जन्म कुंडली में दैवीय शक्ति योग
आपने अपनी लाइफ में कुछ ऐसे लोग भी देखे होंगे जो किसी भी कार्य को करने में थोड़ी सी मेहनत करते हैं और उनको उस कार्य में सक्सेस मिल जाती है और कुछ ऐसे लोग भी देखे होंगे जो खूब जी तोड़ मेहनत करते हैं और उन्हें अपने कार्य में फिर भी सफलता नहीं मिल पाती है वह कहते हैं ना कि कुछ लोग मिट्टी पढ़ते हैं और सोना हो जाता है और कुछ लोग सोना पढ़ते हैं और मिट्टी हो जाता है । यह सब क्या है यह सब ग्रहों का खेल है और प्रत्येक व्यक्ति का अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के हिसाब से इस जन्म में प्रारब्ध बनता है । तो ऐसा ही एक प्रारब्ध योग बनता है जिसे दैवीय शक्ति योग कहते हैं तो आज दैवीय शक्ति योग के बारे में आपको इस आर्टिकल के माध्यम में बताएंगे कि दैवीय शक्ति योग क्या होता है कैसे बनता है । नमस्कार दोस्तों हमारे वेबसाइट में आपका स्वागत है अगर आप हमारे वेबसाइट में नए हैं तो हमें फॉलो अवश्य कर लीजिए ताकि इसी प्रकार नया-नया जानकारी आपके पास पहले पहुंचेंगे ।
तो देखिए दैवीय शक्ति योग को देखने के लिए आपको लग्न कुंडली देखनी है सबसे पहले यानी की डी1 चार्ट देखना है तो उसका पहला नियम में आपको बताता हूं कि आपको देखना है कि जब भी लग्न चार्ट में सेकंड हाउस का लॉर्ड उच्च का हो यानी कि दूसरे घर का स्वामी उच्च का हो और वह उच्च का हो करके केंद्र भाव में बैठा हैं यानी की फर्स्ट हाउस फॉर हाउस सेवंथ हाउस और टेंट हाउस इनमें से किन्हीं भाव में बैठा हुआ हो दूसरे घर का स्वामी तो यह दैवीय शक्ति योग बनता है ।
और दूसरा रूल क्या है कि यदि सेकंड हाउस का लॉर्ड पंचम भाव में नवम भाव में या एक आदर्श भाव यानी की 11वें भाव में विराजमान हो और बाली लगने से भी उसके साथ बैठा हुआ हो और जिस भाव में सेकंड हाउस का लॉर्ड बैठा हो उस हाउस का स्वामी कुंडली में केंद्र में बैठा हुआ हो यानी कि पहले घर चौथा घर सातवां घर और दसवां घर इनमें से किसी भी भाव में बैठा हुआ हो तो उसे जातक के ऊपर प्रभु कृपा का योग बनता है यानी देवीय शक्ति का योग बनता है । उस व्यक्ति के पूर्व जन्म के कुछ ऐसे कर्मों का फल उसको इस जीवन में भोगना है यानी कि जो प्रारब्ध बनकर आया है वह इतना स्ट्रांग बनकर आता है कि यदि जीवन में कहीं उसकी कोई संकट परेशानी आती है तो वह सहज रूप से ही उस संकट से मुक्ति पा लेता है यानी उसको दैवीय शक्ति का सहारा मिलता है । ऐसे व्यक्ति को उसके जीवन में भाग्य का पूरा सहयोग मिलता है जब जीवन में कोई संकट या परेशानी आती है तो उस वक्त दैवीय शक्ति उसका साथ देती है और थोड़े ही प्रयास से वह अपने संकट से बाहर आ जाता है ।
अब देखिए इस लग्न कुंडली के एक उदाहरण से दोनों नियमों को समझते हैं तो देखिए यह लग्न कुंडली कर्क लग्न की है यानी की फर्स्ट हाउस में कर्क राशि है और सेकंड हाउस में सिंह राशि है और इसके स्वामी सूर्य महाराज है यानी कि सिंह राशि के स्वामी सूर्य महाराज हो गए । तो इसमें पहला नियम देखते हैं तो पहला नियम क्या है कि यदि सेकंड हाउस का लॉर्ड उच्च का हो और केंद्र भाव में बैठा हुआ हो तो यहां देखिए सेकंड हाउस का लॉर्ड कौन हो गया सूर्य हो गए और सूर्य उच्च के कहां होंगे मेष राशि में मेष राशि कुंडली में आप देख पा रहे हैं दसवें घर में है । तो यदि सूर्य यहां दसवें घर में बैठते हैं । तो यह योग बनता है यानी कि दूसरे घर के स्वामी हो गए सूर्य और वह दसवें घर में उच्च के होकर के बैठ गए तो इससे पहला नियम जो है यहां लागू होता है कि ऐसे व्यक्ति को दैविक शक्ति का योग बनता है । दूसरे हाउस का स्वामी पंचम भाव में नवम भाव में या एकादश भाव यानी की 11 हाउस में बैठा हुआ हो तथा बली लगे इसका साथ हो यानी लगन का जो स्वामी है उसका साथ होना चाहिए नहीं उसकी युति में होना चाहिए इन भागों में और लगे इसके साथ वह बलि भी होना चाहिए यानी कि उसका जो लग्नेश है जो लग्न का स्वामी है वह बाली होना चाहिए स्ट्रांग होना चाहिए । तो दिखे स्ट्रांग कैसे होगा लगन से स्ट्रांग कैसे होता है तो अब इस कुंडली में देखिए लग्न का स्वामी हो गया चंद्रमा क्योंकि लग्न में कौन सी राशि लिखी हुई है चार नंबर की तो चार नंबर की राशि होती है कर्क राशि । तो कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा हो गए तो चंद्रमा बाली कब होंगे एक तो चंद्रमा पीड़ित नहीं होने चाहिए यानी कि शनि राहु और केतु उनके साथ युति में नहीं होने चाहिए और ना ही उनकी दृष्टि चंद्रमा के ऊपर होनी चाहिए नंबर 2 की चंद्रमा पूर्णिमा के आसपास ही होना चाहिए । आसपास का मतलब समझ रहे हो आप या तो पूर्णिमा का हो यानी की अष्टमी से ऊपर का होना चाहिए पूर्णिमा के तरफअष्टमी का हो गया नवमी का हो गया दशमी का हो गया एकादशी द्वादशी त्रयोदशी या पूर्णिमाऔर पूर्णिया से आगे फिर अमावस्या की तरफ चलते हैं । तो प्रतिपदा द्वितीय तृतीय चतुर्थी पंचमी सस्ती सप्तमी या अष्टमी तक तो इस प्रकार से लग्नेश चंद्रमा भी बली हो गए और द्वितीय जिस स्थान में बैठा हो उसका स्वामी केंद्र में हो अब देखते हैं तो यहां द्वितीय कौन हो गए सूर्य और सूर्य पंचम भाव में बैठे हैं यहां और पंचम भाव में बैठे हैं चंद्रमा उसके साथ बैठे हुए हैं यानी कि लग्नेश बली हो गए उसके साथ बैठे हैं और पंचम हाउस में कौन सी राशि हो गई वृश्चिक राशि तो वृश्चिक राशि के स्वामी कौन हो गए मंगल तो मंगल केंद्र में देखिए आप यहां चौथे हाउस में यदि मंगल बैठते हैं तो दैवीय शक्ति का योग बनता है ।
इसमें दूसरा है कि नवम भावयानी की सेकंड हाउस के लॉर्ड सूर्य नवम भाव में बैठे हैं जैसा कि आप देख रहे हैं और लग्नेश चंद्रमा साथ बैठे हुए हैं और जिस घर मेंयह बैठे हुए हैं उसका स्वामी कौन हो गया 12 नंबर राशि लिखी हुई है तो इसके स्वामी हो गए गुरु तो गुरु केंद्र में होने चाहिए यानी कि जैसे गुरु केंद्र में हो गए । आपके दसवें घर में तो यह दैवीय शक्ति योग बनेगा तीसरा है कि दूसरे घर का स्वामी एक आदर्श भाव में हो जैसा कि आप देख पा रहे हैं एकादशी यानी कि 11 हाउस में सूर्य बैठ गए और लगे साथ हो गए तो यहां राशि कौन सी है वृषभ राशि और वृषभ राशि के स्वामी होते हैं शुक्र तो यह केंद्र में होने चाहिए । अब मान लीजिए शुक्र बैठकर उनके 4th हाउस में तो द्वितीय और लग्नेश की युति हो गई एकादशी भाव में और जिस हाउस में यह बैठे हैं उसके लॉर्ड हो गए 4th हाउस में यानी कि केंद्र में हो गए । तो इस प्रकार यह भी दैवीय शक्ति का योग बनता है तो इस प्रकार आपने देखाकी जिसकी भी कुंडली में यह दैवीय शक्ति योग बनता है तो ईश्वर कृपा उसके लिए सुलभ होती है और जब भी उसके जीवन में कभी भी कोई ज्यादा संकट परेशानी आता है तो ईश्वर की कृपा से उसका वह संकट जल्दी ही मिट जाता है और वह उस परेशानी से बाहर हो जाता है यानी उसको परमात्मा का ध्यान करना है धर्म मंदिर यानी मंदिर में जाकर माथा टेकना है । तो दोस्तों यह पोस्ट आपको कैसे लगा कमेंट करके जरूर बताइए और हमें फॉलो करिए ।
महाशक्तिशाली टोटके एक बार चुपचाप कर लीजिए ,सभी इच्छाएं पूरी होगी