तुलसीदास की जीवन जीने का Best 8 दोहे: पापों से मुक्ति प्राप्त ।

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 तुलसीदास के दोहे

तुलसीदास के दोहे


तुलसीदास के दोहे >> तुलसीदास के यह है जीवन जीने का दोहे ।।

तुलसीदास के दोहे >> प्रत्येक मनुष्य के जीवन जीने का अलग अलग तरीका होता है परंतु जो लोग जानबूझकर खुद को कुएं में धकेल देते हैं या फिर ज्ञान होते हुए भी अज्ञानता परिचय देते हैं उनके लिए संत तुलसीदास का दोहे प्रणाम अति आवश्यक है । धर्म ग्रंथ के अनुसार संत तुलसी दास जी ने अपनी पुस्तक श्री राम मानस रचना करने से पहले स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती से आशीर्वाद प्राप्त किए थे । इस कलयुग का घोर पाप को रोकने के लिए संत तुलसी दास जी ने अपने पुस्तक में संपूर्ण  श्री राम चरित्र कथा का उल्लेख किया जिससे पूरे जगत का कल्याण हो सकता है । कहां जाता है राम चरित्र मानस ग्रंथ जनता के सामने पब्लिश करने के लिए संत तुलसीदास को बहुत ही कठिनाई का सामना करना पड़ा उस समय बजरंगबली हनुमान स्वयं संत तुलसीदास को सहायता किया था । जहां जगत कल्याण की बात है वहां तो राम भक्त हनुमान को आना ही था और तो और यह कोई छोटे-मोटे बात नहीं है श्री राम भक्त हनुमान जी इससे बहुत ही प्रसन्न हुए और साथ-साथ हनुमान जी भी संत तुलसीदास को कृपा किया जिससे तुलसीदास को मोक्ष प्राप्त हुआ । संपूर्ण रामायण कथा तुलसीदास ने अपने दोहे से संपन्न किया जिससे स्वर्ग लोग भी प्रसन्न हुए थे । आशा करते हैं जब आप हमारे वेबसाइट में आ ही गए हैं और संत तुलसीदास के इस दोहे को पढ़ेंगे तो कई गुना आपके भीतर ज्ञान प्राप्त होंगे और अपने जीवन जीने का एक सरल मार्ग चयन कर सकते हैं । 

तो चलिए जानते हैं ऐसे कौन से तुलसीदास के दोहे हैं जहां आप अपने जीवन जीने का संपूर्ण सरल कर सकते हैं


NO-1 सरनागत कहूं जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।

ते नर पावंर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि।।

जो व्यक्ति अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते है वे क्षुद्र और पापमय होते है। इनको देखना भी सही नहीं होता है।

NO - 2 काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान।

तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान।।

तुलसीदास जी कहते है कि जब तक किसी भी व्यक्ति के मन कामवासना की भावना, लालच, गुस्सा और अहंकार से भरा रहता है तब तक उस व्यक्ति और ज्ञानी में कोई अंतर नहीं होता दोनों ही एक समान ही होते है।

 

NO - 3 तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और।

बसीकरण इक मन्त्र हैं परिहरू बचन कठोर।।

तुलसीदास जी कहते है कि मीठे वचन सही ओर सुख को उत्पन करते है ये सभी और सुख ही फैलाते है। तुलसीदास जी कहते है कि मीठे वचन किसी को अपने वस में करने के अच्छा मन्त्र है। इसलिए सभी लोगों को कठोर वचन को त्यागकर मीठे वचन अपनाने चाहिये।


NO - 4 सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।

बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

तुलसी दास जी कहते है कि शूरवीर तो युद्ध के मैदान में वीरता का काम करते है कहकर अपने को नहीं जानते। शत्रु को युद्ध में देखकर कायर ही अपने प्रताप को डींग मारा करते है।

NO- 5 सुख हरसहिं जड़ दुख विलखाहीं, दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं।

धीरज धरहुं विवेक विचारी, छाड़ि सोच सकल हितकारी।।

इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि सुख के समय मुर्ख व्यक्ति बहुत ज्यादा खुश हो जाते हैं और दुःख के समय रोने और बिलखने लग जाते हैं। धैर्यवान व्यक्ति चाहे सुख हो या फिर दुःख हर समय उनका व्यवहार अच्छा और एक समान ही रखते हैं। जबकि धैर्यवान लोग बूरे समय का डटकर सामना करते हैं।

NO - 6 सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।

राज धर्म तन तीनि कर होई बेगिहीं नास।।

तुलसीदास जी कहते है कि यदि गुरू, वैद्य और मंत्री भय या लाभ की आशा से प्रिय बोलते है तो धर्म, शरीर और राज्य इन तीनों का विनाश शीघ्र ही तय है।

NO - 7 करम प्रधान विस्व करि राखा।

जो जस करई सो तस फलु चाखा।।

तुलसीदास जी कहते है कि इश्वर ने कर्म को ही महानता दी है। उनका कहना है कि जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है।

NO - 8 काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पन्थ।

सब परिहरि रघुवीरहि भजहु भजहि जेहि संत।।

तुलसीदास जी कहना है कि हमें संत जैसे करते हैं वैसे ही ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए। लालच, क्रोध, काम आदि ये सब नर्क जाने के रास्ते है। इसलिए हमें ईश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए।

आशा करते हैं यहां तुलसीदास के जो भी अमृतवाणी उल्लेख किया गया है आप समझ गए होंगे यदि और भी तुलसीदास की दोहे को पढ़ना चाहते हैं तो कमेंट अवश्य करें और अपने जीवन सफल बनायें धन्यवाद

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