ईश्वर की कृपा सरल 5 तरीका से प्राप्त कर सकते हैं, जाने क्या है

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ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त करें जानें

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ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त करें ?

राम राम मित्रों फिर से एक नया जानकारी लेकर आपके सामने हाजिर हूं । मित्रों ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए मन में क्या होना चाहिए यह जानकारी होना सबके लिए जरूरी है, नहीं तो आप इतनी आसानी से ईश्वर की कृपा प्राप्त नहीं कर सकते हैं । तो चलिए जानते हैं कैसे सरल 5 तरीका से ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकते हैं । यदि आप ईश्वर प्रति विश्वास रखते है तो यह बात सही है कि आपको ईश्वर कृपा करेंगे पर उससे पहले कैसे भक्ति करें जरूर सीखना चाहिए ।



पहले जानिए भक्ति योग क्या है ? 

यह योग भावनाप्रधान और प्रेमी प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए उपयोगी है। वह ईश्वर से प्रेम करना चाहता है और सभी प्रकार के क्रिया-अनुष्ठान, पुष्प, गन्ध-द्रव्य, सुन्दर मन्दिर और मूर्ति आदि का आश्रय लेता और उपयोग करता है। प्रेम एक आधारभूत एवं सार्वभौम संवेग है। यदि कोई व्यक्ति मृत्यु से डरता है तो इसका अर्थ यह हुआ कि उसे अपने जीवन से प्रेम है। यदि कोई व्यक्ति अधिक स्वार्थी है तो इसका तात्पर्य यह है कि उसे स्वार्थ से प्रेम है। किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी या पुत्र आदि से विशेष प्रेम हो सकता है। इस प्रकार के प्रेम से भय, घृणा अथवा शोक उत्पन्न होता है। यदि यही प्रेम परमात्मा से हो जाय तो वह मुक्तिदाता बन जाता है। ज्यों-ज्यों ईश्वर से लगाव बढ़ता है, नश्वर सांसारिक वस्तुओं से लगाव कम होने लगता है। जब तक मनुष्य स्वार्थयुक्त उद्देश्य लेकर ईश्वर का ध्यान करता है तब तक वह भक्तियोग की परिधि में नहीं आता। पराभक्ति ही भक्तियोग के अन्तर्गत आती है जिसमें मुक्ति को छोड़कर अन्य कोई अभिलाषा नहीं होती। भक्तियोग शिक्षा देता है कि ईश्वर से, शुभ से प्रेम इसलिए करना चाहिए कि ऐसा करना अच्छी बात है, न कि स्वर्ग पाने के लिए अथवा धन, सम्पत्ति या अन्य किसी कामना की पूर्ति के लिए। वह यह सिखाता है कि प्रेम का सबसे बढ़ कर पुरस्कार प्रेम ही है और स्वयं ईश्वर प्रेम स्वरूप है। विष्णु पुराण 



या प्रीतिरविवेकानां विषयेष्वनपायिनी।
त्वामनुस्मरत: सा मे हृदयान्मापसमर्पतु ॥


‘‘हे ईश्वर! अज्ञानी जनों की जैसी गाढ़ी प्रीति इन्द्रियों के भोग के नाशवान् पदार्थों पर रहती है, उसी प्रकार की प्रीति मेरी तुझमें हो और तेरा स्मरण करते हुए मेरे हृदय से वह कभी दूर न होवे।’’ भक्तियोग सभी प्रकार के संबोधनों द्वारा ईश्वर को अपने हृदय का भक्ति-अर्घ्य प्रदान करना सिखाता है- जैसे, सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता, सर्वशक्तिमान्, सर्वव्यापी आदि। सबसे बढ़कर वाक्यांश जो ईश्वर का वर्णन कर सकता है, सबसे बढ़कर कल्पना जिसे मनुष्य का मन ईश्वर के बारे में ग्रहण कर सकता है, वह यह है कि ‘ईश्वर प्रेम स्वरूप है’। जहाँ कहीं प्रेम है, वह परमेश्वर ही है। जब पति पत्नी का चुम्बन करता है, तो वहाँ उस चुम्बन में वह ईश्वर है। जब माता बच्चे को दूध पिलाती है तो इस वात्सल्य में वह ईश्वर ही है। जब दो मित्र हाथ मिलाते हैं, तब वहाँ वह परमात्मा ही प्रेममय ईश्वर के रूप में विद्यमान है। मानव जाति की सहायता करने में भी ईश्वर के प्रति प्रेम प्रकट होता है। यही भक्तियोग की शिक्षा है।


भक्तियोग भी आत्मसंयम, अहिंसा, ईमानदारी, निश्छलता आदि गुणों की अपेक्षा भक्त से करता है क्योंकि चित्त की निर्मलता के बिना नि:स्वार्थ प्रेम सम्भव ही नहीं है। प्रारम्भिक भक्ति के लिए ईश्वर के किसी स्वरूप की कल्पित प्रतिमा या मूर्ति (जैसे दुर्गा की मूर्ति, शिव की मूर्ति, राम की मूर्ति, कृष्ण की मूर्ति, गणेश की मूर्ति आदि) को श्रद्धा का आधार बनाया जाता है। किन्तु साधारण स्तर के लोगों को ही इसकी आवश्यकता पड़ती है।


कैसे करेंगे भक्ति ?


भक्ति कोई प्रकार के कर सकते हैं वह आप पर निर्भर करता है कैसे करेंगे भक्ति । गरीब इंसान को दान करें यह भी ईश्वर प्रति एक भक्ति कहलाते हैं ।

आप जिस ईश्वर प्रती विश्वास रखते हैं उनकी पूजा साल में एक बार जरूर दे और आपकी जितनी समर्थक हो उतने लोगों को भोजन करवाइए यह भी एक बहुत बड़ा ईश्वर प्रति भक्ति ही मानते हैं ।


यदि आप इतना भी नहीं कर सकते हैं तो यह जरूर करें  


आप बहुत व्यस्त रहते हैं काम के कारण ईश्वर को याद और भक्ति नहीं कर पाते हैं पर इससे आप निराश ना हो । भक्ति सिर्फ मन की जरूरत पड़ती है न पैसा न ही कोई सामान कि जरूरत है यदि आपके मन ईश्वर के प्रति प्रेम है तो वही भक्ति है । यदि आपके मन के अंदर ईश्वर प्रति श्रद्धा है उसी को कहते हैं प्रेम। आप दिन भर काम करें पर दिन भर में एक बार  ईश्वर की नाम जरूर लें इसमें ईश्वर खुश हो जाते हैं और आप पर बड़ा कृपा करेंगे । 

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