपने जीवन को आगे बढ़ा सकते हैं ।
हम प्रत्येक मनुष्य यहां फिल्म की तरह रोल निभाते सभी जीव अपने अपने भूमिका निभाने आए हैं । लेकिन यहां आपको कोई नहीं बताएगा कि आप किस कैरेक्टर में अपना रोल निभाने वाले हैं यह तो आप खुद चयन कर सकते हैं । परंतु गलत क्या है और सही किया है अगर आप नहीं समझ सकते हैं तो आप कभी भी अपना कैरेक्टर को जान नहीं कर सकते हैं। इसलिए धार्मिक ज्ञान अपने भीतर होना बहुत ही आवश्यकता है। जब तक इंसान अपने अंदर धार्मिक ज्ञान प्राप्त नहीं करते तबतक सही रास्ता चयन नहीं कर सकते हैं । किस कैरेक्टर में आपको रोल निभाना है यह तो आप स्वयं चयन कर लेंगे । मगर जिस कैरेक्टर में आप रोल निभा रहे हैं क्या यह सही है या गलत इसका निर्णय तो आपका धार्मिक ज्ञान ही तय करेंगे ।
मित्रों जो महापुरुष होते हैं अपने से ज्यादा दूसरे की चिंता करते हैं क्योंकि जो व्यक्ति अपने से ज्यादा दूसरे की चिंता करते हैं वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं होते हैं और उनका उद्देश्य भी सबसे ऊपर रहते हैं । महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्त अर्जुन को कहा था कि जो व्यक्ति दूसरे की चिंता करते हैं हम उनके लिए चिंता करता हूं बस उनका उद्देश्य को हम पूरे करते हैं ।
तो दोस्तों आपको यह भी समझना चाहिए अगर आप दूसरे के लिए सोचते हैं ,भला करते हैं तो भगवान आपको भी भला करेंगे। इसके लिए आपको किसी की आवश्यकता नहीं है आप अपना उद्देश्य को कैसे पूरा करेंगे यह तो आप खुद ही चयन कर सकते हैं । लेकिन जो भी धार्मिक ज्ञान है इसे प्राप्त करना आपके लिए अनिवार्य है ।
तो चलिए जानते हैं नीचे बताया गया है आपके लिए कबीर जी की कुछ इंर्पोटेंट जिंदगी के उद्देश्यों का दोहे ।
1) माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।
भावार्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है कि आज तुम मुझे रौंद रहे हो, पर एक दिन ऐसा भी आयेगा जब तुम भी मिट्टी हो जाओगे और मैं तुम्हें रौंदूंगी!
2) कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे तब सब खुश थे और हम रो रहे थे । पर कुछ ऐसा काम ज़िन्दगी रहते करके जाओ कि जब हम मरें तो सब रोयें और हम हँसें ।
3) काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो। जीवन बहुत छोटा होता है अगर पल भर में समाप्त हो गया तो क्या करोगे।
4) साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते कि हे परमात्मा तुम मुझे केवल इतना दो कि जिसमें मेरे गुजरा चल जाये। मैं भी भूखा न रहूँ और अतिथि भी भूखे वापस न जाए।
5) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
भावार्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
6) रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।
भावार्थ: रात नींद में नष्ट कर दी – सोते रहे – दिन में भोजन से फुर्सत नहीं मिली यह मनुष्य जन्म हीरे के सामान बहुमूल्य था जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया – कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा? एक कौड़ी
7) आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।
भावार्थ: देखते ही देखते सब भले दिन – अच्छा समय बीतता चला गया – तुमने प्रभु से लौ नहीं लगाई – प्यार नहीं किया समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा? पहले जागरूक न थे – ठीक उसी तरह जैसे कोई किसान अपने खेत की रखवाली ही न करें और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल बर्बाद कर जाएं