कृष्ण लीला :राधा मां की जन्म कैसे हुई थी ? जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे

bholanath biswas
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कृष्ण लीला


 
कृष्ण लीला >> राधा कृष्ण का बचपन की प्रेम कहानी

ईश्वर की महिमा जानना इंसान के लिए मुश्किल हो जाती है क्योंकि इंसान के शरीर इतना तेज नहीं और न ही उतना बुद्धि है । पर जो व्यक्ति ईश्वर की महिमा को समझ सकते हैं वह आम इंसान जैसा नहीं है  । 

शायद कुछ लोगों को यह विश्वास नहीं होंगे कि सतययुग में परमात्माओं की जन्म गर्भ से नहीं कुछ और तरीका से हुआ करते थे जो आज के वर्तमान युग में विश्वास करना असंभव हैं । 


आइए जानते हैं राधा मां की जन्म कैसे हुई थी ?


 धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल गांव में मुखिया वृषभानु गोप एवं कीर्ति की पुत्री के रूप में राधा रानी का प्राकट्य जन्म हुआ। राधा रानी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि राधा जी माता के पेट से पैदा नहीं हुई थी उनकी माता ने अपने गर्भ को धारण कर रखा था उन्होंने योग माया कि प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया। परन्तु वहां स्वेच्छा से श्री राधा प्रकट हो गई। श्री राधा रानी जी निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतीर्ण हुई उस समय भाद्र पद का महीना था, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल 12 बजे और सोमवार का दिन था। इनके जन्म के साथ ही इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा।


जन्म के बाद राधा मैया ने कब खुली थी अपने आंखें जानें ।

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राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बड़ी थीं। लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दुःखी रहते थे। कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने हुई 

👉तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, । वे एक टक कृष्ण जी को देखती है, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित हो रहे थे। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई।


वृषभानु में आज भी माना जाता है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण बिना श्री राधा। धार्मिक पुराणों के अनुसार राधा और कृष्ण की ही पूजा का विधान है।पूरे पोस्ट पढ़ने के लिए आप को मेरी ओर से बहुत-बहुत धन्यवाद मित्रों

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